सौ साल मुल्क और मिल्लत की ख़िदमत करते हुए पूरा किया जामिया मिल्लिया इस्लामिया ने

जामिया मिल्लिया इस्लामिया का मतलब ‘राष्ट्रीय इस्लामिक विश्वविद्यालय’। ख़िलाफ़त आंदोलन की कोख से जन्म लेने वाली ये संस्था आज देश की नम्बर एक केंद्रीय विश्वविद्यालय है। ये संस्था देश की स्वतंत्रता आंदोलन में पहली पंक्ति में खड़ी थी। इनकी बुनियाद विश्वविख्यात आलिम ए दीन एवं महान स्वतंत्रता सेनानी शैख़ उल हिंद मौलाना महमूद हसन ने 29 अक्टूबर 1920 को रखी थी।

इसके संस्थापकों में वे तमाम हस्तियाँ शामिल थीं जिन्होंने इस मुल्क की आज़ादी और इसके आने वाले बेहतरीन कल के लिए अपनी सारी ज़िंदगी क़ुर्बान कर दी। जिसमें हकीम अजमल ख़ान, मौलाना मोहम्मद अली जौहर, डॉक्टर मोख़्तार अहमद अंसारी, अब्दुल मजीद ख़्वाजा, मुफ़्ती कफ़ायतुल्ला, मौलाना अब्दुल बारी फ़िरंगी महली, मौलाना अब्दुल हक़, मौलाना सुलेमान नदवी, मौलाना शब्बीर अहमद उस्मानी, अब्बास तैय्यब जी जैसे लोग शामिल थे। जामिया की स्थापना में महात्मा गांधी का बहुत बड़ा योगदान रहा है।

डॉक्टर जाकिर हुसैन ने 1938 में जामिया के स्थापना के उद्देश्यों के बारे में कहा था कि “जामिया मिल्लिया इस्लामिया का मुख्य उद्देश्य भारतीय मुसलमानों के भविष्य के जीवन के लिए इस तरह के एक रोडमैप को विकसित करना है, जो इस्लाम के चारों ओर घूमता हो और भारतीय संस्कृति के ऐसे रंगों से मिला जुला हो जो वैश्विक मानव सभ्यता के साथ मेल खाता हो”।

इस संस्था के स्थापना का मूल मक़सद यही था कि मुस्लिम युवा एक भारतीय नागरिक के रूप में अपने अधिकारों एवं कर्तव्यों के दायरे में रहकर बहुसंख्यक समाज के साथ इस्लामी विचार और इसके व्यवहार को साझा कर सकें। इसका मूल उद्देश्य यही है कि मुसलमानों को अपनी धार्मिक पहचान को साथ लेकर एक सामंजस्यपूर्ण राष्ट्रीयता का निर्माण करना।

माजिद मजाज़ (शोध छात्र, जामिया मिल्लिया इस्लामिया)

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