साल बदले,प्रत्याशी बदले,प्रत्याशियों ने भी अपने पाले बदले,जनता ने अपना इरादा बदला,चुनाव आयोग ने भी इस लोकसभा का परिसीमन बदला यह सबकुछ बदलता रहा लेकिन नहीं बदली क्षेत्र की बदहाली की तस्वीर।
आज बात करते हैं उत्तर प्रदेश के 57 लोकसभा कैसरगंज की जो अब भी विकास की उम्मीद लगाए हुए एक टकटकी सी नज़र देख रहा है दिल्ली के उन हुक्मरानो की तरफ जो चुनावी घटा में आते हैं ,छा जाते हैं ! थोडी बहुत बारिश करते हैं और फिर उड़ जाते हैं “लगान” फिल्म के बादल की तरह जो शायद फिर दोबारा 5 साल बाद चुनावी ऋतु में ही लौटेगा।
5 विधानसभा में फैले हुए इस लोकसभा में 2 विधानसभा (कैसरगंज ,पयागपुर ) बहराइच जनपद की और बाकी की 3 विधानसभा ( कटरा बाजार ,कर्नलगंज,तरबगंज ) गोंडा जनपद की शामिल की गयी हैं। आज समझते है इस लोकसभा का पूरा गणित , चुनावी बयार और वो सबकुछ जो आप समझना चाहते है
क्या रहा है इतिहास !
स्वतंत्र भारत के इतिहास में सबसे पहली बार इस लोकसभा के चुनाव के लिए तारीख़ मुक़र्रर की गयी 25 फरवरी 1957 की। चुनाव हुआ और वोट पड़े कुल 40 फ़ीसदी से भी कम । इस सीट से पहली बार कांग्रेस के उम्मीदवार भगवान् दींन ने निर्दलीय मोहम्मद शाद को पटखनी देकर मैदान मार लिया।उसके बाद चुनाव हुए 1962 में लेकिन तब बसंत कुंवारी ने ये सीट कांग्रेस से छीन ली। ठीक 5 साल बाद यानी 1967 में हुए आम चुनावों की जब गिनती खत्म हुई तो इस लोकसभा से भारतीय जनसंघ के टिकट से चुनी गयी संसद का नाम था शकुंतला नय्यर जो उसके बाद हुए 1971 का चुनाव भी जीत गयीं । देश 1977 में एक बार फिर आम चुनाव की दहलीज पर खड़ा था और चनावी आंकड़े जो इस बार आये तो संसद में पहुँचने का अधिकार भारतीय लोकदल के प्रत्याशी रुद्रसेन को मिला। 1980 की चुनावी सफलता रामवीर सिंह के हाथ लगी जो INCI के टिकट से चुनाव लड़े थे । 1984 के चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी रामवीर सिंह ने लोकदल के निशान पर पहली बार चुनाव में उतरे बेनी प्रसाद वर्मा को हराकर दोबारा जीत का स्वाद चखा । 1989 में एक बार फिर कांग्रेस गयी और भाजपा आयी उसके 2 साल बाद 1991 में भाजपा का डंका फिर बजा और वो जीत गयी। 1996 ,1998 ,1999 और 2004 में हर बार बेनी प्रसाद वर्मा इस सीट से चुने गए !आगे उसका ज़िक्र है।
बेनी प्रसाद वर्मा
कैसरगंज की ये सीट बेनी प्रसाद वर्मा और सपा का दुर्ग कही जानी लगी जिसे भेदने में लोहे के चने चबाने जैसी हालत हो जाती थी। बेनी प्रसाद 4 बार लगातार इसी सीट से दिल्ली के दरबार में हाजिरी लगते रहे और पूर्वांचल के एक बहुत बड़े नेता के रूप में उभरे। चुनाव आया सन 2009 का सपा में अंदरूनी कलह और बेनी का पार्टी के बाहर हो जाना फिर अपनी अलग पार्टी समाजवादी क्रांति दल बनाना और उसकी नाकामयाबी के बाद सीट और पार्टी दोनों बदल कर गोंडा पहुँच जाना। बेनी बाबू के इस सीट को छोड़ने की एक प्रमुख वजह ये बताई जाती है की चुनाव आयोग ने इस सीट का परिसीमन बदल दिया था तो उस वजह से बेनी प्रसाद का अपना वोट बैंक जो पहले बाराबंकी की कुछ विधानसभा में था वो फिसलता दिखाई दिया और उन्होंने अपने लिए कैसरगंज छोड़कर गोंडा को चुन लिया। इन सबके बीच बेनी प्रसाद ने समजवादी क्रांति दाल नामक एक पार्टी का गठन भी किया जिसे वो परवान नहीं चढ़ा सके और स्थिति को भांपते हुए उन्होंने कांग्रेस का दामन थाम लिया। 2014 का चुनाव हारने के बाद बेनी प्रसाद राजनीति से बिलकुल अद्र्श्य हो गए। फिलहाल उनके दोबारा समाजवादी पार्टी में शामिल होने की अटकलें चल रही हैं।
ब्रज भूषण शरण सिंह
बेनी प्रसाद के मोहभंग के बाद 2009 में इंट्री होती है सपा के टिकट पर बाहुबली बृजभूषण शरण सिंह की जो भाजपा छोड़कर समाजवादी पार्टी का दामन थाम लेते हैं।नेताजी का आशीर्वाद उन्हें मिलता हैं और वो समाजवादी पार्टी की तरफ से परचा भरते हैं। 2009 के चुनाव में बृजभूषण और सपा दोनों अपनी अपनी सीट पर कब्ज़ा बरक़रार रखते हैं। चुनावी साल आता है 2014 का और चुनावी दंगल के अखाड़े में नेता अपनी कुश्ती के लिए फिर ज़ोर आज़माइश करते हैं। नए राजनितिक समीकरण को देखते हुए एक बार फिर भाजपा का ये खिलाडी समाजवादी हेलमेट उतार कर भाजपा के पाले में जाकर चुनावी रणभूमि में उतरने का फैसला कर लेता है।नरेंद्र मोदी की बहराइच में आयोजित रैली के मंच से ही स्थति साफ़ हो जाती है की अब भाजपा के टिकट से ब्रजभूषण को उतारा जायेगा। हालांकि उससे पहले ही समाजवादी पार्टी ने कैसरगंज की सीट से ब्रजभूषण शरण सिंह को अपना उम्मीदवार बनाने की आधिकारिक घोषण कर दी थी। सपा के लिए 2014 के चुनाव में इस सीट को बचाए रख पाना मुश्किल हो रहा था। वहीँ दूसरी तरफ पूरे देश में मोदी लहर चल रही थी। इस स्थिति में सपा ने गोंडा से अपने सिटिंग विधायक और तब के मंत्री विनोद कुमार उर्फ़ पंडित सिंह को इस सीट से ज़ोर आज़माइश के लिए उतार दिया। हालाँकि जब चुनावी मतगणना से पर्दा हटा तो मिलेजुले समीकरण के भरोसे एक बार फिर बृजभूषण शरण सिंह अपने निकटतम प्रतिद्विंद्वि समाजवादी के पंडित सिंह को धूल चटा कर दिल्ली के दरबार पहुँचने में सफल हो जाते हैं ।
लोकल मुद्दे और समस्या
जनाब मुद्द्दे तो यहाँ हर पान और चाय की दूकान के अलग ही होते हैं लेकिन फिर भी अगर निचोड़ा जाये तो कुल मिलकर 3 -4 समस्याओं का मिश्रित रस निकलेगा लेकिन जब चुनाव आता है तो काले बादलों के सामने इंद्रधनुष खड़ा कर दिया जाता है ,वोटरों को हरियाली और विकास का चश्मा पहनाया जाता है भले ही सावन आने में बड़ा टाइम बाकी हो। लोकल मुद्दे हावी रहते हैं लेकिन इंटरनेट और जियो के जमाने में सब कुछ अंतर्राष्ट्रीय बन चुका है मियां। लोकसभा में एक भी इतना बढ़िया कॉलेज नहीं है जो बाहर से आने वाले छात्रों को तो छोड़िये सिर्फ अपने ही जिले के बच्चो को बढ़िया शिक्षा दे सकें। अस्पताल के नाम पर लखनऊ की तरफ ही मुंह ताकना पड़ता है ,जिला अस्पताल में वही सरकारी हाल और वही सरकारी तंत्र। यातायात के मामले में शहरी और क़स्बाई इलाक़ा छोड़कर कभी कोई जाम वाम की दिक्कत ही नहीं होती है सब कुछ बिलकुल अपने फ्लो में चलता है और चलता ही रहेगा। कारोबार के मामलो में तो लखनऊ, दिल्ली ,मुंबई और गुजरात है न ! अब ज़्यादा पैसा कमाना है तो घर छोड़ना ही पड़ेगा न भाई, तो बस इस मन्त्र के साथ बेरोजगार लोग पलायन करते हैं वृद्ध व्यक्ति कृषि के भरोसे रहते है और जिनको बहुत ज्यादा पैसा कमाने की जिज्ञासा रहती है तो खाड़ी देश में झंडा बुलंद ही करते हैं भारतवर्ष का।
सबसे चौंकाने वाली बात ये है की उद्योग बिलकुल न के बराबर होने के बावजूद भी दुनिया के टॉप गंदे शहरो में शामिल हो चूका है ये क्षेत्र हालांकि उसके बाद बहुत सारी तैयारियां की गयी हैं लेकिन अभी उनको परवान चढ़ने में समय ही लगना है। कुछ इलाक़ा बाढ़ प्रभावित होता है हर साल बारिश आती है और लोगो के घर का पता बदल कर चली जाती है। ये समस्या भी कोई नयी नहीं है लेकिन जैसे जैसे बाढ़ का पानी घटता है वैसे वैसे अखबार की मुख्य पृष्ठ की ख़बरें अंदर के पन्नो के छोटे से कॉलम्स में सिमट जाती हैं और मामला अगले साल के लिए मुल्तवी ,फिर नया साल , फिर बाढ़ ,फिर तकरार , फिर सुर्खियां कुछ सरकारी एलान और मामला ठप्प।
2 साल पहले के चुनाव में क्या हुआ था !!
यहाँ भी बिकुल वही हुआ था जहाँ पनाह जो पूरे प्रदेश में हुआ था फिर भी जानना चाहते हो तो सुनो ! अखिलेश दे दनादन उद्घाटन कर रहे थे लखनऊ में बैठकर और उधर योगी जी धुंवा धार प्रचार कर रहे थे। अखिलेश राहुल ने हाथ मिलाया लेकन भाजपा के रथ रोक नहीं सके हालत ये हो गयी की इस लोकसभा की पांचों विधानसभ में एक भी सीट किसी दुसरे को नहीं मिली और सब गर्दे में उड़ गए भाजपा के। कहते हैं की अखिलेश से जनता इतना नाराज़ नहीं थी लेकिन भाजपा को भी एक और मौक़ा जनता देना ही चाहती थी विधानसभा में। तो आइये फटाफट जान लेते हैं इस लोकसभा की 5 सीटों का 2017 में पूरा चुनावी लेखाजोखा।
२८८ कैसरगंज विधायक -मुकुट बिहारी
विधानसभा विजेता निकटतम प्रतिद्विंद्वी
287 पयागपुर भाजपा 102254 सपा 60713
288 कैसरगंज भाजपा 85723 बसपा 57792
297 कटरा भाजपा 91949 सपा 61028
298 कर्नलगंज भाजपा 82664 सपा 54244
299 तरबगंज भाजपा 100057 सपा 61629
2 साल पहले हुए विधानसभा के चुनाव जिसे 2019 का सेमीफाइनल माना जा रहा था उसमे भाजपा ने इस लोकसभा की सभी विधानसभा जीत ली और समाजवादी पार्टी को चारो खाने चित कर दिया। अखिलेश ने वैसे तो नोटबंदी को लेकर सरकार पर निशाना साधा और उसे केंद्र की विफलता के रूप में को भुनाने की पूरी कोशश की लेकिन वो खुद इसे साबित करने में विफल हो गए।
कैसरगंज विधानसभा के विधायक को योगी की कैबिनेट में जगह मिली और पूर्वांचल को प्रतनधित्व भी। वर्तमान में मुकुट बिहारी वर्मा प्रदेश सरकार में सहकारिता मंत्रालय संभाल रहे हैं । हाल ही में उन्हें अम्बेडकर नगर लोकसभा क्षेत्र से पार्टी ने प्रत्याशी बनाय है। आगे की तस्वीर 23 मई के बाद ही साफ़ हो सकेगी।
पिछले लोकसभा का पूरा हाल
पूरे भारत में तो मोदी लहार चल रही थी 2014 में लेकिन उत्तर प्रदेश में मोदी की सुनामी आयी थी यहाँ तक की भाजपा के बड़े नेता भी इसी असमंजस में थे की कितनी सीट निकलेगी और कितनी नहीं। बहरहाल मोदी आये ,बहराइच के मैदान में धुंवाधार रैली की और उसी रैली में सारी आशंकाओं पर विराम लगाते हुए तब के सपा सांसद ब्रजभूषण शरण सिंह ने दोबारा भाजपा पार्टी ज्वाइन कर ली और टिकट लेकर ही लौटे। उस रैली में ये कहा जाता रहा कि भाजपा ने अखिलेश के उसी लैपटॉप का इस्तेमाल अपनी रैली और प्रचार में किया जो लैपटॉप अखिलेश ने मेधावियों को मुफ्त में बांटे थे । खूब डिजिटल प्रचार हुआ आईटी सेल्स बने हर चैराहे पर चाय पर चर्चा होने लगी और साथ में ब्रजभूषण शरण सिंह का अनुभव भी खूब काम आया।
2014 के चुनाव में सपा ने गोंडा से अपने सिटिंग मंत्री विनोद कुमार उर्फ़ पंडित सिंह को कैसरगंज बुलाया और मैदान में उतार दिया। कांग्रेस ने पयागपुर के तब के विधायक और कांग्रेस नेता मुकेश श्रीवास्तव पर दांव खेला वहीँ दूसी तरफ बसपा ने अपने टिकट पर केके ओझा को लड़ाया हालांकि टक्कर सिर्फ सपा का प्रत्याशी ही दे पाया। आखिरकार .जब चुनाव परिणाम आये तो इस सीट का हाल कुछ ये रहा ।
चुनाव परिणाम 2014 –57 लोकसभा कैसरगंज
फोटो साभार -यूटूयब
विधानसभा भाजपा सपा बसपा कांग्रेस
287पयागपुर 75422 44713 35518 21867
288 कैसरगंज 80002 78665 23611 8307
297 कटरा 75144 69829 27496 13742
298कर्नलगंज 64936 46450 32607 6109
299 तरबगंज 84880 63434 59339 7358
टोटल —–380384 303091 125341 57383 आखिरकार सपा का लगातार पांचवीं बार इस सीट से जीतने के बाद छठी बार तिलिस्म टूट गया और ब्रजभूषण लगातार छठी बार संसद के दरवाज़े पर दस्तक देने के लिए चुन लिए गए। भाजपा ने बहुत लम्बे अंतराल के बाद सपा के ही खिलाड़ी को अपने पाले में खींचकर ये सीट अपनी झोली में डाली ली। आखिरकार सपा का लगातार पांचवी बार इस सीट से जीतने वाला विजयी रथ रुक गया गया और ब्रजभूषण लगातार छठी बार संसद के दरवाज़े पर भाजपा के कमल निशान पर चुन लिए गए । सपा के हरे हुए प्रत्याशी को वापस गोंडा भेज दिया गया जहाँ से वो 2017 का विधानसभा चुनाव नहीं हार गए। तीसरे प्रत्याशी कांग्रेस के मुकेश श्रीवास्तव का अपनी सीट से कुछ मोहभंग हो गया और वो 2017 का विधानसभ चुनाव सपा के टिकट पर लाडे। बसपा प्रत्याशी केके ओझा फिलहाल राजनितिक रूप से सक्रिय नहीं हैं।
कैसा रहा विकास और अच्छे दिन का जादू —–
हुजूर-ए -आली विकास यहाँ हुआ लेकिन उतना नहीं जितना होना चाहिए था बस मान के चलिए उतनी मात्रा में विकास हुआ जितना की पान में कत्था। कई नेशनल हाइवे बनाये गए लेकिन क्रेडिट कभी अखिलेश लेते हैं तो कभी भाजपा सरकार। विद्यालय के नाम पर जगह जगह महाविद्यालय खोले गए हैं सांसद महोदय की तरफ से जिसमे अभी उच्च स्तरीय शिक्षा और आधुनिक शिक्षा देने में समय लगेगा ,स्मरण रहे की इस क्षेत्र में साक्षरता दर औसत से कम ही है । रोजगार के नाम पर बस वही हाल है जो बरसों से रहा था और आगे भी वही होने की उम्मीद है। स्वास्थ्य सेवाओं में ज़रूर पहले से हालात में काफी सुधार हुआ है और आगे भी उम्मीद की जा सकती है। देश में सबसे पिछडे शहर में नाम आने के बाद काफी तेजी दिखाई गयी है और इस दाग को मिटाने की कोशिश के लिए कई योजनाओ का एलान किया गया है हालांकि ये कब तक सफल होगी इस बारे में कहना थोड़ा मुश्किल लग रहा है।बाढ़ की समस्या के लिए कोई नया तटबंध नहीं बनाया हालांकि सरयू नहर परियोजना काफी दिनों से चर्चा में हैं। कुल मिलकर जनता एक बार फिर मैदान में है और लगान फिल्म वाला वही बादल दोबारा चुनावी बयार के साथ फलक पर छा गया है। जनता को उम्मीद है की इस बार ये काली घटायें ज़रूर इस धरती को अपने अमृत से तृप्त करेंगी लेकिन प्रत्याशी के मन में क्या है ये तो प्रभु ही जाने। एक बार फिर रेतीले और संकरे रास्तों , गलियों ,चौराहों और गाँव की पगडंडियों पर सभी प्रत्याशियों का काफिला निकल चुका है और जनता को सम्मोहित करनेकी पूरी कोशिश दिन रात की जा रही है। इस लोकसभा की जनता आपने मतों का प्रयोग पांचवें चरण में 6 मई को करेगी और अपना फैसला सुनाएगी।
प्रत्याशी और जातीय समीकरण
2019 का चुनावी बिगुल फूंक दिया गया है और सभी पार्टियों ने अपने अपने तरीके से चुनावी बिसात पर खिलाडियों को उतारना शुरू कर दिया है।
भाजपा ने अपने पुराने प्रत्यशी और मौजूदा सांसद 6 बार से अजेय रहे ब्रजभूषण शरण सिंह को दोबारा मैदान में उतार दिया है वहीँ महागठबंधन की तरफ से ये सीट बसपा के खाते में आयी है और उसने इस सीट से अलीगढ से बुलाकर पूर्व मंत्री चंद्र देव राम यादव उर्फ़ करैली यादव को टिकट दे दिया है। इसके अलावा उत्तर प्रदेश में दोबारा उभरने की कोशिश में लगी कांग्रेस पार्टी ने अपना प्रत्याशी २००९ में बलरामपुर सीट से सांसद रहे विनय कुमार पांडेय को बनाया है।
इस लोकसभा में सबसे अधिक ब्राहण मतदाता लगभग 4.5 लाख , मुस्लिम मतदाता 4 लाख, दलित मतदाता 3 .8 लाख ,2 .५ लाख दलित तथा बाकी अन्य हैं।
ये भविष्य के गर्भ में छुपा है और आने वाली 23 मई के बाद इस बात की तस्वीर साफ़ हो सक्केगी की 57 लोकसभा कैसरगंज से 2019 में संसद की सीट के लिए जनता ने किसे उपयुक्त माना है । क्षेत्र में अटकले लग रही है और समर्थक अपने अपने प्रत्याशियों के पक्ष में कैम्पेन कर रहे हैं और पूरे भारत की तरह ही यहाँ भी चुनावी तपिश और लोगों के एहसासों की गर्मी से जनमानस को प्रभावित करने और अपनी तरफ समर्थक जुटाने की भरपुर कोशिश की जा रही है।
अंत में मतदाताओं से अपील ! कि अपने वोट का भरपूर इस्तेमाल करें अपने बुद्धि ,विवेक से बिना किसी डर और दबाव के स्वेच्छा से इस चुनाव में अपने मत का प्रयोग करके एक स्वस्थ लोकतंत्र को संजीवनी देने के काम में अपना योगदान अवश्य दें।
WRITER -MOHD SAIF ALIAS SAIFI UROOZ
डिस्क्लेमर —चुनाव् परिणाम के सभी आंकड़े उत्तर प्रदेश चुनाव आयोग की आधिकारिक वेबसाइट्स से ली गयी हैं और सभी राजनेताओं की तस्वीर उनके सोशल मिडिया एकाउंट से ली गयी हैं।