29 जनवरी को केंद्रीय सरकार ने उच्चतम न्यालय एक याचिका दाखिल कर इस बात की अनुमति मांगी कि अयोध्या में बाबरी मस्जिद की जगह को छोड़कर वह जमीन जो विवादास्पद नहीं राम जन्मभूमि न्यास को सोंपे जाने का इख्तियार दिया जाए। केन्द्रीय सरकार ने राम मंदिर के निर्माण में हो रही है देरी देखते हुए यह याचिका दायर किया। दायर याचिका में यह दावा किया गया कि मात्र आधा ऐकङ जमीन ही विवादास्पद है, इसलिए शेष जमीन सभी पक्षों को दे दिया जाए। मतलब कि दायर याचिका के अनुसार कुल 67 ऐकङ जमीन में से 42 ऐकङ जमीन राम जन्मभूमि की है। लेकिन मोदी सरकार पर यह प्रशन अवश्य उत्पन्न होगा कि अगर फैसले के आने में कुछ ओर इन्तजार कर लिया जाए तो कोन सा आसमान गिर जाएगा? फिर जब बीजेपी इस मामले की फरीक ही नहीं तो फिर वह इतना परेशान क्यों है? खासकर जबकि 2019 का लोकसभा चुनाव सामने है। किया उसे यह यकीन हो गया है कि वह मात्र अयोध्या के दरवाजे से ही सरकार बचा सकती है? क्यों कि उसने भारतवासीयों से जो वादे किए थे सब मात्र एक तकरीर भाषण एवं जुबान की सफाई साबित हुए। उल्लेखनीय हो कि 2014 में बीजेपी “सबका साथ सबका विकास, काले धन वापस लाएंगे” जैसे फर्जी नारों के सहारे सरकार बनाने में सफल हुई थी। लेकिन हुए किया जनता देख रही है कि पिछले चार वर्षों में कितना विकास ओर किनका विकास हुआ? हाँ इतना जरूर हुआ कि महंगाई आकाश को छू गई। GSTओर नोट बंदी ने तो देश की अर्थव्यवस्था को अत्यंत रुप से प्रभावित कर दिया।
बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ स्वच्छ भारत जैसे अभियान भी विफल हो गए। दो करोड़ नोकरी तो दूर 50 लाख नोकरी का अवसर नहीं मिला। इस का तुलना इस बात से कर सकते हैं कि वर्ष 2015 में उत्तर प्रदेश में चपरासी की 1368 पदों पर 23 लाख लोगों ने फार्म भरा था। जिस के लिए वर्ग 5 तक शिक्षित होना अनिवार्य था।
इसमें एक लाख 50 हजार ग्रेजुएट 25 हजार पोस्ट ग्रेजुएट 250 पीएचडी के छात्र शामिल थे। इससे बीजेपी आगामी लोकसभा चुनाव को देखते हुए राजनीतिक रणनीति तय्यार कर रही है, और राम जन्मभूमि को अपना राजनीतिक विज्ञापन बनाने का प्रयास कर रही है। लेकिन भारत की जनता को इस से सतर्क हो कर वोट करना चाहिए, ओर ऐसी सरकार का चयन करना चाहिए जो देश ओर भारत के लोकतंत्र की हित में कार्य करे, ओर भारत की पुरानी संस्कृति को बहाल करने ओर एकता क।
अदनान मलिक