बिहार विधानसभा चुनाव:शिकारी आएगा,जाल बिछाएगा,दाना डालेगा,भूल से फंसना नहीं

चुनाव में बिहार के मुस्लिम समुदाय के लिए चुनौती

*शारिब जि़या रहमानी*
जदयू ने अपनी मुस्लिम फौज चुनावी मैदान में उतार दी है,इस से समझ आता है कि नीतीश कुमार कितने डरे होए हैंI मुस्लिम वोट अगर 100% जदयू से हट गया तो जदयू की सत्ता वापसी नामुमकिन है, बीजेपी से अलग नीतीश कुमार का अपना कोई वोट जनाधार नहीं है, और Covid19 पर विफलता और ग़रीब , मज़दूर के ग़ुस्से से वो परेशान हैं, जिन की घर वापसी का नीतीश ने विरोध किया था और किसी तरह आने के बाद भी सिर्फ़ जुमले बाज़ी होती रही, अब वे वापस जाने को मजबूर हैं, बेरोज़गारी मुद्दा बन जाए इस से वो परेशान हैं, सैलाब से हर साल तबाही आती है, सरकार विफल रहती है, पिछली घोषणाओं पर कोई जवाब नहीं है लकिन लुभावन जुमले बरस रहे हैं।

प्रेस कॉन्फ्रेंस,पोस्टरों द्वारा नीतीश को मुसलमानों का मसीहा कहा जारहा है,हरगिज़ उन की जाल में नहीं आना है। वो तरह तरह से जुमले छोड़ेंगे, अगर इस बार इस पार्टी को वोट दे दिया तो CAA पर आप का आंदोलन, आप की जागरुकता की विशाल मुहिम बर्बाद होगी और वो समझेंगे कि मुसलमानों के साथ कुछ भी करो, वोट तो दे ही देंगे, इस बार इस रिवायत को बदलना हैI ऊर्दू को अनिवार्य विषय से हटा कर नीतीश कुमार ने उर्दू बल्कि अपने मुस्लिम विरोधी होने पर मुहर लगाई है,बार बार इस विषय पर ध्यान दिलाया जा रहा है, शिक्षा मंत्री को मेमोरेंडम दिए जा रहे हैं लेकिन नीतीश और उन के मुस्लिम चमचों पर कोई असर नहीं है, उर्दू अनुवादक और सहायक अनुवादक की परीक्षा टाल दी गई, यानी इस की घोषणा सिर्फ़ वोट लेने और चुनावी धोखे बाज़ी के लिए थी तभी तो बिहार स्टाफ़ सिलेक्शन कमिशन की वेबसाइट पर सारी चीजें अपलोड हो रही हैं लकिन अनुवादक परीक्षा पर चुप्पी हैI याद रहे जो भी जदयू का मुस्लिम चेहरा आप के पास आए या सोशल मीडिया पर गुण गान करे उससे CAA पर वोटिंग पर सवाल करें,जदयू की वजह से यह बिल Act बना हैI वे आपको बताएँगे कि बिहार सरकार ने NRC और NPR पर प्रस्ताव पारित कर दिया है कि बिहार में 2010 का NPR होगाI

याद रहे कि यह धोका है,NPR 2010 वाला हो या 2020 वाला, दोनों नागरिकता Act से जुड़े हैंI जिस के साथ NRC भी है यानी जब NPR होगा तो NRC भी होगी,जब तक उसे नागरिकता से अलग नहीं किया जाता, CAA के साथ NPR ख़तरनाक है, क्यूँ कि धर्म के नाम पर नागरिकता मिलोगी और नागरिकता धूमिल की जाएगी जो संविधान के सिद्धांत, लोकतंत्र, एकता और बराबरी के ख़िलाफ़ है और जदयू ने इसे पास कराया है।

एक और बात कि NRC लागू करने से बिहार सरकार कैसे मना कर सकती है? जदयू के मुस्लिम नेताओं के पास इसका कोई जवाब नहीं है कि NRC लागू ना करना स्टेट का संविधानिक अधिकार ही नहीं है यानी जिस का अधिकार नहीं उस पर प्रस्ताव पारित हो रहा है और जहाँ वोट ना देने का अधिकार था वहाँ (पार्लियामेंट में) जदयू बिल पारित करवाती है, मुसलमान को इतना बेवकूफ़ ना बनाएं, मुसलमानों ने बदला लेने का मन बना लिया है, मुस्लिम वोट लेकर बीजेपी की गोद में बैठ कर जो धोका नीतीश कुमार ने दिया है वो भी याद है, बिहार में जगह जगह मुस्लिमों को निशाना बनाया गया, मुस्लिम असुरक्षित हैं, नीतीश राज में माब लिंचींग बढ़ी, फुलकारी, औरंगाबाद, सीतामढ़ी सब याद हैं, इनका जवाब जदयू के मुस्लिम बहादुर नहीं दे सकते हैं लकिन सब का हिसाब मुस्लिम, वोट से लेंगे, उन्हें सब याद हैIजदयू के प्रचारकों से जवाब लेना होगा।

नीतीश कुमार की मुस्लिम और उर्दू विरोधी नीति से उनकी अस्ल छवि सामने आगई है,इस बार हर सीट पर जदयू के प्रत्याशी को हराने की नीति अपनानी होगी और महागठबंधन को उन्हीं जगह मजबूरी में वोट करना है जहां मजलिस का मज़बूत प्रत्याशी ना हो, तेजस्वी की मानसिकता को देखते हुए मजलिस का मैदान में होना अनिवार्य है लकिन मजलिस को भी 10/12 सीटों पर ही प्रत्याशी उतारना चाहिए,और बहुत मज़बूत लड़ाई चिन्हित सीटों पर होनी चाहिएI ताकि ज़्यादा सीटों पर मुस्लिम वोट के बट जाने से एनडीए को फ़ायदा भी ना हो और मुस्लिम नुमाइंदगी भी हो जाए।

किसी भी तरह जाल में नहीं आना हैI वोट देते समय दिल पर हाथ रख कर महसूस कीजिए गा कि जिस दिन आप के वोट को लात मारकर नीतीश बीजेपी के साथ गए थे तो आप को कैसा लगा था? जब जदयू पार्लियामेंट में CAA पर वोट दे रही थी तो ख़ुद को आप कैसा ठगा महसूस कर रहे थे? तीन तलाक़ बिल पर पार्लियामेंट से भाग कर बिल को वो पारित कराने में मदद कर रही थी तो आप का दिल किया कह रहा था?

हाँ आरजेडी गठबंधन से भी सवाल करते रहना है कि मुस्लिम ईशू पर पार्टी की किया पॉलिसी है? कितनी नुमाइंदगी दे रहे हो?आरजेडी में मुस्लिम लीडरशिप पनपने क्यूँ नहीं दी जाती है? वोट लेने के लिए मुस्लिम और विकास और मंत्रालय के लिए यादव? यादव ने लोकसभा चुनाव में आरजेडी को वोट नहीं दिया है, तेजस्वी इस पर चुप क्यूँ हैं? मुस्लिम इशू से उन्हें दिलचस्पी क्यूँ नहीं है? क्या मुस्लिम को वोट की मशीन और मजबूर समझ लिया है? इसलिए 10/12 मजलिस के मज़बूत उम्मीदवारों को वोट देकर आरजेडी का ग़ुरूर भी तोड़ना ज़रूरी है।

मजलिस से भी सवाल है कि तेलंगाना में 7/8 और महाराष्ट्र,उप, बिहार में पार्टी विस्तार क्यूँ? तेलंगाना की तरह बिहार में भी 7/8 पर प्रत्याशी क्यूँ नहीं उतारते? KCR की पार्टी और उस की पॉलिसी, कॉग्रेस, आरजेडी,एसपी, एनसीपी से अलग कैसे है? जो नरसिम्हा रॉ के प्रेम में गिरफ़्तार है, KCR के कमयूनल एजेंडे पर चुप्पी रहती है लकिन सारी बहादुरी और ईमानी गर्मी तेलंगाना से बाहर निकलने लगती है? KCR को कमयूनल बोलने की हिम्मत ओवैसी में क्यूँ नहीं है? तेलंगाना में दोस्त के हाथों शहीद मस्जिदों पर भी मजलिस को जवाब देना होगा।
कहना यह है कि सभी पार्टियों को आईना दिखाना है,यानी वोट देना भी है तो फ़्री में नहीं, जाग कर वोट देंगे, सिर्फ़ वोट की मशीन नहीं बनेंगे, अब तक की हमारी सियासी ग़लती यही है कि हम वोट बैंक बनते रहे, सवाल करना और हिसाब लेना नहीं सीखाI सियासत में सौदेबाज़ी और मोल भाऊ का महत्व है, जो जितना बड़ा डीलर होगा उतना बड़ा नेता समझा जाएगा, सियासत के लिए अब कोई उसूल और सिद्धांत नहीं है,आज की सियासत बेऊसुली का नाम हैI किसी भी पार्टी का कोई सिद्धांत नहीं है और ना अब कोई सिकूलर है। मुस्लिम समुदाय को भी यही रास्ता चुन्ना होगा।

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is a young journalist & editor at Millat Times''Journalism is a mission & passion.Amazed to see how Journalism can empower,change & serve humanity