2 सितम्बर को मलेशिया के साबिक़ वज़ीर डॉ. महाथिर मुहम्मद का किया एक Tweet thread आजकल काफी चर्चा में है। इस Tweet thread में डॉ. मुहम्मद लिखते है -“I do not like to generalise. But in this case I have no choice but to generalise. It is because it is generally the case.”
मतलब ये कि – हलाॅकि मै generalise करना पसंद नहीं करता परंतु इस मसले में मेरे पास कोइ विकल्प नहीं सिवाय इसे generalise करने के।
ऐसा इसिलिए है क्योकि ये मसला generally है ही ऐसा। Provoke word से शुरू होने शुरू वाला ये Tweet Thread भले ही अपने पहले ही Tweet में लफ़्ज़े General से भरा हो मगर आप यक़ीन मानिये,ये Tweets कहीं से भी General नहीं है। बल्कि डॉ. मुहम्मद ने इस Tweet Thread के ज़रिये बड़े हस्सास और पेचीदा मसले को बेहद आसान अंदाज़ में बयान करने का काम किया है।
इससे पहले की हम उनके Thread पर बाज़ाब्ता तब्सरा करें, पेश है उनका एक मुख़्तसर सा तआर्रुफ़ -10 July 1925 में जन्मे डॉ. महाथिर मुहम्मद जो एक Physician भी है, मलेशिया के साबिक़ वज़ीरे आज़म रह चुके है। इन्हें 24 सालों तक मुल्क की सरबराही करने का सर्फ़ हासिल है।
हिन्दुस्तानी आवाम में इनकी शोहरत का मीटर सन 2019 के दिसम्बर में तब ऊपर पहुंचा जब इन्होने #CAA #NRC मुखालिफ आवामी एहतेजाज के वक़्त बीजेपी सरकार को तनक़ीद का निशाना बनाया। हालाँकि इससे पहले भी डॉ. महाथिर मुहम्मद कश्मीर मसले पर खुलकर बोलते रहे है – बल्कि उन्हौने कश्मीर मसले को अक़वामे मुत्तहिदा में उठाने का काम किया मगर उनके बारें में सबसे ज़्यादा चर्चा तब शुरू हुई जब उन्हने 2019 में ये बातें कही –
और बेशक इनके बयान को हिंदुस्तानी सरकार ने अंदरूनी मामला बताकर ख़ारिज कर दिया। डॉ. महाथिर मुहम्मद ,मुसलमानों के मुद्दे पर लगातार बेबाकी से राय रखने के लिए मशहूर है।
ताअर्रूफ के बाद आइये अब नज़र डालते है उनके Tweet Thread पर:-
तो मामला कुछ यूँ है कि एक तरफ तो रूस-यूक्रेन की लड़ाई चल रही है , अमरीका चीन और चीन-ताइवान जैसे दुसरे बड़े मामले भी लगातार सुर्खियां बटोर रहे है मगर फिर भी आये दिन Islamophobia से मुतास्सिर मगरिबी सियासी अनासिर लगातार मुसलामानों और इस्लाम को लड़ाई झगडे, जंगो-जदल, और फसादात का हामी ओ कारकुन साबित करने की बेतुकी कोशिश करते रहते है।
डॉ. महाथिर मुहम्मद का ये tweet Thread ऐसे तमाम बद्तमीज़ अनासिर और उनके प्रोपगंडे को मुंहतोड़ जवाब है जो इस्लाम दुश्मनी की वजह से झूठे बोलने से ज़रा भी नहीं हिचकते।
वो अपने Thread के ज़रिये बड़े ही सलीक़े से साफ़ सुथरे अलफ़ाज़ में ये साबित करते है कि लड़ाई झगड़ा , जंगो-जदल, और फसादात का हामी दरहक़ीक़त यूरोप है। ये मसला तो असल में उनका यानि मगरिबी तहज़ीब का है।
वो लिखते है –
“मेरा मानना है कि यूरोपीय मामलिक जंगपसँदी और मारने के आदी है। हज़ारों सालों की तारिख में एक भी ऐसा साल नहीं रहा जिसमे यूरोपियन ममालिक जंगों में मुलव्विस ना हों। वे है जो जंगों की शान बयान करते है, क़त्ल का जश्न मनाते है। वे हैं जो क़ातिलों को, बड़ा चढ़ाकर पेश करके, उनके हक़ाइक़ रफू करके, और उनकी यादें मनाकर, उन्हेंअपना हीरो बनाते है। वे हीं है जो फौजी मश्कों और War games का इनेक़ाद कर के जंगों की तैयारियां करते है। लोगों को सटीक ढंग से मारने के नए-नए हथियार ईजाद कर रहे है। बेशक वे ही है जो कहते है ‘ममलिकतों को अमन की खातिर जंग की तैयारियां करनी चाहिए।’ और जब वे लड़ाई के लिए तय्यर हो चुके होते है, नए हथियार बना लेते है तो वे अपनी तैयारियों और अपने इजादकरदा हथियारों को टेस्ट करने की खातिर मुल्कों के दरम्यान जंग छेड़ते है। इतना ही नहीं बल्कि वो खुद भी जंगों में शामिल हो जाने से गुरेज़ नहीं करते।”
अपने इन दावों को सही साबित करने की खातिर डॉ. महाथिर मुहम्मद तारीख से हवाला देते है –
लिखते है –
“दूसरी जंगे अज़ीम में मगरिबी मुल्कों ने रूस को अपने इत्तेहादि के तौर पर क़ुबूल किया। लाखों रूसी मारे गए लाखों ज़ख़्मी हुए और इस तरह रूस ने अमरीका के साथ पेशक़दमी करते हुए आखिरकार जर्मनी को हरा दिया।
फिर अचानक से मगरिबी मुल्कों ने अपने इत्तेहादि रूस ही में अपना नया दुश्मन तलाश कर लिया। उन्हौने NATO बनाया जिसके जवाब में रूस ने WARSAW PACT का मामला सरअंजाम दिया। दहाईयों तक Cold-War यानि सर्द जंग चली। अखिरअज़ रूस ने हार मान ली और उसने WARSAW PACT को ख़त्म करते हुए उसमे मुलव्विस मुल्कों को आज़ाद कर दिया।
अब इस सूरतेहाल में जबकि WARSAW PACT का खात्म हो चूका – NATO को तोड़ने और ख़त्म करने के बजाय मगरिबी ताक़तों ने WARSAW PACT के साबिक़ मेम्बरान को NATO और EUROPEAN UNION में जोड़ने की कोशिशें शुरू कर दी। और इनसब मामलों में रूस के साथ मुम्किना दुश्मन जैसा रवैया अख्तियार करते हुए उसे NATO या EUROPEAN UNION में शामिल होने कोई दावत तक नहीं दी गई।”
अब आप ज़रा सा गौर करेंगे तो आपको अंदाजा होने लगेगा कि आखिरकार रूस ने यूक्रेन पर हमला ?क्यों किया।
इससे पहले की हम डॉ. महाथिर मुहम्मद साहब कीबाक़ी tweets को पढ़ें आइये नज़र डालते है इससे मुताल्लिक़ कुछ ख़बरों की सुर्खियां पर-
बीबीसी न्यूज़ 12 February 2008 को एक खबर शाया करता है जिसमे साफ़ साफ़ लिखा है कि –
Russia has said it may target its missiles at Ukraine if its neighbour joins Nato and accepts the deployment of the US missile defence shield.
Russian President Vladimir Putin made the comments in Moscow alongside Ukraine’s President, Viktor Yushchenko.
3 जुलाई 2008 में एक रूसी न्यूज़ पोर्टल एक अखबार के हवाले से लिखता है –
“At a closed meeting of the Russia-NATO Council, Russian President Vladimir Putin threatened that if Ukraine joins the North Atlantic Alliance, it may cease to exist as a single state … In particular, Russia may annex Crimea and the East of the country. ”
Newspaper “Kommersant” April 7 , 2008 rock
एक और रुसी न्यूज़ पोर्टल 14 जून 2021 में एक NATO के Secretary General का बयान छापता है जिसमे वो कहता है –
“it is not up to Russia to decide whether Ukraine will be a member of the Alliance”
उम्मीद है अब आपको रूस-यूक्रेन मामला खूब अच्छे से समझ आ चूका होगा। अब रुख करते है डॉ. महाथिर मुहम्मद की बाक़ी tweets की तरफ –
वो लिखते है –
“जैसे जैसे WARSAW PACT के साबिक़ मेंबर ममालिक EUROPEAN UNION और NATO में शामिल हुए रूस पर खतरा बढ़ता गया और रूस को उसके मगरिबी सरहद पर नए दुश्मन मिलने शुरू हो गए। ये जंगी खेल रूस के मगरिबी सरहदों से लगे मुल्कों को शामिल करके खेला गया। बेशक ये सब रूस को उकसाने के लिए किया गया।
यूक्रेन NATO ज्वाइन करने वाला था, जबकि उसे खूब अच्छे से पता था कि चूँकि वो रूस के ठीक सरहद से सटा हुआ मुल्क है ऐसे में उसके NATO में जुड़ने से रूस खतरा महसूस कर सकता है। मगरिबी मुल्क नहीं चाहते थे कि यूक्रेन NATO ज्वाइन करे क्यूंकि इसमें इस बात का खतरा था कि रूस हमला कर देगा। NATO ममालिक का मुआहिदा था कि उनके मेंबर मुल्क पर हुआ हमला NATO पर हमला माना जायेगा। ज़ाहिर है अगर रूस यूक्रेन के NATO मेंबर बनने के बाद उसपर हमलावर होता तो NATO को जंग में जाना पड़ता।
भले ही मगरिबी इत्तेहादि बेशक कोई यूरोपी जंग नहीं चाहते हों मगर ऐसा मालूम होता है कि वो यूक्रेन-रूस के दरम्यान एक limited War ज़रूर चाहते थे ताकि इससे उन्हें रूस की ताक़त का अंदाज़ा लग सके. या हो सकता है कि ये रूस को कमज़ोर बनाने के लिए किया गया हो।
तो हालाँकि NATO ममालिक ने यूक्रेन को NATO के मेंबर के तौर पे तस्लीम नहीं किया बल्कि रूस को ये ताअस्सुर देकर लगातार भड़काने का काम किया कि आखिरकार वो यूक्रेन को NATO मेंबर के तौर पर ज़रूर तस्लीम करेंगे।
ये Provocation काम कर गया और रूस ने यूक्रेन पर हमला कर दिया। ज़ेलेन्स्की ने NATO मुल्कों से यूक्रेन को तहफ़्फ़ुज़ फ़राहम करने की लाख अपीलें की मगर उसे कोई मदद नहीं मिली सिवाय पैसों और चंद सामानों के सप्लाई के। हत्ता कि यूक्रेन को खुद की हिफाज़त खुद ही करने के लिए छोड़ दिया गया। लाखों लोगों ने हिजरत की, हज़ारों शहरियों और सिपाहियों की जानें गईं और इस तरह मुल्क तबाह हो गया।
NATO का एक भी सिपाही नहीं मरा, ना ही NATO मुल्कों को कोई नुक्सान पहुंचा। बिलाशक यही यूरोप की हिकमते अमली है कि – लड़ो तो ऐसे कि proxy war हो जाए। और इस तरह उकसाने वाली कार्रवाइयां मशरिक़े बईद यानि Far East की तरफ मुन्तक़िल हो गई।
कुछ समझा आपने?
डॉ. मुहम्मद ने अपनी tweets के ज़रिये कई रुख में इशारे किये है इशारा इस बात का है कि मग़रिबी तहज़ीब जंगो जदल पर उभारती है, वो अलग अलग बहानों से मुल्कों को आपस में लड़वाते है, अलग अलग बहानों से उनका इस्तेहसाल करते है। जब मतलब पूरा हो जाता है तो उसे या तो छोड़ देते है या उसे अपना दुश्मन बना लेते है। इराक पर झूठे प्रोपगंडे की बुनियाद पर किया गया हमला हो, या लीबिया की तबाही, पकिस्तान का इस्तेहसाल हो या अफगानिस्तान पर क़ब्ज़ा, हर मामले में मगरिब ने अपने मफ़ाद को ऊपर रखते हुए इंसानी हुक़ूक़ की बेदरेग़ पामाली की है।
मगर इनपर मुक़दमा कौन करे? कि ये तो खुद ही जज बने बैठे है, इनपे कौन पाबंदियां आयद करे कि ये तो हर बड़े इदारों पर क़ाबिज़ है। इनपर इलज़ाम कौन लगाए कि ये तो अपने खिलाफ बात करने वालों को अलग अलग बहानों से क़त्ल करवा देने में यक़ीन रखते है।
सद्दाम हुसैन, सुलेमैनी, गद्दाफी, और इस जैसे सैंकड़ों नाम है जिसे इस ज़िमन में पेश किया जा सकता है।
हमें उम्मीद ही नहीं बल्कि यक़ीन है कि आज का तब्सरा आपको मानीखेज़ लगा होगा।
हमारा इरादा है कि हम आपके लिए जल्द ही मशरिक़े वुस्ता यानि middle east के मसलों पर भी तब्सरा पेश करें और आपको बताएं कि आखिरकार यमन में तबाहकारी क्यों हो रही है? फ्रांस वहां क्यों जा धमका है? अरब ममालिक इस मसले को कैसे देखते है और ठीक इसी तरह लीबिया, मिस्र सहित सूडान और दीगर अफ़्रीकी मुल्कों के हालात पर भी तब्सरा हो, इसकी हमारी कोशिश है।
आपसे गुज़ारिश है कि इस तब्सरे पर आप हमें अपनी राय से ज़रूर वाक़िफ़ करें। इसके लिए आप कमेँन्ट सेक्शन का इस्तेमाल कर सकते है। शुक्रिया!
Note- ये लेखक के अपने विचार है।