इस्लाम धर्म ने 1450 वर्ष पूर्व ही लॉक डाउन,क़ुरन्टीन, हॉट-स्पॉट,आइसोलेशन,फेस मास्क और हैंड वाश को परिभाषित कर दिया था।

घोसी (मऊ)कोविड-19 के विश्वव्यापी संकट के दौरान यदि इस्लाम की सलाह पर पूरे विश्व मे अमल किया जाता तो शायद इस मुसीबत को कम किया जासकता था।
कुरान शरीफ की सूरा संख्या 5 में स्पष्ट कहा गया है कि जिस मुल्क में रहते हो, उसके कायदे-कानून और वहां के हुक्मरानों की बात को मानो।

ईसलाम मज़हब की आसमानी किताब और उसके पैगंबर मुस्तफ़ा मुहम्मद सल्लेअलाहुअलैहिवसल्लम (SAW) ने इन पाबंदियों एवं एहतियातों का जिक्र 1450 साल पहले ही किया था, आज 21वीं शताब्दी में विज्ञान तो उन्हीं बातों का पालन करने को कह रहा है।
ऐसे में इस्लाम के मानने वालों का फर्ज बनता है कि वे अपने मज़हब के बताए हुए रास्तों पर चलें एवं अपने, समाज की तथा पूरे मुल्क के लोगों की हिफाज़त करें और सरकार के निर्देशों का पालन करें।
ऐसे स्पष्ट धार्मिक निर्देश के बावजूद भी यदि कोई कोरोना वायरस की महामारी के दौरान सरकार के निर्देशों का उल्लंघन करे, तो समाज के खिलाफ हरकतें करनेवाले ऐसे इंसान को गैरजिम्मेदार ही माना जाएगा।

हज़रत मुहम्मद मुस्तफा सलललाहु अलैहिवसल्लम (SAW) की पृष्ठ हदीस में संक्रामक रोग के दौरान *लॉक डाउन और हॉट स्पॉट* जैसे उपाय के निर्देश भी दिए गए हैं। हदीस में कहा गया है कि संक्रामक बीमारी के दौरान उन जगहों पर जाने से परहेज करें, जहाँ पर ये महामारी हो, और अगर आप उसी जगह पर हैं, जहां बीमारी है तो उस जगह को छोड़कर बाहर न जाएं। *बुखारी (5739) एवं अल मुस्लिम (2219)*
आज सरकार *‘सोशल डिस्टैंसिंग’* एवं *‘कोरेंटाइन’* की बात कर रही है। हदीस में भी संक्रामक रोग से पीड़ित व्यक्ति को सेहतमंद लोगों से दूर रखने की हिदायत दी गई है। *[अल बुखारी 6771 एवं अल मुस्लिम 2221]*
*आइसोलेशन* की बात आप आज सुन रहे है, मगर नबी करीम (SAW) ने 14 सदी पहले फरमाया था के सेहतमंद ऊंटों को बीमार ऊंटों से अलग बांधो।

आप सल्लाहोअलैहे वसल्लम ने ये भी फरमाया के जिस शख्स को संक्रामक रोग हो, शेष समाज को उससे दूर रहना चाहिये। *[सही बुखारी वाल्यूम 07- 71- 608 ]*
अपने एक जगह ये भी फरमाया के किसी संक्रमित से ऐसे भागो जैसे जंगल मे शेर को देखकर भागते हो। हदीस में साफ कहा गया है यदि आप संक्रमित है तो दूसरों को मुसीबत में न डालें *[इब्न मजहा (2340)]*

महामारी और संक्रमण के समय के लिय भी इस्लाम मे कहा गया है कि ऐसी महामारी के वक्त आपका घर ही आपकी मस्जिद है। जो सवाब (पुण्य) मस्जिद में नमाज का है, ऐसे समय में वही सवाब घर में पढ़ी हुई नमाज का भी है। *[अल तिरमज़ी(अल-सलाह, 291)]*
इन दिनों कोरोना वायरस से बचने के लिए *फेस मास्किंग* एवं *हैंड वाशिंग* को जरूरी बताया जा रहा है। ये बात तो 1450 साल पहले इस्लाम ने बताया थी कि साफ-सफाई आधा ईमान है।

पुष्ट हदीस में बताया गया है कि मुहम्मद सल्लल्लाहो अलैहेवसल्लम को जब छींक या खांसी आती थी, तो वह खुद के कपड़े से अपना मुंह ढक लिया करते थे। ये भी कहा गया है कि हुजूर ने फरमाया कि बाहर से अपने घर आते ही अपने हाथ धो लिया करो। *(तिरमज़ी, बुक 43, हदीश 2969)*

वैसे भी इस्लाम में हर बालिग मुसलमान मर्द व औरत पर पांच वक़्त की नमाज अनिवार्य है, और नमाज से पहले वज़ू (हाथों, पैरों और मुंह को ठीक से धुलना) अनिवार्य है। *[अल मुस्लिम (223)]*
इन हदीसो को पढ़ने और समझने के बाद ये बात समझ से दूर है कि कोरोना वायरस के संक्रमण से बचने के लिये आखिर इस्लाम के कुछ मानने वालों को समझाना क्यों पड़ रहा है। जो लोग आज भी इस बीमारी को गम्भीरता से नही लेरहे हैं तो क्या उन मुसलमानों तक इस्लाम का संदेश ठीक से नही पहुच रहा है या वो लोग इस बात को समझना नही चाह रहे हैं।


लेखक*अरशद जमाल पूर्व चेयरमैन मऊ*

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is a young journalist & editor at Millat Times''Journalism is a mission & passion.Amazed to see how Journalism can empower,change & serve humanity