शिवसेना के‘बुर्क़ा बयान’का बुर्क़ा से कोई लेना-देना नहीं है!

शीबा असलम फ़हमी
बुर्का पर प्रतिबंध लगाने के शिवसेना के हालिया बयान का आतंकवाद या सुरक्षा से कोई लेना-देना नहीं है। यह सिर्फ़ उनके दक्षिणपंथी निर्वाचन क्षेत्र को बनाए रखने के लिए है और उसे विश्वास दिलाने के लिए है कि एनडीए मुसलमानों को प्रभावी ढंग से विचलित कर रहा है।
चूंकि उनके 5 साल के कार्यकाल के रिपोर्ट कार्ड में लोगों के सामने रखने के लिए कुछ भी सकारात्मक नहीं है, इसलिए इस चुनाव में नफ़रत और डर फैलाना उनकी एकमात्र बैसाखी है।

यहां यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि बुर्का पहने महिलाओं को सुरक्षा जांच से मुक्त नहीं किया गया है, बुर्क़ा पहने महिलाओं को किसी भी अन्य व्यक्ति की तरह शारीरिक जाँच होती है और ये भी की भारत में किसी भी आतंकवादी घटना में बुर्क़ा का इस्तेमाल कभी नहीं किया गया है।
जहाँ तक आतंकवाद का सवाल है तो अगर शिवसेना वास्तव में गम्भीर है इसको लेकर तो फिर एनडीए द्वारा आतंकवादआरोपी को क्यों मैदान में उतारा गया है?
ये भी ध्यान में रखा जाए की कृषि संकट के तहत महाराष्ट्र के मराठी मानुस ख़ुद अपनी ईहलीला समाप्त कर रहे हैं और आत्महत्या में मरनेवाले किसानो की संख्या आतंकवाद में मरनेवालों से कहीं ज़्यादा है महाराष्ट्र में।

जनता के बीच सुशासन और विकास का कोई कारनामा ना हो तो वातावरण का ध्रुवीकरण शिवसेना का एक मात्र सहारा है। हालत ये है की मोदी सरकार के समर्थक भी आर्थिक बदहाली से त्रस्त हैं, उनको रिझाने के लिए ये नफ़रत और भय का माहौल बनाया जा रहा है।

बुर्क़ा पर शिवसेना के साथ नहीं आने वाली भाजपा नूरा कुश्ती कर रही है, इन दोनो सहयोगियों की कोशिश ये है की फ़र्ज़ी मुद्दों से मीडिया का समय बर्बाद किया जाए ताकि असली सवाल जैसे नोटेबंदी, कालधान, रोज़गार, पुलवामा में चूक, रफ़ाल का विराट भ्रष्टाचार और भगोड़े मोदी-मित्रों पर देश बात ना करे। कोरपोरेट मीडिया के लिए भी यही सुविधाजनक है की वो अपने मालिकों के भ्रष्टाचार पर पर्दा डाल सके और नक़ली मुद्दों को जनता के सामने परोसती रहे। लोगों के सहज और वास्तविक सवाल पूछने से भारतीय मीडिया पिछले पाँच साल से बच रही है।

-शीबा असलम फ़हमी

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is a young journalist & editor at Millat Times''Journalism is a mission & passion.Amazed to see how Journalism can empower,change & serve humanity