मिल्लत टाइम्स,नई दिल्ली:मेघालय हाईकोर्ट ने देश के प्रधानमंत्री, गृहमंत्री व संसद से ऐसा कानून लाने की सिफारिश की है जिससे पड़ोसी देशों जैसे पाकिस्तान, बांग्लादेश व अफगानिस्तान से आने वाले हिंदू, जैन, सिख, बौद्ध, ईसाई, पारसी, जयंतिया, खासी व गारो लोगों को बिना किसी सवाल या दस्तावेज के भारत की नागरिकता मिल सके। कोर्ट ने फैसले में यह भी लिखा है कि विभाजन से समय भारत को हिंदू राष्ट्र घोषित कर दिया जाना चाहिए था, लेकिन हम धर्मनिरपेक्ष देश बने रहे।
दरअसल अमन राणा नामक एक व्यक्ति ने एक याचिका दायर की थी जिसमें उसे निवास प्रमाण पत्र देने से मना कर दिया गया था। इसकी सुनवाई करते हुए कोर्ट ने फैसला दिया। कोर्ट के फैसले में जस्टिस एसआर सेन ने कहा कि उक्त तीनों पड़ोसी देशों में उपरोक्त लोग आज भी प्रताणित हो रहे हैं और उन्हें सामाजिक सम्मान भी प्राप्त नहीं हो रहा है। कोर्ट ने कहा कि इन लोगों को कभी भी देश में आने की अनुमति दी जाए। सरकार इन्हें पुनर्वासित कर सकती है और भारत का नागरिक घोषित कर सकती है।
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भारतीय इतिहास का किया उल्लेख
सुनवाई के दौरान कोर्ट ने भारतीय इतिहास को उल्लेखित करते हुए कहा कि भारत दुनिया का सबसे बड़ा देश था। पाकिस्तान, बांग्लादेश व अफगानिस्तान का कोई वजूद नहीं था। ये सब देष एक थे और इनपर हिंदू साम्राज्य का शासन था। कोर्ट ने कहा कि मुगल जब यहां आए तो उन्होंने भारत के कई हिस्सों पर कब्जा कर लिया। इसी दौरान बड़ी संख्या में धर्म परिवर्तन हुए। इसके बाद अंग्रेज यहां आए और शासन करने लगे।
भारत-पाक विभाजन के इतिहास के बारे में कोर्ट ने फैसले में लिखा कि यह एक अविवादित तथ्य है कि विभाजन के वक्त लाखों की संख्या में हिंदू व सिख मारे गए थे। उन्हें प्रताड़ित किया गया था और महिलाओं का यौन शोषण किया गया था। कोर्ट ने लिखा कि भारत का विभाजन ही धर्म के आधार पर हुआ था। पाकिस्तान ने खुद को इस्लामिक देश घोषित कर दिया था। ऐसे में भारत को भी हिंदू राष्ट्र घोषित कर देना चाहिए था लेकिन, इसे धर्मनिरपेक्ष बनाए रखा गया।
पीएम मोदी पर जताया भरोसा
जज सेन ने मोदी सरकार को लेकर कहा कि वह भारत को मुस्लिम राष्ट्र नहीं बनने देंगे। उन्होंने लिखा कि किसी भी व्यक्ति को भारत को मुस्लिम राष्ट्र बनाने का प्रयास नहीं करना चाहिए। जज ने उच्च न्यायालय में केंद्र की सहायक सॉलिसीटर जनरल ए. पॉल को फैसले की प्रति प्रधानमंत्री, केंद्रीय गृह व विधि मंत्री को मंगलवार तक अवलोकन के लिए सौंपने व समुदायों के हितों की रक्षा की खातिर कानून लाने को लेकर जरूरी कदम उठाने की बात कही है।
बता दें कि केंद्र के नागरिकता (संशोधन) विधेयक 2016 में अफगानिस्तान, बांग्लादेश या पाकिस्तान के हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई समुदाय के लोग छह साल भारत में रहने के बाद भारतीय नागरिकता के हकदार हैं, लेकिन अदालत के आदेश में इस विधेयक का जिक्र नहीं किया गया है।
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