(जिशान नैय्यर)
भारतीय राजनीति में नेताओं के भक्त या कट्टर समर्थक हर दौर में रहें हैं.चाहे नेहरू हो इंदिरा गाँधी या राजीव गाँधी हालांके मैंने उनका दौर तो नही देखा है. लेक़िन पढ़ने और सुनने के बाद कह सकता हूँ
मैंने जिस नेताओं के प्रति भक्ति देखी है उनमें वाय एस राजशेखर रेड्डी,जयललिता,और करुनानिधि शामिल है और एक हद तक इन तीनों के निधन के बाद इनके समर्थकों ने आत्महत्या तक कर ली.
एक बात यहाँ साफ़ है के दक्षिण भारत में नेताओं के प्रति अंधभक्ति हद से ज्यादा है, उत्तर भारत के मुकाबले में.
लेक़िन आज अग़र नेताओं के प्रति भक्ति देखें तो लगता है उनके नेता से सवाल करना आलोचना करना देशद्रोह के सूची में आता है.
हालांके जब से पिछले साढ़े 4 साल से मोदी प्रधानमंत्री बने हैं तो समर्थक को भक्त का ख़िताब मिल गया जो बिल्कुल नया शब्द है इससे पहले समथर्क कहा जाता था.और अब उनके विरोधी उनको भक्त कह कर संबोधित करतें हैं इस भक्ति में आम और ख़ास से लेकर बॉलीवुड खेल मीडिया हर क्षेत्र के लोग शामिल हैं.
लेक़िन पिछले एक दो साल में भक्ति की शक्ति में बहुत बड़ी गिरावट आई है.
यही हाल पिछले एक साल से राहुल गाँधी से भी है. जब से तीनों राज्यों में कांग्रेस की सरकार बनी है तबसे उनके प्रति भी भक्ति उबाल मार रहा है हालांके ये भक्त भी मोदी भक्त से कहीं भी कम नही है.औऱ तो और जब से प्रियंका गाँधी आधिकारिक तौर पर कांग्रेस की महासचिव बनी है.
तबसे औऱ ज्यादा भक्ति के शक्ति में इज़ाफ़ा हुआ है.जैसे प्रियंका के पास कोई जादू की छड़ी हो और कांग्रेस को यूपी में 2 सीट से 20 सीट पर पहुँचा देगी वैसे यही भक्ति राहुल गांधी के लिए 2013 में थी जब वो उपाध्यक्ष बने थे.
कन्हैया कुमार वैसे तो उनको नेता बनाने का श्रेय मोदी जी को जाता है और वो खुद और उनकी पार्टी भी कन्हैया को नेता मान चुकी है औऱ ज़िला कमिटी ने उन्हें लोकसभा का बेगूसराय से उम्मीदवार भी बना दिया है.
वैसे उनके प्रति भी अंधभक्ति अपने चरम सीमा पर है क्योंकि मैं भी उसी क्षेत्र से आता हूँ औऱ मैंने भी इसको देखा है उनके भक्त में ज्यादातर युवा नेता शामिल है.
किसी भी नेता के पतन के पीछे उनके भक्त ही होतें हैं समर्थक होना और भक्त होना दो अलग अलग चीच है लेक़िन अब के दौर समर्थक कम भक्त ज्यादा देखने को मिल रहें हैं
औऱ यही भक्त उनको ले डूबेगा.
ZEESHAN NAIYER
MAULANA AZAD NATIONAL URDU UNIVERSITY HYDERABAD