पुष्पम प्रिया चौधरी : दक्षिणपंथी विचारधारा का नया चेहरा

साक़िब सलीम
उमर अशरफ़

फिर क़फ़स में शोर उठ्ठा क़ैदियों का और सय्याद
देखना उड़ा देगा फिर ख़बर रिहाई की

अहमद फ़राज़ का ये शेर दिमाग़ में उस दम फिर एक बार ताज़ा हो गया जब बिहार में चुनावों की सरगर्मियों के साथ एक नयी पार्टी और उसकी नेता ने नए लुभावने वादों की लिस्ट लोगों के सामने रख दी। ये नेता पुष्पम प्रिया चौधरी हैं और पार्टी है प्लुरलस।

कल अपने एक मित्र के कहने पर हमने सुश्री चौधरी का लल्लनटॉप के सौरभ द्विवेदी को दिया गया डेढ़ घंटे का इंटरव्यू सुना। यक़ीन जानिए हम उनके इस इंटरव्यू से मंत्रमुग्ध हो गये हैं। पहली बार लगा कि भारत को एक ऐसा राजनीतिज्ञ मिला है जो जनता से झूठ नहीं बोलेगा। वरना घटिया से घटिया राजनीति करने वाले और लोगों की लाशों पर सियासत का खेल खेलने वाले हमारे नेता भी खुल कर कैमरे के सामने ये नहीं कहते कि वे तानाशाह बनना चाहते हैं, देश पर विदेशियों का राज क़ायम करना चाहते हैं, बड़े बड़े औद्योगिक घरानों (अंबानी, टाटा, अदानी आदि) के हाथों देश को बेचना चाहते हैं, ज़मींदारी क़ायम करना चाहते हैं और आरक्षण की व्यवस्था को भी ख़त्म करना चाहते हैं। लेकिन धन्य हैं सुश्री चौधरी जो डंके की चोट पर ये सब अपने इंटरव्यू में कह गयी। ये अलग बात कि उन्होंने हिंदी के चैनल पर, हिंदी के सवालों का, हिंदीभाषी राज्य के लोगों के लिए अंग्रेज़ी में जवाब दिया।

यूँ तो इस इंटरव्यू में उन्होंने बहुत कुछ कहा जिस से उनकी सियासी समझ का परिचय होता है पर कुछ मुख्य बिंदु हम यहां रखना चाहेंगे।
शुरुआत में ही एक सवाल के जवाब में वह कहती हैं कि भारत में आजतक एक ही असली जन नेता हुआ है जो कि सुभाष चंद्र बोस हैं। इसके अलावा बाक़ी सब नेताओं को नेता मानने से इंकार कर देती हैं। बिहार से वह केवल डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद और जयप्रकाश नारायण को नेता मानती हैं लेकिन उनको भी ‘नेताजी’ नहीं मान पाती। यक़ीन जानिये भारत में ऐसा साफ़गो नेता आजतक नहीं हुआ। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जो कि एक ऐसी पार्टी से आते हैं जिसका गाँधी नेहरू विरोध जगज़ाहिर है वह भी किसी मंच से यह नहीं कह पाते कि गाँधी, नेहरू, लोहिया आदि असली नेता नहीं थे और दीन दयाल उपाध्याय या श्यामा प्रसाद मुखर्जी ही असली नेता थे।

इंटरव्यू में एक अन्य जगह उन्होंने दावा किया है कि बिहार के बाहर बिहारीयों के साथ भेदभाव होता है और इसका कारण वह नेताओं को मानती हैं। उनका कहना है आजतक जितने भी नेता बिहार से हुए उनको देखकर लोगों को लगता है कि बिहार के आमतौर पर लोग ऐसे ही हैं। ये भी हिम्मत का काम है कि आप ये कह दें कि बाबू जगजीवन राम, रामविलास पासवान, लालू प्रसाद यादव, अब्दुल ग़फ़ूर आदि को आप यह कह दें कि देखिये इनके कारण बिहार की छवि धूमिल हुई है।

नेताओं पर ही रहें तो उन्होंने ये भी दावा किया कि न तो वह तेजस्वी यादव और चिराग़ पासवान से मिली हैं और न उनके विचारों से अवगत हैं। उनके हिसाब से इसकी ज़रूरत ही नहीं क्योंकि वह जानती हैं कि वह सही हैं और ये दोनों युवा नेता ग़लत। एक बार फिर ये पहली भारतीय नेता हैं जो खुलेआम स्वीकारती हैं कि उनका विरोध सिर्फ़ और सिर्फ़ विरोध के लिए है न कि विचारों के लिए क्योंकि अपने विरोधियों के विचार तो वो जानती ही नहीं। उनका औचित्य केवल इतना है कि तेजस्वी और चिराग़ उनकी पार्टी में नहीं हैं।

आगे चलकर वह वर्तमान राजनीती में केंद्रीकरण की बुराई करते हुए यह कहती हैं कि अधिकतर पार्टियाँ भारत में नेताओं के इर्द गिर्द घूमती हैं जो कि नहीं होना चाहिए। लेकिन सवाल ये उठता कि वह तो खुद अपनी पार्टी का अकेला चेहरा हैं और चुनावों से या किसी संगठन से पहले ही ख़ुद को मुख्यमंत्री पद की दावेदार घोषित कर चुकी हैं। सौरभ ने ये सवाल उठाया भी। उस समय तो मैं सुश्री चौधरी का क़ायल हो गया जब उन्होंने जवाब दिया कि बाक़ी सब पार्टी भी तो ऐसा ही करती हैं। तो यहाँ सिस्टम को बदलने वाली एक ऐसी पार्टी है जो सवाल के जवाब में यह कहेगी कि देखो कांग्रेस, भाजपा, राजद, जदयू अदि ने भी तो ऐसा किया।

यहाँ तक तो मैं केवल उनकी साफ़गोई पर फ़िदा था लेकिन आगे चल कर उन्होंने जो कुछ कहा वो भयावह था। यही कारण है कि हमने ये लेख लिखना ज़रूरी समझा। सुश्री चौधरी का मानना है कि सरकारी विभागों संस्थाओं को अधिक स्वतंत्रता प्रदान करने की आवश्यकता है। भारत में जितने भी राजनीति, समाज, इतिहास अदि के जानकर हैं सभी इस बात की गहराई समझ सकते हैं। यदि पुलिस, प्रशासन अदि की जवाबदेही आप जनप्रतिनिधियों से हटा देंगे तो क्या होगा। जो कोई भारत के गाँव या शहर में रहा है वह इसके परिणामों से भलीभांति परिचित है। पुलिस को आप और मज़बूत करना चाहते हैं, तहसीलदार की जवाबदेही काम करना चाहते हैं एक बार भारत के आम नागरिक से इसका मतलब समझिये। इसके आगे वह खुल कर कहती हैं कि ऐसा करने के लिए उनको ‘absolute power’ (पूर्ण सत्ता) चाहिए ताकि पूरा सिस्टम बदला जा सके। इतनी एब्सोल्यूट पावर का मतलब तानाशाही होता है। मेरे ख़्याल में यह पहला ऐसा मौक़ा है जब भारत के किसी नेता ने खुलेआम तानाशाह बनने की मंशा ज़ाहिर कर दी है।

पूरे इंटरव्यू में पुष्पम प्रिया चौधरी बार बार यह दोहराती हैं कि वह ज़मीनी सच्चाई को बिहार के किसी भी नेता से ज़्यादा जानती हैं क्योंकि वह लंदन से पढ़ कर आयी हैं। उन्होंने वैसे तो ख़ुद ही माना कि वह ख़ुद ‘ख़्वाबों के महल तामीर करते हैं’ लेकिन तब भी उनको शायद इल्म नहीं कि वो सिर्फ़ मास्टर्स हैं और बिहार की राजनीती में अच्छे अच्छे संस्थानों से पीएचडी करे हुए नेता भी मौजूद हैं। जहां तक बात लंदन से पढाई की है समाजशास्त्र की समझ रखने वाला कोई भी व्यक्ति यह समझता है कि मेरी पढ़ाई का कारण ये क़तई नहीं कि मैं अधिक बुद्धिमान हूँ। बल्कि मेरी पढ़ाई का कारण ये है कि मेरी जाति, आर्थिक स्थिति और घर के हालात के कारण मैं पढ़ सकता था। देश में उन्होंने सिम्बायोसिस, पुणे से ग्रेजुएशन किया था इसके मुक़ाबले बिहार में ही शरजील ईमाम (IIT + JNU), कन्हैया कुमार (JNU), रघुवंश प्रसाद सिंह (professor) अदि मौजूद हैं। पढ़ाई में ये सब लोग उनसे कहीं आगे हैं।
उनकी इसी सोच का कारण है कि वह ये दावा भी कर बैठती हैं कि आरक्षण की ज़रूरत नहीं है, जाति एक असली मुद्दा नहीं है और लोग अपने टैलेंट के हिसाब से आगे बढ़ेंगे। जाति व्यवस्था में टैलेंट क्या होता है ? अगर इनके माता पिता प्रोफ़ेसर न होते और राजनीति में सक्रीय न होते तो क्या सुश्री चौधरी और इनकी बहन वहां पहुँच पाते जहाँ वो हैं ?
इन्होंने इंटरव्यू में ये वादा भी किया कि ये ‘लैंड रेडिस्ट्रीब्यूशन’ (ज़मीन का पुनरावंटन) नहीं करेंगी। केवल मशीन द्वारा उत्पाद बढ़ाएंगी। यानिकि ये भी कह दिया गया कि जिनके पास ज़्यादा ज़मीन है (यानि कि अगड़ी जातियों के लोग) वो और अमीर होते जायेंगे जबकि ग़रीब और ग़रीब क्योंकि मशीन के साथ खेत पर मज़दूर की तादाद घटेगी और ज़मीन उसको ये देंगे नहीं। जबकि ज़मीन के मालिक बिना मज़दूर उत्पाद बढ़ाएंगे।

उनका वादा ये भी है कि बड़े बड़े उद्योगपतियों को बिहार में बुलाया जायेगा। वह सरकारी व्यवस्था को सुदृढ़ करने की नहीं बल्कि उद्योगपतियों को सुदृढ़ करने की हितैषी हैं।
पैसे के सवाल पर उन्होंने ये भी कहा कि उनको लंदन के उनके साथी मदद करते हैं। मतलब देश में एक ऐसी राजनितिक पार्टी राज करने जा रही है जो खुल कर विदेशियों द्वारा चलायी जाएगी।
काबा किस मुंह से जाओगे ग़ालिब
शर्म तुमको मगर नहीं आती

(दोनों ही लेखक इतिहासकार हैं और www.heritagetimes.in के सम्पादक है

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is a young journalist & editor at Millat Times''Journalism is a mission & passion.Amazed to see how Journalism can empower,change & serve humanity