अशफाक कायमखानी।जयपुर।
राजस्थान के हजारो मदरसा पैराटीचर्स पिछले पांच दिन से कांग्रेस पार्टी के अपने चुनावी घोषणा पत्र मे किये वादो के मुताबिक अपनी वेतन वृद्धि व नियमतीकरण की मांग को लेकर प्रदेश के जिला व तहसील स्तर पर सुव्यवस्थित आंदोलन चलाकर धरना, शवयात्रा, प्रदर्शन व रेलीया निकालकर अशोक गहलोत सरकार को किये वादे को याद दिलाने के बावजूद सरकार के कान पर अभी तक किभी तरह की जूं तक नही रेंग रही है।
न्यूनतम मजदूरी से भी कम वेतन पर कार्यरत वेल क्वालीफाईड मदरसा पैराटीचर्स का पिछले दस साल मे किसी भी तरह से वेतनवृद्धि नही होने के बाद जब इन कर्मियो ने अपनी मांग सरकार के सामने रखी तो सरकार ने इनके बजाय इनसे कम शैक्षणिक योग्यता रखने वाली आंगनबाड़ी वर्करस का वेतन बढाकर इनसे अधिक वेतन करने की बजट मे घोषणा जरुर की लेकिन मदरसा पैराटीचर्स के साथ न्याय नही किया तो मजबूरन राजस्थान मदरसा पैराटीचर्स संघ ने 21-जुलाई से मदरसा छोड़कर सड़क पर आकर लोकतांत्रिक तरिके से आंदोलन का रुख अख्तियार करने पर भी सरकार व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत इनको न्याय देने के बजाय आज तक अपने अड़यल रुख पर कायम है।
राजस्थान मदरसा पैराटीचर्स संघ के अध्यक्ष मसूद अख्तर व उर्दू टीचर्स संघ के अध्यक्ष आमीन कायमखानी ने बताया कि पूरे राजस्थान के सभी मदरसा पैरा टीचर्स 21-जुलाई से आंदोलन पर है। वो झाड़ू लगाकर, धरना देकर, पुरुष टीचर्स टोपलेस होकर, भीख मांगकर मुख्यमंत्री राहत कोष मे इकठ्ठा हुई भीख जमा कराकर, शवयात्रा निकालकर, पुतला दहन करके सरकार से लोकतांत्रिक तरिके से अपनी मांगे मानने की अपील कर रहे है। जबकि 26-जुलाई को पूरे राजस्थान मे जगह जगह एक साथ आक्रोश रैली निकाल कर सरकार को मदरसा पैराटीचर्स संघ के साथ किया वादा याद दिलाया है।
राजनीति का मुल सिद्धांत है कि सरकारें उसी तबके की मांगो पर अधिक ध्यान देती है जो मतो की ताकत से सरकार व राजनीतिक पार्टी को नूक्सान पहुंचा सकते है। राजस्थान के मदरसा पैराटीचर्स मे अधीकांश मुस्लिम तबके से आते है। जो मुस्लिम तबका बीन मांगे चुपचाप चलकर वोटबैंक की तरह कांग्रेस पार्टी को ही हर हाल मे प्रत्येक चुनाव मे मतदान करने आना तय है। राजस्थान मे भाजपा व कांग्रेस के मध्य ही मुकाबला होता रहा है। तीसरा विकल्प मोजूद नही होने के कारण भाजपा की तरफ मुस्लिम मतदाता के नही जाने के कारण एकमात्र विकल्प के तौर पर उनके पास कांग्रेस के पक्ष मे मतदान करना रहता है। इसी मजबूरी व लाचारी के कारण अशोक गहलोत के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार मुस्लिम समुदाय की जायज मांगो से भी बराबर किनारा करती आ रही है।
हालांकि राजस्थान मे मोबलिंचीग की बढती घटनाओं पर सरकार की उदासीनता के अलावा अशोक गहलोत की पीछली सरकार मे गोपालगढ मे मस्जिद मे नमाजियों पर गोली चलाकर मारने के अलावा सूरवाल मे थानेदार फूल मोहम्मद को डयूटी पर जींदा चलाकर मारने के अतिरिक्त अभी इसी महिने सिपाही अब्दुल गनी को भी राजसमंद मे डयूटी पर भीड़ द्वारा लाटियो से पीट पीटकर मारने के अतिरिक्त कोटा मे बांरा के कैदी रमजान खान को पुलिस गार्डो द्वारा मारने की घटना के सहित अनेक घटनाओं से मुस्लिम पिडिंत हो चुके है। सिपाही अब्दुल गनी को मोत के बाद उसे शहीद का दर्जा ना देने के साथ उनकी शवयात्रा मे सरकार के किसी भी जनप्रतिनिधि का शामिल ना होने के अलावा किसी तरह का ब्यान तक ना आना बडा अफसोसजनक माना जा रहा है।
राजस्थान मदरसा पैराटीचर्स की जायज मांगो के पक्ष मे सत्ता पक्ष सहित अनेक निर्दलीय विधायको के जोरदार ढंग से विधानसभा मे आवाज उठाने के अलावा सड़क पर चल रहे आंदोलन मे आम जनता के जुड़ाव को देखते हुये आंदोलन विशाल रुप अख्तियार करता नजर आ रहा है। अगले चार माह मे राजस्थान मे स्थानीय निकाय व पंचायत चुनाव होने वाले है। अगर मदरसा पैराटीचर्स की जायज मांगो के प्रति सरकार की बेरुखी के चलते जनता का कांग्रेस से जरा सा भी मोहभंग होता है तो कांग्रेस पार्टी की इन चुनावो मे लूठीया डूबना तय है। हालांकि मदरसा पैराटीचर्स का राजस्थान के इतिहास मे एक मात्र नियमतीकरण भाजपा की वसुंधरा राजे सरकार के समय होकर उस समय के मदरसा पैराटीचर्स सरकारी अध्यापक बनाये गये थे। लेकिन कांग्रेस की अशोक गहलोत के नेतृत्व मे बनी तीसरी दफा सरकार मे आज तक कभी भी मदरसा पैराटीचर्स का नियमतीकरण नही हो पाया है। जिसका मात्र कारण हर हाल मे समुदाय का वोटबैंक बने होना माना जा रहा है। जबकि पहली दफा अब जाकर मदरसा पैराटीचर्स ने बडा आंदोलन छेड़कर सरकार के सामने मुश्किल हालात बनाये है।