डॉ मोहम्मद मंजूर आलम
इलेक्शन 2019 की तारीखों का ऐलान हो चुका है सभी पार्टियों की तैयारियां जारी है 23 मई को परिणाम भी सामने आ जाएगा देश में किसकी सरकार बनेगी या बीजेपी का सत्ता बरकरार रहेगा या वर्तमान अपोजिशन पार्टीयों को सरकार बनाने का मौका मिलेगा अपोजिशन पार्टियों के दरमियान इस बात पर मुकम्मल इत्तेफाक है कि पिछले 5 सालों में भारतीय संविधान और दस्तूर की धज्जियां उड़ाई गई है संविधान को कुचलने की मुकम्मल तौर पर कोशिश हुई है संविधान और सत्ता का दुरूपयोग किया गया है और अगर यह सरकार दोबारा सत्ता में आती है तो यकीनी तौर पर देश के संविधान मे परिवर्तन कर दिया जाएगा चुनाव मुहिम में दस्तूर और संविधान का सुरक्षा लगभग सभी अपोजिशन पार्टियों का नारा है इसी जुमलों के साथ सियासी पार्टियां जनता से साथ मांग रही है और देश की हिफाजत के लिए असमाजिक तत्वों के ताकतों को शिकस्त देने की अपील हो रही है लेकिन दूसरी तरफ मामला यह है कि सेकुलर पार्टियां नजरियाती इत्तेफाक से आगे नहीं बढ़ रही है अमली सतह पर इनमें इत्तेफाक नजर नहीं आ रहा है कुछ राज्य में अपोजिशन पार्टियों ने गठबंधन कर लिया है लेकिन कई राज्यों में अमली सतह पर इंतशार नजर आ रहा है कर्नाटक में कांग्रेस और जेडीएस ने गठबंधन कर लिया है बिहार में भी गठबंधन होने की पूरी कोशिश है लेकिन यूपी, पश्चिमी बंगाल समेत कई राज्य ऐसे हैं जहां सेकुलर पार्टियों के दरमियान
गठबंधन नहीं हो पाया है
सेकुलर पार्टियों के इंतेशार को अच्छा नहीं माना जा सकता है जनता भी इसकी वजह से सस्पेंशन के शिकार हैं कि वह किसे वोट दें किसकी जीत को यकीनी बनाए 5 साल के हालात को देखते हुए जनता ने बहुत आसानी के साथ या फैसला कर लिया है कि हमें किसे वोट नहीं देना है लेकिन सेकुलर पार्टियों के इंतेशार की वजह से किसे वोट देना है इसका फैसला नहीं हो पा रहा है जीत और हार का फैसला जनता के जरिए होगा जिसके हाथ में जनता का एकजुट वोट जाएगा उसी का चुनाव परिणाम आएगा लेकिन जनता और वोटर्स के दरमियान एकता पैदा करने के लिए सियासतदानों अपोजिशन पार्टियों का गठबन्धन जरूरी है अगर ऐसा नहीं होता है सेकुलर पार्टियों के अलग-अलग उमीदवार चुनाव लड़ते हैं तो वजह तौर पर सेकुलर पार्टियों को नुकसान उठाने पड़ेंगे , आर एस एस के कार्यकर्ता घर घर पहुंचकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के जुमलों को कामयाबी बता रहे हैं जाति तौर पर इन्हें व सेकुलर पार्टियों का विरोधी बना रहे हैं इनके दिमाग में ऐसे ऐसे शब्द पैदा कर रहे हैं जिसकी वजह से वह सेकुलर पार्टियों से दूर जा रहे हैं
सेकुलर पार्टियां ऐसे कदम का सही जवाब देने में नाकाम है ना ही उनके कार्यकर्ता घर घर पहुंच कर सही जानकारी दे पा रहे हैं तथा मीडिया भी एकतरफा तौर पर एक एजेंडे के मुताबिक काम कर रही है मोदी सरकार की नाकामियों को कामयाबी बता कर जनता के दिमागों को आकर्षित कर रहे है
अपोजिशन और सेकुलर पार्टियों का रवैया भी बदला बदला सा नजर आ रहा है उनकी तरफ से जो बयानात और एलान आ रहे हैं उनमें व्यवहार और मर्यादा का कोई लिहाज नहीं रखा जा रहा है सियासी उसूलों का पासदारी नजर नहीं आ रहा है जिसे संविधान में सराहा नहीं जा सकता है और ऐसा लगता है कि गठबंधन इमकानात बंद करने की भी कोशिश हो रही है एक मामला यह भी है कि एक दो पार्टियों को छोड़कर कई सियासी पार्टियां ऐसी है जो अपने बड़े लीडर को प्रधानमंत्री के तौर पर देखना चाह रहे हैं उनके एजेंडे नजरियात और खदम से ऐसा लग रहा है कि उनकी पार्टी के अध्यक्ष भी प्रधानमंत्री के लिए सबसे सक्षम है इसे मुनासिब नहीं कहा जा सकता है और इस तरह चुनाव 2019 में सेकुलर पार्टियों को नुकसान हो सकता है एक बड़ा सवाल पैदा होता है कि जब सियासी पार्टियां आपस में एक नहीं होगी तो क्या जनता में खुद ब खुद एकता आ जाएगी क्या यह मुमकिन है यह समय अब भाषण का नहीं बल्कि देश की तरक्की और संविधान की हिफाजत के लिए फैसला करने का है जिस तरह कर्नाटक और बिहार में गठबंधन हुआ है इसी तरह अन्य राज्यों में भी होना चाहिए
2019 का इलेक्शन बहुत महत्वपूर्ण है यह सत्ता की तब्दीली और सरकार बनाने का मामला नहीं है बल्कि भारतीय संविधान के अस्तित्व और संवैधानिक इदारों की सुरक्षा और संविधान की बदहाली का मामला है पिछले 5 सालों में जिस तरह से नियम को कुचलने की और संविधान को कमजोर करने की कोशिश हुई है आगे ऐसी सरकार के बनने के बाद यह निश्चित हो जाएगा देश पिछड़ जाएगा संविधान खतरे में होगी इसलिए सियासी सेकुलर पार्टियों का आपसी गठबंधन जरूरी है ता की जनता का कंफ्यूजन दूर हो सके और देश मे एक सेकुलर सरकार का निर्माण हो पाए, संविधान की बहाली निश्चित हो जाए
(लेखक ऑल इंडिया मिल्ली काउंसिल के जनरल सेक्रेटरी है)