जानिए मुसलमान कैसे और क्यों मनाते हैं ईद उल अजहा (बकरा ईद):खुर्रम मलिक

कोरोना वायरस की वजह से आज पुरा विश्व एक अजीब सी परिस्थिति से गुज़र रहा है. और इस महामारी से झूझते हुए आज पूरे चार महीने गुज़र चुके हैं. और इस का असर हर ओर देखा जा सकता है. अबतक हमारे देश में इस की वजह से हज़ारों लोग अपनी जान गंवा चुके हैं. हालात यह हो चुके हैं के देश में कोरोना केस की संख्या मोदी जी के जुमले की तरह 15 लाख पार कर चुका है.बीच में अनलाक की प्रक्रिया के तहत आम जीवन पटरी पर लौटती दिख रही थी और ऐसा लग रहा था के अब इस बीमारी से हमारा देश मुक्त हो जाएगा परंतु बढ़ते केस की वजह कर देश के कई राज्यों में फिर से लाक डाउन करना पड़ा. हमारे राज्य बिहार में भी ऐसा होता लग रहा है. यह बात अलग है के इस लेख को लिखे जाने तक ऐसी कोई आधिकारिक रिपोर्ट नहीं आई है के किया 1 अगस्त से फिर से 15 दिनों का लाक डाउन होगा या नहीं? लेकिन कोरोना वायरस की गंभीरता को देखते हुए ऐसा लगता है के ईद उल फ़ितर की तरह ईद उल अज़्हा की नमाज़ भी घरों में ही पढ़नी होगी .फिर से इस महामारी की वजह से स्कूल कॉलेज, बाज़ार बंद हैं वहीं दूसरी ओर मस्जिद मंदिर गिर्जा गुरुद्वारा भी बंद पड़े हैं. और ऐसे में मुसलमानों का पवित्र महीना ईद उल अज़्हा भी आ चुका है. और जैसा के सब को पता है के मौजुदा वक़्त कोरोना का है लेकिन ऐसे में ही नमाज़ भी पढ़नी है. तो जैसा के हमने ईद उल फ़ितर पर भी नमाज़ का तरीक़ा बताया था. इसी लिये ईद उल अज़्हा पर भी हम ने सोचा के आप लोगों को तरीक़ा बताया जाए. क्यों के ईद उल फ़ितर पर हमारे लेख को आप सब ने बहुत पसंद किया था.
उम्मीद की जा रही है के 1 अगस्त शनिवार को मुसलमानों का पवित्र त्यौहार ईद उल अज़्हा मनाया जाएगा.

ईद उल अज़्हा के दिन सुबह सवेरे उठना , मिसवाक(दतमन) करना, नहाना, खूशबू लगाना, अपनी हैसियत के हिसाब से अच्छा कपडा़ पहनना मुसतहब है.
ईद की नमाज़ में अज़ान और तकबीर नहीं कही जाती है.
घर में मिंबर की जगह कुर्सी इस्तेमाल कर सकते हैं. और अगर किसी को खु़तबा नहीं आता हो तो इस के बगै़र भी नमाज़ पढी़ जा सकती है…

ईद की नमाज़ के लिये इमाम के अलावा तीन बालिग़ आदमी का होना ज़रूरी है. अगर य भी मुम्किन ना हो तो अलग से दो या चार रकत नफ़िल नमाज़ पढ़ना है.

लेकिन सब से पहले इस के इतिहास पर कुछ बात कर लेते हैं.
आखि़र किया है ईद उल अज़्हा का इतिहास?
इस्लाम धर्म में इस का किया महत्व है और मुसलमान इसे क्यों मनाते हैं? आयिये जानते हैं.

जैसा के हम सब जानते हैं कि यह पवित्र त्यौहार मुसलमानों के एक नबी हज़रत इब्राहीम अलैहिस सलाम की याद में मनाया जाता है. इतिहास में इस से जुड़ा एक बहुत ही मश्हूर क़िस्सा है के हज़रत इब्राहीम अo ने सपने में देखा के वह अपने बेटे हज़रत इसमाईल अलैहिस सलाम के गर्दन पर छुरी चला रहे हैं. यह बात आप ने अपने बेटे इसमाईल को बताई. और बेटे से राय पूछा तो बेटे ने कहा के अब्बा जान अगर ऐसा है तो यह अल्लाह का कोई हुकुम होगा. और आप को इस हुक्म पर अमल करना चाहिए. मैं तय्यार हूँ. फिर दोनों बाप बेटे एक सुनसान जगह पर गए. बेटे इस्माईल अo ने कहा के अब्बा जान आप अपनी आँखों पर कपडा़ बांध लीजिये किया पता आप को मेरी गर्दन पर छुरी चलाते वक़्त बेटे की मोहब्ब्बत बीच में आ जाए और आप इस वजह से आप अल्लाह के हुक्म को पूरा ना कर पाएं. और फिर बाप ने ऐसा ही किया .
और जब क़ुर्बानी की जगह पर दोनों बाप नेटे पहुँचें तो बेटे इसमाईल अo आग्या का पालन करते हुए ज़मीन पर लेट गए और अपने पिता से कहा के आप मेरी गर्दन पर छुरी चलाएँ और अल्लाह के हुक्म को पूरा करें. तो इब्राहीम अo ने ऐसा ही किया. लेकिन जैसे ही बाप ने बेटे की गर्दन पर छुरी चलाई वैसे ही छुरी एक दुंबे( अरबमें एक जानवर) पर चली. और उस की क़ुर्बानी हो गई. बस अल्लाह को यही अदा पसंद आई और उसी दिन से मुसलमानों पर क़ुर्बानी वाजिब (ज़रूरी) कर दिया गया.
इसी तरह अगर और बात करें तो इसलाम की दो ईदों में से एक ईद उल अज़्हा है. जो ज़िल हिज्जा की दस तारीख़ को मनाई जाती है. यह हज़रत इब्राहीम अo की अपने बेटे की क़ुर्बानी की अज़ीम यादगार है जिसे अल्लाह पाक ने रहती दुनिया तक इबादत के तौर पर ज़िंदा कर दिया आख़री नबी मुहम्मद साहब (सo अo वo) का फ़रमान है ” क़र्बानी के दिन इंसानों के आ’माल में से अल्लाह को इतना ज़ियादा महबूब अमल (कार्य) कोई नहीं जितना क़ुर्बानी के दिन क़ुर्बानी करना है”
एक दूसरी जगह आप मुहम्मद साहब का फ़रमान है के “जो इंसान क़ुर्बानी की ताक़त रखता हो और फिर भी क़ुर्बानी ना करे, वह हमारी इबादत्गाह के क़रीब भी ना आए.
क़ुरान ओ हदीस की रौशनी में यह बात साबित है के हर उस आक़िल (समझदार) बालिग़(व्यस्क) मुसलमान पर क़ुर्बानी वाजिब (ज़रूरी) है जिस के पास साढे़ बावन तोला चांदी या उस की क़ीमत का माल उस की ज़रूरयात से ज़ियादा हो. (यह माल चाहे सोना, चांदी या उस के ज़ेवर (गहने) हों. तिजारत (व्यापार) का माल या ज़रूरत से ज़ियादा घरेलु सामान हो, या ज़मीन हो)
क़ुर्बानी का मक़सद सिर्फ़ जानवरों की क़ुर्बानी नहीं है, बल्कि इस का असल मक़सद यह है के इस क़ुर्बानी के नतीजे में हमारे अंदर फ़रमांबरदारी (आग्या का पालन) का जज़्बा पैदा हो जाए, और हम अल्लाह के हुकुम के आगे अपने जज़्बात और खा़हिशात को क़ुर्बान (त्याग) करने वाले बन जाएं.
आज कल कुछ लोग क़ुर्बानी के बारे में में सही जानकारी ना होने की वजह कर ग़लत बयानबाज़ी करते हुए नज़र आते हैं.
इसी लिये हमें अच्छी तरह जान लेना चाहिए के क़ुर्बानी के बदले उस की क़ीमत का सदक़ा करना या उस को ग़रीबों की ज़रूरयात पर ख़र्च कर देना हरगिज़ क़ुर्बानी का बदल नहीं हो सकता.
लेकिन अभी कोरोना काल चल रहा है इस लिए क़ुर्बानी करने के साथ ही कुछ बातों का खा़स ख़्याल रखना होगा… जैसे के….
सफ़ाई का खा़स ख़्याल रखें.
शारीरिक दुरी बनाए रखें.
क़ुर्बानी की बची हुई चीज़ें खाल, खू़न, और दूसरी गंदगी को ऐसी जगह पर ना डालें जिस से किसी को भी तकलीफ़ हो.
माहौल को साफ़ सुथरा रखें.
अपने साथ पुरी इंसानियत की भलाई, आपसी मोहब्बत और भाई चारा के लिये काम करें और साथ ही दुआ भी करें.

हम यहाँ आप को यह बताना चाहते हैं कि ईद उल अज़्हा की नमाज़ पढ़ने का तरीक़ा किया है. सब से पहले तो हमें किसी भी नमाज़ की नियत करनी होती है. वैसे नियत दिल से होनी चाहिए. अगर ज़ुबान से बोल दिया तो और भी अच्छा है. नियत इस तरह करना है. नियत करता हूँ मैं नमाज़ ईद उल अज़्हा की वाजिब. छे ज़ाएद तकबीरों के साथ, वास्ते अल्लाह त’आला के. रुख़ मेरा काबा शरीफ़ की तरफ़. नियत के बाद तक्बीर ए तहरीमा (हाथों को कंधे तक उठाना है और फिर पेट पर बांध लेना) के बाद सना पढ़ना है उस के बाद दो और तक्बीर कही जाएगी. पहली तक्बीर के बाद हाथों को कंधे तक ले कर जा कर छोड़ देना है, फिर दूसरी बार भी ऐसा ही करना है. तीसरी तक्बीर के बाद हाथों को बांध लेना है और सुरह फ़ातिहा और उस के बाद कोई भी सुरह पढ़ना है. उस के बाद रुकु में जाना है फिर सज्दे में और इस तरह एक रकत पूरी करनी है.
दूसरी रकत के लिये खड़े होंगे तो सब से पहले सुरह फ़ातिहा और फिर कोई सुरह मिलाएंगे और उस के बाद रुकु में जाने से पहले पहले तीन ज़ाएद तक्बीरें (अल्लाह हु अकबर) कहते हुए हाथ छोड़ देंगे और चौथी तक्बीर कह कर रुकु में जाएंगे और सजदा के साथ सलाम फेर कर नमाज़ मुकम्मल करेंगे.

नमाज़ के बाद जो सब से अहम है वह है ईद का खु़त्बा। यह दो है. ईद उल अज़्हा का खु़त्बा यह है.

पहला खु़त्बा…
अल्लाह हु अकबर अल्लाह हु अकबर ला इलाहा इल्लाल्लाहु वल्लाहु अकबर अल्लाह हु अकबर वलिल्लाहिल हम्दु

अल्हम्दु लिल्लाही रब्बिल आ लमीन वल आ’क़िब’तू लिल मुत्तक़ीन, वससलातु वससलामु अला सय्येदेना मुहम्मदिन व’अला आ’लिही व’अस’हाबिही अज्म’ईन, अम्मा बा’द
फ़अ’ऊज़ु बिल्लाही मि’नश शैतान नि’र्रजीम, बिस्मिल्ला’हिर रहमान निर्रहीम,
इनना आ’तै’नाका कल’कौसर, फ़सल्लिलि रब्बिका वन्हर, इनना शानि’अ’का हुवल अब’तर,
व’अन आयेशा रज़ि’अल्लाह हु त’आला अन’हा ,
अन्ना रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम, मा अ’मिला आद’मियुन मिन अमलि यौम’नहरि अहब्बा इलल्लाहि मिन इहराक़िद’दमि उन्नहु लयाति यौमल्क़यामति बिक़रूनिहा व’अश’हारिहा व’अज़’लाफ़िहा इनन’दमा ल’यक़’ऊ मिनल्लाहि बिमकानिन क़ब्ला अन’यक़’आ मिन’अल’अरज़ि फ़’तीबु बिहा नफ़सन,
अल्लाह हु अकबर अल्लाह हु अकबर ला इलाहा इल्लाल्लाहु वल्लाहु अकबर अल्लाह हु अकबर वलिल्लाहिल हम्दु

अल्लाहुम्मा इन्नी अ’ऊज़ु बिका मिनल बरसि वल’जुनूनि वल’जज़ामि व’मिन सैय्ये’इल अस्क़ाम.
अल्लाह हु अकबर अल्लाह हु अकबर ला इलाहा इल्लाल्लाहु वल्लाहु अकबर अल्लाह हु अकबर वलिल्लाहिल हम्दु

*दूसरा खु़तबा ….
अल्लाह हु अकबर अल्लाह हु अकबर ला इलाहा इल्लाल्लाहु वल्लाहु अकबर अल्लाह हु अकबर वलिल्लाहिल हम्दु

नह’मदुहु व’नस’त’ईनुहु व’नुसल्ली अला रसूलिहिल करीम. अम्मा बा’द
फ़अ’ऊज़ु बिल्लाही मि’नश शैतान नि’र्रजीम, बिस्मिल्ला’हिर रहमान निर्रहीम,
इननल्लाहा व’मलाइकतुहु यु’सल’लुना अलन’नबी, या अय्यु’हल’लज़ीना आ’मनू सल्लू अलैही व’सल्लिमु तस्लीमा.
अल्लाहुम्मा सल्लि अला मुहम्मदिन व’अला आलि मुहम्मदिन व’अ’लल खुलफ़ाई रा’शिदीन अल’मह’दिय्यीन. व’अ’ला अस’हा’बिहि अज’म’ईन. व’अ’ला मन त’बि’अ’हुम इला यौमिद दीन. इबाद’अल्लाह र’हि’म’कुमुल्लाह.
इन्नल्लाहा या’मुरु बिल’अद’लि वल’इहसानि व’ई’ता’ई ज़िल’क़ुर्बा व’यन्हा अनिल फ़ह’शाइ वल’मुन’करि वल’बगई, य’इ’ज़ुकुम ल’अल’लकुम त’ज़क्करून. वल्ज़िकर
अल्लाह हु अकबर अल्लाह हु अकबर ला इलाहा इल्लाल्लाहु वल्लाहु अकबर अल्लाह हु अकबर वलिल्लाहिल हम्दु

अब थोडी़ बात क़ुर्बानी के तरीक़े पर भी कर ली जाये.
आयिये जानते हैं कि क़ुर्बानी का सही तरीक़ा किया है?
जानवर की गर्दन पर छुरी चलाते वक़्त ज़बह करने से पहले बिस्मिल्लाह अल्लाह हु अकबर पढे़
ज़बह करते हुए यह आयते़ भी पढ़ना भी साबित है.
इन्नी वज्जहतु वजहिया लिल्लज़ी फ़’त’रस समावाति वल’अर’ज़ि हनीफ़न वमा अना मिनल मुश्रिकीन .क़ुल इनना सलाती व’नुसुकी व’महयाया व’म’माती लिल्लाही रब्बिल आ लमीन. ला शरीका लका व’बि’ज़ा’लिक उमिरतु व’अना अव’व’लुल मुस्लिमीन.
ज़बह करने के बाद यह दुआ पढे़.
अल्लाहुम्मा तक़ब्बल निम्नी कमा त’क़ब’बल’ता मिन हबीबिका मुहम्मदिन सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम व’मिन खलीक़िका इब्राहीमा अलैहिस सलाम.

जानवर को ज़बह करते वक़्त ऐसा जुमला कहना ज़रूरी है जो सिर्फ़ अल्लाह त’आ’ला के ज़िक्र और हमद ओ सना पर हो.

ज़बह करते वक़्त सिर्फ़ उर्दु में भी अल्लाह का नाम लिया जैसे के यह बोला के अल्लाह के नाम से ज़बह करता हूँ तो भी क़ुर्बानी हलाल हो जायेगी

और नमाज़ में अल्लाह से दुआ करें के अल्लाह हमारे देश और दुनिया में इस कोरोना वायरस नामी महामारी को ख़तम कर दे और दुनिया में अमन चैन और शान्ती की फ़िज़ा बनी रहे.

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is a young journalist & editor at Millat Times''Journalism is a mission & passion.Amazed to see how Journalism can empower,change & serve humanity