कोविड-19 के कारण पिछले 24 घंटे में 83 लोगों की मौत हुई है। इससे पहले 24 घंटे में इतनी मौतें नहीं हुईं। संक्रमण से मरने वाले मरीज़ों की संख्या 1300 से अधिक हो चुकी है।
क्या यह हर्ष और उल्लास का समय है कि हम आसमान से पुष्प वर्षा करें और वो भी सेना को आगे करके ताकि सेना के नाम पर सारे सवाल देशद्रोही बताए जाने लगें?
तालाबंदी के दौरान हमें ऐसा क्या हासिल कर लिया जिसके लिए हम पुष्प वर्षा कर रहे हैं? संक्रमित मरीज़ों की संख्या धीमी गति से बढ़ रही है लेकिन बढ़ तो रही है। लेकिन क्या वाकई गति इतनी धीमी है कि हम पुष्प वर्षा करने लग जाएं?
3 मई की सुबह स्वास्थ्य मंत्रालय की बुलेटिन के अनुसार संक्रमित मरीज़ों की संख्या 39,980 हो चुकी थी। 24 घंटे में 2644 मामले सामने आए हैं। ज़ाहिर है शाम तो यह संख्या 40,000 के पार भी कर जाएगी। अगर दस दिनों में डबल होने का औसत ही देखें तो 13 मई तक हम 80,000 के आस-पास होंगे। क्या इसे कामयाबी कहेंगे?
हर बार डाक्टर और हेल्थ स्टाफ के नाम पर यह सब किया जा रहा है। लेकिन अभी तक हेल्थ स्टाफ को सारी सुविधाएं उपलब्ध नहीं कराई गईं हैं। अलग से नहीं बताया जाता है कि देश भर में कितने हेल्थ स्टाफ संक्रमित हैं? जिस अस्पताल के ऊपर फूलों की वर्षा हो रही है उसके भीतर बैठा डॉक्टर या नर्स क्या बिल्कुल इस सच्चाई को नहीं देख पाएंगे?
आई टी सेल की ताकत पर हर प्रश्नों को किनारे लगा देने से प्रश्न मर नहीं जाते हैं। क्या यह प्रश्न नहीं है कि इस वक्त पुष्प वर्षा की ज़रूरत ही क्या थी? वो भी जिस दिन 2644 मामले सामने आने की खबर आई हो उस दिन हम पुष्प वर्षा कर रहे हैं। मुझे पता है आई टी सेल लगा कर प्रोपेगैंडा होगा कि सेना का विरोध कर रहा हूं लेकिन यह सेना का विरोध नहीं है। सेना कभी भी आधी अधूरी लड़ाई के बीच पुष्पवर्षा नहीं करती है। वो सलामी देती है संपूर्ण विजय की प्राप्ति के बाद।
आप इस प्रश्न को अर्थव्यवस्था के संदर्भ में देखिए। छोटे दुकानदार से लेकर मध्यमवर्ग परेशान है। किसी का धंधा चौपट हो गया तो किसी की नौकरी चली गई। किसी की सैलरी कम हो गई। हर सरकारी कर्मचारी से नए बनाए गए पीएम केयर फंड में पैसा लिया गया। सांसदों की सैलरी काटी गई। इसीलिए न कि कोविड-19 से लड़ने के लिए पैसा चाहिए। तो फिर बीच लड़ाई में पुष्प वर्षा पर पैसे लुटाने का क्या मतलब है?
सेना की मदद लेनी ही थी और जब ये जहाज़ उड़े ही थे तो इनसे कुछ मज़दूरों को उनके ज़िलों तक पहुंचाया जा सकता था। लेकिन फूल वर्षाए गए ताकि न्यज़ चैनलों के लिए हर रविवार को प्रोपेगैंडा की सामग्री मिल सके। और सवाल उठाने वाले को सेना विरोधी बता कर डिबेट की दिशा मोड़ी जा सके और सरकार को जवाबदेही से बचाया जा सके। लेकिन मोदी समर्थकों को भी सोचना चाहिए कि क्या वाकई इससे कुछ हासिल हुआ है ?
शुक्रवार के दिन सुबह से दिल्ली में चर्चा थी कि कोई बड़ी ख़बर होने वाली है। चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ भारतीय सेना के तीनों प्रमुख के साथ प्रेस कांफ्रेंस करेंगे। जब प्रेस कांफ्रेंस हुई तो उसमें पुष्प वर्षा की योजना के बारे में जानकारी दी गई। क्या ये जानकारी एक ट्विट और एक राज्य मंत्री से नहीं दी जा सकती थीं? क्या ये इतनी बड़ी ख़बर थी कि इसके लिए सेना के तीनों प्रमुखो के साथ चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ प्रेस कांफ्रेंस करें ?
अगस्त 2018 में मेरठ में कांवड़ियों पर पुष्प वर्षा हुई थी। मेरठ ज़ोन के अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक प्रशांत कुमार ने पुष्प वर्षा की थी। उस वक्त हिन्दुस्तान टाइम्स की एक ख़बर छपी है। यह ख़बर दूसरी जगहों पर भी है। यूपी सरकार ने कांवड़ियों के दो रूट पर पुष्प वर्षा के लिए 14 लाख रुपये से अधिक की राशि मंज़ूर की थी। इससे आप हिसाब लगा सकते हैं कि देश भर में पुष्प वर्षा पर आज सरकार ने कितना ख़र्च कर दिया। अगर पैसे की कमी नहीं फिर पूछ लीजिएगा कि तब नौकरियां क्यों जा रही हैं, सैलरी क्यों कट रही है और ई एम आई क्यों नहीं भर पा रहे हैं?
लेखक:रवीश कुमार,वरिष्ठ पत्रकार