मीडिया की फैलाई नफ़रत और प्रोपेगेंडा का असर सामान्य बहुसंख्यकों पर ही नहीं पड़ा है

मीडिया की फैलाई नफ़रत और प्रोपेगेंडा का असर सामान्य बहुसंख्यकों पर ही नहीं पड़ा है।प्रशासन की ज़िम्मेदार कुर्सियों पर बैठे अफ़सरों के दिलो में भी नफरती वायरस घर कर चुका है।इस नफ़रत का शिकार हुए जौनपुर ज़िले में तब्लीग़ी जमात के अमीर नसीम अहमद। 70 साल के इस बुजुर्ग को दफ़न हुए आज तीसरा दिन हो गया।लेकिन उनकी खामोश मौत से उठे सवाल लोगों के दिमाग मे अभी भी शोर मचा रहे हैं।हर कोई यह जानना चाहता है इस मौत का जिम्मेदार कौन है ?

यूपी के जौनपुर शहर में रहने वाले 70 वर्षीय नसीम अहमद ज़िले में तब्लीग़ी जमात के अमीर थे।दीन की तबलीग , पांच वक़्त की नमाज़ और हर वक़्त ख़ुदा के इबादत में मशगूल रहना ही इनका काम था । हर जमाती की तरह इनका भी दिल्ली के मरकज़ पर आना जाना रहता था। वह 6 मार्च को मरकज़ पर आयोजित प्रोग्राम में शामिल होने के लिए अपने कुछ साथियों के साथ दिल्ली गए और 11 मार्च को वापस अपने शहर आ गए।तब तक देश मे कोरोना की कोई ख़ास चर्चा भी शुरू नही हुई थी।

एक दिवसीय जनता कर्फ्यू औऱ फिर लॉक डाउन के बाद देश मे कोरोना का खौफ़ बढ़ा।इसी बीच मीडिया ने मरकज़ का मुद्दा उछाला।हर तब्लीगी को कोरोना बम बना दिया गया ।गैर औरतों को नज़र उठा कर न देखने की जिन्हें टेनिंग दी जाती है उन जमातियों पर महिलाओं से छेड़ छाड़ और अभद्र व्यवहार तक के इल्ज़ाम लगा दिए गए।
मीडिया के प्रोपेगेंडा ने आम बहुसंख्यखों के दिमाग मे मुस्लिम समाज के सबसे निरीह लोगों के प्रति नफरत भर दी।हुकूमत की मंशा देख कर हाकिम भी सक्रिय हो उठे।जमातियों को पकड़ पकड़ कर जेल में डाला गया।

यहीँ से जौनपुर में जमात के अमीर नसीम अहमद की मौत का सफ़र शुरू हुआ। दो अप्रेल को हत्या के प्रयास का मुक़दमा दर्ज कर इस बूढ़े इंसान को अस्थायी जेल में क़ैद कर दिया गया। कोरोना की जाँच में रिपोर्ट निगेटिव आने के बाद भी न मुक़दमा वापस हुआ न उन्हे किसी तरह की रियायत दी गयी।

दिल की बीमारी से जूझ रहे नसीम अहमद की सेहत बिगड़ने लगी।कई बार परिजनों ने उन्हें डॉक्टर को दिखाने की अपील की।लेकिन ज़ालिम हुक्काम ने हर फ़रियाद अनसुनी कर दी।
कुछ दिन बाद हालत ज़्यादा गम्भीर हुई तो प्रशासन ने वाराणसी भेज दिया।खुद को धरती का भगवान कहने वाले डॉक्टर ने जमाती को नजदीक से देखने से भी इंकार कर दिया।परिजनों के रोने गिड़गिड़ाने पर दूर से ही कागज़ के टुकड़े पर कुछ दवाईयां लिख दी गईं।बुढ़े नसीम को वापस बे यार ओ मदगार जेल में छोड़ दिया गया।जहाँ उनका स्वास्थ्य लगातार बिगड़ता गया।तीन दिन पहले हालत ज़्यादा बिगड़ी ।उन्हें ज़िला अस्पताल लाया गया।जहाँ कुछ घण्टों बाद ही उन्होंने आख़री सांस ली।

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is a young journalist & editor at Millat Times''Journalism is a mission & passion.Amazed to see how Journalism can empower,change & serve humanity