दुनिया ने महिलाओं को आजादी के नाम पर पर्दे से निकाल कर बहुत बड़ा जुल्म किया है, उनके ऊपर दोहरी जिम्मेदारी डाल दी है। नतीजा यह हुआ कि पाश्चात्य सभ्यता वाले यूरोपीय देशों में बड़ी संख्या ऐसे लोगों की है जिनको अपने बाप का पता नहीं है । इन विचारों को जमीअत उलमा उत्तर प्रदेश के अध्यक्ष मौलाना मुहम्मद मतीनुल हक उसामा कासमी काजी ए शहर कानपुर ने आज 8 मार्च को महिला दिवस के अवसर पर जामा मस्जिद अशरफाबाद में आयोजित जलसे में व्यक्त करते हुए कहा कि इस्लामी शरीयत ने मियां बीवी के आपसी ताल्लुकात को बहुत अहमियत दी है रिश्ते नाते को तोड़ने का काम करने वालों को जहन्नम में डाला जाएगा, यह बहुत बड़ा जुर्म है । हजरत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने मर्द और औरतों दोनों के हुकूक बताए हैं। मर्दों को वरीयता इसलिए दी है कि क्योंकि घर की निगरानी और खर्च की जिम्मेदारी उनके ऊपर है, घर के अंदर के तमाम कामों की जिम्मेदारी औरतों की है । मौलाना ने नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के फरमान को बताया कि तुम में सबसे बेहतर वह है जो अपनी बीवी के लिए अच्छा हो । मौलाना ने कहा कि अगर किसी की दो बीवी हैं तो उनमें फर्क ना करें , बराबरी और इंसाफ का मामला कर सकें तभी दूसरी शादी करें । मौलाना ने बताया कि महिलाएं चाहेंगी तो घर का निजाम बहुत अच्छा चलेगा । हुजूर सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम से हजरत आयशा का रिश्ता अल्लाह ने आसमान में तय किया था, हजरत आयशा रजि० अल्लाह की जिंदगी रहती दुनिया तक की महिलाओं के लिए नमूना है । आज कुछ लोग औरतों को धोखा देते हुए कहते हैं कि नबी सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम के जमाने में औरतें मस्जिद में जाती थीं, हजरत उमर रजि अल्लाह ने मना कर दिया। सवाल करते हैं कि नबी की मानोगे या हजरत उमर की ? दरअसल यह सवाल ही गलत है क्योंकि हजरत उमर रजिअल्लाहु अन्हा कभी नबी सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम के खिलाफ हो ही नहीं सकते हैं ।
जब हजरत उमर ने महिलाओं को मस्जिद में जाने से मना किया तो उस वक्त भी कुछ नेक ख्वातीन हजरत आयशा के पास पहुंची थीं तो हज़रत आयशा ने भी यही कहा था कि हजरत उमर ने बिल्कुल सही फैसला लिया है। खुद नबी का फरमान है कि औरतों का घर में नमाज पढ़ना अफजल है हालांकि मस्जिद में भी नमाज हो जाएगी। अब यह हमारी महिलाओं को तय करना है कि उन्हें सवाब चाहिए या शौक चाहिए। जब हालात बदल गए और आसमानी हिदायतें आनी बंद हो गईं तो उस वक्त हजरत उमर ने यह फैसला लिया। मौलाना उसामा ने कहा कि हुजूर ने अपनी तमाम बीवियों के साथ इंसाफ का मामला किया, अपनी बीवी का इतना ख्याल रखते थे कि आप जब तहज्जुद की नमाज के लिए उठते तो इतनी आहिस्ता जाते कि सोने वाले की नींद में खलल ना पड़ जाए। नबी के जमाने में भी कुछ सहाबा ने कहा था कि हम दुनियादारी सब छोड़कर सिर्फ इबादत में लग जाएंगे तो हजरत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने नाराजगी का इजहार करके कहा था कि इबादत के साथ मामलात और मआशरत(समाजी कार्य) भी हैं ।
नबी ने रात को तीन हिस्सों में तक्सीम किया था एक हिस्से में इबादत करते एक हिस्से में बीवी बच्चों का हक अदा करते हैं और एक में अपने जिस्म को राहत पहुंचाने के लिए सोते थे। इसलिए हमें इस्लामी निज़ाम को समझने की जरूरत है । मौलाना ने कहा कि औरतें घर के अंदर है तो मल्लिका और महारानी बनकर रहती हैं , घर में उनका ही हुक्म चलता है , घरों में जब नानी दादी अम्मा फूफी और खाला वगैरा रहती हैं तो कितना अच्छा और मुहब्बत का माहौल रहता है। लेकिन आजादी के नाम पर पाश्चात्य सभ्यता को अच्छा बताने वाले उसके नुकसान आपको भूल जाते हैं कि वहां की नाजायज़ औलादें जिन्हें अपने बाप का नाम नहीं मालूम वह कभी अपनी बूढ़ी मां की इज्जत नहीं कर सकती बल्कि उन्हें ओल्ड होम में भेज देती है , उनके पास अपने मां बाप से मिलने का वक्त नहीं रहता , मरने के बाद भी बिल अदा करके अपनी अंतिम संस्कार करवा देते हैं। ऐसे समाज को कभी अच्छा नहीं कहा जा सकता , इसलिए अल्लाह ने हमें जो दीनी और ईमानी दौलत, खानदानी एकता, फैमिली सिस्टम, एक दूसरे का हक़ अदा करने का जो निज़ाम अता किया है , उस पर शुक्र अदा करके उसकी कद्र करनी चाहिए।(मौलाना मोहम्मद मतीनुल हक कासमी, अध्यक्ष जमियत उलेमा उत्तर प्रदेश)