छात्र डिपार्टमेंट ऑफ जर्नलिज्म ऐनड मास कम्युनिकेशन मानू हैदराबाद
इलेक्शन और सियासत सिर्फ हार जीत का खेल नहीं है बल्कि इससे कहीं जियादा है
मुस्लिम कौम का सबसे ज़ियादा अफसोसनाक पहलू है कि इस मामले में छुपी हुई बहुत सारी हकीकतों को नहीं देख पाते नतीजा होता है की सेकुलर कहलाने वाली पार्टियां और फिरका परस्त कही जाने वाली पार्टियां दोनों सियासी तौर पर इनको बेवकूफ बना रही होती हैं
एक फिरकाप्रस्तों का डर दिखाकर हमें मुकम्मल तौर से सियासी गुलाम बनाए रखने का इरादा रखती है तो दूसरी पार्टी इसमें सहयोगी होकर अज़ाब बनी हुई है। हम जानते है कि मौजूदा जमहूरियत में हुकूक की लड़ाइयां पार्टी के सतह पर लड़ी जासकती है व्यक्ति के आधार पर नहीं।
फर्द चाहे जितना ईमानदार हो वह पार्टी का नुमाइंदा होता है कौम का नुमाइंदा नहीं बन पाता। अगर हमारी आँखें खुली हुई है तो इस कड़वी हकीकत को तलाक बिल के मौके से पार्लियामेंट के अन्दर होने वाली बहस में देख सकते हैं जिस में असदुद्दीन ओवैसी की चिंघाड़ती हुई आवाज और मौलाना असरारूल हक़ साहब का उस रोज़ उस बहस से किनारा कशी इस हकीक़त को सच साबित करती है, उसी तरह कई सियासी लीडरान मुसलमानों के लिए सबसे खतरनाक पास होने वाले बिल के खिलाफ कायम हुए शाहीनबागों में सिर्फ इसलिए कदम नहीं रख सके कि उनका ताल्लुक उस पार्टी से था जिसने इस बिल की हिमायत की थी।
उसी तरह से हमारी आँखों ने वह मंजर देखा कि बिहार के शेर शहाबुद्दीन की बीवी हिना शहाब के खिलाफ चंद ऐसे लोगों को मैदान में उतरने पर मजबूर हो जाना पड़ा जिनका ताल्लुक पार्टी की सतह पर मुखालिफ कैम्प से था। हालांकि उनकी जिंदगी कौम की हमदर्दी के दावे से भरी हुई नजर आती है और शायद इस दावे में एक-दो फीसदी सच्चाई भी है लेकिन पार्टी में अपनी हैसियत मजबूत करने की चाह आखिरकार उनको मजबूर कर दिया कि …….
सेक्युलर भारत के इतिहास में और भी बहुत से चेहरे मिल जाएंगे जिन्हें कौम ने इसलिए कि वह कुछ कौमी मसाएल पर आगे आकर काम करते हुए नजर आए थे । कौम के लिए बहुत हमदर्द समझकर आगे बढ़ाया लेकिन वह आगे चलकर हमारे लीडर की जगह पार्टी के डिलर बन कर रह गए ।
शायद उनकी मजबूरियों ने उन्हें जकड़ लिया, क्योंकि
कुछ तो मजबूरियां रही होंगी
यू ही कोई बेवफा नहीं होता।
इसलिए अगर हम देखना चाहें तो हमे 70 साल की तारीख और हिन्दुस्तान में फैले हुए बहुत सारे मुस्लिम एम.एल.ए और एम.पी अपने रवैयों के जरिए हमेशा इसका एहसास दिलाते रहते हैं।
जमहूरियत में हार सिर्फ हार नहीं होती है बल्कि आइंदा के जीत का दरवाजा भी खोलती है और बहुत मर्तबा हमारी हार किसी और के हार के हार का सबब भी बनती है। ऐसे समय में अगले इलेक्शन में पार्टियों के बीच होने वाले तोड़-जोड़ में इसका असर साफ नजर आता है।
पिछले इलेक्शन में लालू और नितीश को क्या हार के डर ने ही एक दूसरे के करीब नहीं कर दिया था?
लेकिन यह तोड़-जोड़ उस शख्स
के हिस्से में नहीं आता जो आपके क्षेत्र में आपका वोट लेकर किसी पार्टी के उम्मीदवार को हराने के सबब बना बल्कि उस पार्टी के हिस्सा में आता है जिसके टिकट पर उसने अपने आपको इलेक्शन के मैदान में उतारा था इसीलिए वह हर हाल में एक तरफ़ अपनी पार्टी की पोजीशन को मजबूत कर देते हैं और दूसरी तरफ हमारे बीच आ रही बेदारी को दुसरी गुलामी के हाथों बेच देते हैं और हम फिर अपनी इस गलती की वजह से अपने नए मसिहा के तलाश में अपने जीवन ख्याल और अपनी फिक्री हरकत को तेज कर देते हैं और यह भूल जाते हैं किसी पहचाने हुए चेहरे के सियासी आरजू ने पिछले इलेक्शन में हमारे कदम को एक गलत रास्ते पर डाल दिया था
ऐलाक़ाई सतह पर होने वाली इस गलती की सजा कभी हम सुबाई सतह पर ऊठाते हैं कभी मुलकी सतह पर
जब वाकयात इस हकीकत को सही साबित कर रहे हैं तो अब मुसलमानों को चाहिए कि अपनी सोच का रुख फर्द की सियासत से हटाकर पार्टी की सियासत की तरफ कर दें इसके अलावा कोई चारा नहीं है क्योंकि ..
“फर्द कायम रबते मिललत से है तन्हा कुछ नहीं
मौज है दरिया में और बेरूने दरीया कुछ नहीं”
इसलिए इस बार बिहार के मुसलमानों से दरखास्त करता हूं कि हराने जिताने और किसी फ़रद को आगे बढ़ाने की सियासत को छोड़कर अपनी सियासी कीयादत के हाथ को इस कदर मजबूत करें के सेक्युलर कहे जाने वाली पार्टी आपकी तरफ हाथ बढ़ाने के लिए मजबूर हो जाए और उनका रवैया जो हमारे साथ है कि आप टोपी पहनकर मेरे साथ मत खड़े हो जाएं लेकिन वोट देने के लिए हमेशा मजबूर रहें में तब्दीली आऐ इस तरह से हमारे क़ियादतों के हाथों में बारगेनिंग पोजीशन हासिल हो जाऐगी जिससे हमें हक़िक़ी सेयासी वक़ार हासिल होने लगेगा और ईस मक़सद को हासिल करने के लिऐ हमारे सामने सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ इंडिया (SDPI)
और मजलिसे इत्तेहादुल मुस्लिमीन (MIM)जैसी पार्टियां बिहार असेंबली इलेक्शन में मौजूद हैं
हमेशा के पछतावे से कहीं बेहतर है कि इनकी पोजीशन कुछ भी हो हम इनके हाथों को मजबूत कर इनके व ईनके जरिए खुद के सियासी वकार को आगे बढ़ाएं और आगे के लिए एक बेहतर मजबूत विकल्प तैयार करलें
शुक्रिया