बेशक मेरा रब बेनियाज़ है : मुहम्मद अकरम परतापगढ़ी

बहुत व्यस्त रहते थे, गाड़ी, मकान, दुकान, बच्चे और कारोबार यह सब चीज़ैं रुकावट बन रहीं थीं, जब गश्त करते हुए कोई नेक नियत इनसान घर पर हमें मस्जिद की तरफ़ बुलाने आता तो हम कहते अभी फुर्सत नहीं है, कपड़े नापाक हैं, गुसल सही नहीं है, बहुत बहाने बनाते थे, तबलीग वालों को देखकर घर में छुप जाते थे, कहते थे इनके पास कोई और काम नहीं है क्या? बड़ा गुरूर था जवानी का, बहुत घमंड था दौलत का, बड़ा नाज़ था अपनी खूबसूरती का, चलते थे ऐसे अकड़ कर जैसे पहाडों की ऊचाई को छे लेंगे , और ज़मीन पर ऐसे पाँव पटखते थे कि ज़मीन फाड़ कर रख देंगे, समझते थे कि हमारे इतना बड़ शिक्षित और कोई नहीं है, खुद को दिमाग व अक्ल का बादशाह समझ बैठे थे, खयाल था की हम नेतागीरी द्वारा हर एक से पंगा ले सकते हैं, हम दलाली के चोर दरवाज़े से बच कर निकल जाएंगे, गुमान था हम मौलवी हैं कोई हीला तराश लेंगे, हम डाकटर हैं हर मर्ज़ का इलाज रखते हैं, हमारा ताल्लुक अमरीका से है हम सब पर भारी हैं, हम सऊदी अरब में रहते हैं, मक्का मदीना से बहुत करीब हैं हमें कोई नुकसान नहीं होगा,

हमारे सारे काम चल रहे थे, दुकान, मकान, कारोबार, तिजारत, मार्कीट, कंपनी सब आबाद थे, भीड़ थी, रौनक़ थी, पैसों की रेल पेल थी, मकान बनाए जा रहे थे, कारोबार बढ़ाए जा रहे थे, स्कूल आबाद, कॉलेज आबाद, क्लब आबाद, मजलिस और जलसे आबाद, शादी विवाह, गाड़ी मोटर, चहल-पहल, हंसी मज़ाक कहकहे, सब कुछ जारी था,

बस हम सब रब को भूले हुए थे, मस्जिदें वीरान पड़ी हुई थीं, कुरआन मजीद पर धूल जमी हुई थी, मतलबपरस्ती का ज़माना चल रहा था, नबी की सुन्नतैं बीच बाज़ार में ज़िबह की जा रही थी, माओं को रुस्वा किया जा रहा था, बुजुर्गों को बेइज्जत किया जा रहा था, मेरे रब को जलाल आ गया, रब की ग़ैरत को जोश आ गया, उसने सोए हुए इन्सानो को बेदार करना चाहा, बेहिससों को झिंझोड़ना चाहा, एक बीमारी बल्कि महामारी मुसल्लत कर दी, लोग मस्जिदों की तरफ़ भागे, लेकिन नहीं मेरे रब को किसी मतलबी के सजदे की कोई ज़रूत नहीं है, वह बेनियाज़ है, लोगों ने कोशिश की मस्जिदों में जाने की, उसने पुलिस भेज दी, रब ने मतलबी लोगों को डनडे मार मार कर मस्जिदों से निकलवा दिया, उसे डरे हुए सजदे, मतलबी पेशानी नहीं चाहिए, उसे मुहब्बतों के आंसू पसन्द हैं, रातों की गिड़गिड़ाती हुई ज़ुबान बहुत पसन्द है, शर्मिन्दा दिल को वह बहुत चाहता है, सर झुका हुआ इनसान उसे अच्छा लगता है,

आओ तौबा करें, अभी उसने मस्जिदों के दरवाज़े बन्द करवाए हैं, कहीं ऐसा ना हो कि तौबा का दरवाज़ा भी बन्द हो जाए, फिर हम चीखते फिरें, और कोई सुनवाई ना हो,

खुदा के वास्ते रूठे रब को मना लो, सर उसके दर पर झुका दो, आंखो से शर्मिन्दगी के आंसू बहा दो, वह मान जाएगा, वह राज़ी हो जाएगा, सुना है माँ भी गुस्सा होती है, बेटा मॉं के सामने एक आंसू गिरा दे, मां तड़प उठती है, अपने बेटे को सीने से लगा लेती है, नबी जी ने बता दिया है, की अल्लाह सत्तर माओं से ज्यादा प्यार करता है, एक बार रो कर तो देखो, आंखै भिगो कर तो देखो, कह दो अल्लाह हम आगए हैं, कह दो इलाही हम शर्मिन्दा हैं,

सुनो! वह तुम को ताना नहीं देगा, वह कोई सवाल भी नहीं करेगा, अब तक कहाँ थे, कया ले कर आए हो, कितनी नेकियां खाते में है, कोई सवाल नहीं होगा, उस के दर पर खाली हाथ जाओगे दामन भर कर वापस लौटो गे,

सुनो मोमिनो! सच्ची तौबा करो, तुम चल कर जाओगे वह दौड़ कर आएगा, क़दम उठाओ तो सही, आगे बढ़ाओ तो सही, वह तुम्हारे इन्तज़ार में है, आंसू गिरा कर रब को मना लो, कोरोना को भगा दो, शुक्रिया धन्यवाद!!!

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is a young journalist & editor at Millat Times''Journalism is a mission & passion.Amazed to see how Journalism can empower,change & serve humanity