कन्हैया बेगूसराय से ही चुनाव क्यों लड़ना चाहते हैं?

Anamika Singh

जबकि वो अबतक वामपंथी चेहरे के रूप पूरे देश में प्रसिद्ध हो चुके हैं.दिल्ली, गुजरात से लेकर वे केरल तक भाषण देने पहुँच गए. तो ये पूरे देश मे कहीं से भी चुनाव लड़ सकते हैं.

आइये थोड़ा सा मामला समझते.

कहा जाता है बेगूसराय वामपन्थियों का अड्डा है, लेकिन वामदल वहाँ मात्र एक बार चुनाव जीती है.
जबकि नवादा, नालन्दा जैसे निर्वाचन क्षेत्रों में दो या दो अधिक बार वामदल चुनाव जीतकर आयी है.

2014 में राजद(लालू यादव) से मुसलमान नेता लड़े थे लेकिन हार गए.उससे पहले में जदयू(नीतीश कुमार) से मुसलमान नेता लड़े और जीत गए.
इस बार महागठबंधन से मुसलमान उम्मीदवार खड़ा करने की तैयारी है. तो मुसलमानो का सीट खाने पर क्यों तुले है कन्हैया.

बिहार में कन्हैया की सच्चाई सभी भूमिहारो को पता है, वहां के सवर्ण लंठ नहीं है बाकी राज्यों के सवर्णो की तरह जो कन्हैया को देशद्रोही कह दे.
बिहार के सवर्ण चाहते हैं कि मोदी जीते पर कन्हैया भी बेगूसराय से चुनाव लड़े और जीते.
ये बात आपको खुलेआम बिहार के सवर्ण कहते हुए मिल जाएंगे.
दरअसल ये लोग सदा सदा के लिए मुसलमानो की राजनीति बेगूसराय से खत्म कर देना चाहते हैं.
बेगूसराय 20% मुसलमानो की आबादी से भरी है.

यहां पर वामदल मात्र एक बार लोकसभा चुनाव 1967 में जीतती है,जबकि 1980,1984, 1989,1991,1996 और 2004 में तो वामपंथी दलों ने अपना उम्मीदवार भी नहीं उतारा.

हालांकि इसबार भी बेगूसराय में वामदल अकेले चुनाव जीत ले तो बिल्कुल सम्भव नहीं.इसलिए मीडिया जबरदस्ती बेगूसराय को वामपंथ का अड्डा और लेनिनग्राद कह कर प्रचारित किया जा रहा है.और बार बार वामदल तथा राजद से गठबंधन की फ़र्ज़ी खबरे चलाई जाती हैं.

अगर कन्हैया को वाकई वामपंथी विचारधारा पर चुनाव लड़ना है तो नवादा चुनाव क्षेत्र से लड़े जोकि भूमिहारो और यादव दबंगो का गढ़ रहा है.(यहां का यादवो में लालू यादव का कोई क्रेज नहीं है)
जय भीम और लाल सलाम का नारा भी बुलन्द होगा.
यहाँ 30% जनसंख्या दलितो की है. उन्हें कुछ बेहतर लाभ हो कन्हैया के वामपंथी विचारधारा से.

जाति की बात आते ही कन्हैया छटपटाने लगते हैं.
बीबीसी द्वारा ‘बोले बिहार’ में दिए गए उनके इंटरव्यू में तो यही दर्शाता है.
इस प्रोग्राम को मोडरेट कर रही है रूपा झा जब उनसे जाति को लेकर सवाल करती हैं तो वे लेनिन की कथा सुनाने लगते हैं.
वरिष्ठ पत्रकार मणिकांत ठाकुर भी जब उनसे जाति से मिलने वाली प्रिविलेज की बात करते हैं तो कन्हैया की छटपटाहट साफ नजर आती है.

सवर्ण आरक्षण पर भी बिना कोई टिप्पणी नहीं है.
13 पॉइंट रोस्टर पर चुप्पी.

“रवीश कुमार ने एक बात कही थी. जो जाति के मसले पर बात नहीं करना चाहता है वो सबसे बड़ा जतिवादी है”

पता नही इनका जय भीम और लाल सलाम कैसा है।

सम्वेदनाओं को हथियार बनाकर इन्होंने चुनाव लड़ने की सोची है तो जनता के लिए ये भी मोदी साबित होंगे.
रोहित वेमुला या नजीब की माँ इनके लिए वाकई बड़ा मुद्दा हैं तो इन्हें बेगूसराय से कम से कम चुनाव नहीं लड़ना चाहिए.

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