बिहार में इन दिनों कन्हैया कुमार की जण गण मन यात्रा चल रही है। कन्हैया की इस यात्रा का फलितार्थ उसके चाहने वाले बता रहे हैं की मोदी सरकार के द्वारा लाये गए नागरिकता संशोधन कानून का विरोध और साथ में बेरोजगारी , अशिक्षा और केंद्र सरकार की विभिन्न मोर्चों पर नाकामी को लोगों के बीच सामने लाना है। लेकिन वास्तविकता इतनी मात्र है ? मैं मानता हूँ ऐसा नहीं है। मैं ऐसा क्यों मानता हूँ , इसे समझने के लिए इस यात्रा के चरित्र ,मंच पर उठने -बैठने वाले लोग ,यात्रा को सुचारू रूप से आगे बढ़ाने वाली दृश्य -अदृश्य ताकतें और इस यात्रा के साथ -साथ यात्रा कर रहे छिपे हुए निहितार्थों से होकर गुजरते हैं।
इस यात्रा में आने वाले लोग या तथाकथित भीड़ कौन है ?
कन्हैया की इस यात्रा में अब तक हुई सभाओं की पड़ताल करने पर यह देखा गया है कि औसतन 5000 लोगों की मौजूदगी रहती है। संयोगवश मधुबनी के जयनगर में हुई सभा का प्रत्यक्षदर्शी मैं भी था। 4 फरबरी को मैं जयनगर अपने निजी काम से गया था तभी नेशनल हाईवे के किनारे एक मैदान में लोगों के जमावड़े देखकर पता चला कि कन्हैया कुमार की सभा होने वाली है। मुश्किल से दो से ढाई हजार लोग होंगे। संयोगवश उसी दिन बिहार के छात्रों की इंटरमीडिएट की परीक्षा भी चल रही थी और वे लोग भी जयनगर के 3 -4 परीक्षा केंद्रों से निकल कर सड़क पर खड़े थे यह जानकर कि कन्हैया कुमार आने वाला है। इसलिए सोशल मीडिया पर चालाकी से अलग -अलग कोनों से खींची गयी तस्वीरों को डालकर भारी हुजूम दिखाने की कारीगरी उसकी पी आर टीम का हिस्सा है , कुछ और नहीं।
अब बात करते हैं भीड़ की प्रकृति पर। इसकी सभा में आने वाले लोग कौन हैं ? शीशे की मानिंद साफ़ है कि कन्हैया की सभा में आये लोगों 70 -80 % मुस्लिम हैं। इसका कारण यह है कि सिर्फ बिहार में ही नहीं , देश भर में NRC ,CAA के विरोध में स्वतःस्फूर्त आंदोलन चल रहा है। अलग -अलग जगहों पर लोग महीना भर से ऊपर से लोग धरने पर बैठे हुए हैं जिसमें अधिकतर मुस्लिम हैं। और मीडिया के द्वारा कन्हैया की गढी हुई तथाकथित क्रांतिकारी और मोदी विरोध का चेहरा ऐसे में सभा के आसपास धरने पर बैठे लोगों को अनायास ही ले जा रहा है। आज मोदी CAA और NRC वापस ले ले और फिर सीपीआई के बैनर तले कन्हैया कोई सभा करे , लोग ढूँढ़ने से भी नहीं मिलेंगे। बाकी जो 20 % लोग उस सभा के हिस्सा बन रहे हैं , वह यूथ है। उस यूथ का कोई स्पेसिफिक चेहरा नहीं है। उस यूथ में वे लोग भी हैं जिसे कन्हैया में कनहैवा देशद्रोही दीखता है , वे लोग भी हैं जिसे कन्हैया में क्रांतिकारी दीख रहा है और वे बेरोजगार युवा भी जो कन्हैया के द्वारा बेरोजगारी के खिलाफ की गयी तक़रीर को सुनकर यह समझ बैठते हैं कि क्रांति अब आने ही वाली है और बेरोजगारी अब बीते दिनों की बात होगी।
इस यात्रा का मंच कैसे सज रहा है ?
यह सवाल भी लाजिमी है कि इस यात्रा के तहत हुई अलग -अलग सभाओं में कौन से चेहरे प्रमुखता से दीखते गए और वे किन मकसदों से जुड़े हुए हैं ? पूरी यात्रा में 3 तरह के लोगों के द्वारा मंच के इर्द -गिर्द जगह बनायी जा रही है या यूँ कहें कि ये ही लोग सभाओं के आयोजक और संचालक की तरह दीख रहे हैं। पहले किस्म के लोगों में मुस्लिम सोशल एक्टिविस्ट जो अलग -अलग जगहों पर NRC /CAA के विरोध में आंदोलन को संचालित कर रहे हैं। इस प्रकार आपको अररिया से कटिहार तक की सभाओं में जाहिद अनवर भी नजर आते हैं जो एक रिसर्च स्कॉलर तो हैं ही , NRC /CAA के विरोध में चल रहे आंदोलन के सीमांचल कोआर्डिनेशन कमिटी के प्रेजिडेंट भी हैं। वहीँ ओवैसी की पार्टी के बिहार प्रदेश अध्यक्ष अख्तरुल इस्लाम भी दीखते हैं तो कदवा के कांग्रेसी विधायक शकील अहमद खान भी दृष्टिगोचर होते हैं । श्री खान हर तरह से मददगार हैं। इस तरह 40 -50 लोगों की टीम में वैसे मुस्लिम युवा , राजनेता या अन्य लोग हैं जिसे लगता है कि कन्हैया के साथ दीखती तस्वीर कहीं उसे कहीं से वैतरणी पार करा दे। इसमें से कई आनेवाले बिहार विधानसभा चुनाव के टिकटार्थी हैं , इससे इंकार नहीं किया जा सकता।
मंच को दूसरे तरह के लोगों ने भी कब्जाया हुआ है। शिवहर जिले में हुई सभा में मंचासीन कुछ लोगों पर नजर डालिये। श्री नारायण सिंह जो जिला पार्षद भी हैं या रह चुके हैं। बड़े ठसक से मंच पर मौजूद हैं। उनकी छवि उस इलाके में किसी दबंग से कम नहीं। भाजपा से स्वाभाविक जुड़ाव है। शास्वत पांडेय भी दीखते हैं। जदयू के पूर्व विधायक मदन तिवारी भी नजर आ जाते हैं। सबके सब दक्षिण खेमे से हैं और उन्हें कन्हैया में अब सवर्णों का भावी तारणहार नजर आने लगा है। इसलिए वोट भले वो भाजपा को दें और दिलायें , लेकिन कन्हैया के लिए माहौल बनाने में अग्रणी भूमिका निभा रहे हैं। अब जब राजनीति में हैं तो इच्छा भी होगी कि कांग्रेस , सीपीआई या अन्य जगहों से टिकट दिलाने में कन्हैया मददगार हो तो मदद लेने और बदले में मदद देने में क्या ऐतराज हो। तो इधर भी टिकटार्थियों की लम्बी कतार है।
टीम में तीसरे किस्म के लोग में सीपीआई की कल्चरल विंग इप्टा के लोग हैं। कमोबेश सभी सभाओं में यही पैटर्न है।
आगामी बिहार विधानसभा चुनाव और जण -गण -मन यात्रा।
कन्हैया से जब पत्रकार पूछता है कि आपकी इस यात्रा को क्या विधानसभा चुनाव की तैयारी समझा जाय ? वह सिरे से इंकार करता है और बेरोजगारी , गरीबी ,अशिक्षा, फलाना -ढिमकाना कहकर निकल लेता है। लेकिन यह सच नहीं है। सच यह है कि इस यात्रा के जरिये बिहार विधानसभा चुनाव में अपनी और अपनी पार्टी का क्लेम और शेयर चाह रहा है जो बुरा नहीं है। ऐसे कई लोग यह कहते मिल जायेंगे जिसमें राजद के समर्थक अधिक हैं कि वह संघ और भाजपा द्वारा प्लांटेड है ताकि अधिक से अधिक मुस्लिम वोट्स को तीतर -बीतर कर सके। मैं फ़िलहाल यह नहीं मानता कि उसे संघ ने प्लांट किया है। लेकिन आगे बढ़ते हैं।
कन्हैया का सारा फोकस मुसलमानों और दलितों में हैं। ज्यादा मुस्लिम वोट्स पर , उसमें भी खासकर मुस्लिम युवाओं पर। आंबेडकर और आरक्षण से दशकों तक छत्तीस का रिश्ता रखने वाली वामपंथी दलों ने अब चोला बदला या बदलने को मजबूर हुआ और लाल सलाम से चलकर नील सलाम तक पहँच गया। जय भीम और जय मीम गाये जाने लगे हैं। तो इसका साफ़ -साफ़ सन्देश है मुस्लिम और दलित वोटों में सेंधमारी कर राजद को समझौते की टेबल पर लाना और अपना अधिक से अधिक शेयर क्लेम करना। वामपंथी दलों की आखिरी उम्मीद अब कन्हैया से ही है जो बीते कई सालों से सत्ता और संसद की चासनी से महरूम है। कन्हैया में अब उसके अपनी बिरादिरी के लोगों को भी भविष्य नजर आने लगा है जो बीते 30 सालों से सत्ता से या तो दूर रहा है या सीधे तौर पर मजा न लेकर नितीश कुमार की मदद से मजा लेने को मजबूर हुआ। इसलिए दल चाहे भाजपा हो , जदयू हो या कांग्रेस हो , कान्हा की बिरादिरी के नेता कान्हा की अदा पर लहालोट हैं।
नीतीश की मुस्कुराहट और तेजस्वी की त्योरियाँ।
स्वाभाविक है नितीश मंद -मंद मुस्कुरा रहे होंगे कान्हा की चपल चालों को देखकर। वर्तमान हालात में जब देश भर में NRC /CAA के विरोध में आंदोलन चल रहा है , यह तो तय है कि मुसलमानों का एक भी वोट जदयू और नितीश कुमार को नहीं जाने वाला जिन्हें इस समुदाय के अच्छे -खासे वोट मिल जाते थे । तब इनका वोट जायगा किसे ? स्वाभाविक है जदयू -भाजपा को हराने में जो सबसे ज्यादा सक्षम होगा उसे ही। और आज की तारीख में भी राजद ही वह दल है और मुसलमानों का एक मुश्त वोट राजद और सहयोगी दलों को ही जाना है। और यह स्थिति नितीश कुमार की पेशानी पर बल लाने के लिए काफी है। ऐसे में कान्हा जब मुसलमानों के घर सेंधमारी करेंगे तो नितीश जी का मुस्कुराना और तेजस्वी की त्योरियाँ चढ़ना लाजिमी है। नितीश बहुत सादगीपसंद और किफायती व्यक्ति हैं। वह बिना मतलब के न तो मुस्कुराते हैं , न गुस्सा होते हैं , न किसी को पुचकारते हैं। इसलिए यदा -कदा जब कान्हा को दुलार कर देते हैं तो उसके निहितार्थ हैं। पश्चिमी चंपारण में जब पुलिस कान्हा को रोकने और डिटेन करने गयी तो आनन -फानन में नितीश जी का अपनी पुलिस का फटकारना बस यूँ ही नहीं था। जब भाजपा और जदयू को यह लग जायगा कि कान्हा उसकी राजनीति के लिए खतरा है , अंदर करने में सेकंड भर की देर नहीं करेगी। लेकिन भाजपा को यह पता है कि कान्हा मुस्लिमों के घर जितना अधिक सेंध मारेंगे , राजद का उतना अधिक नुकसान होगा। ऊपर से कन्हैया को देशद्रोही का ख़िताब देकर उसे मिडिल क्लास हिन्दूओं को एक जगह रखने में उतनी ही अधिक सहूलियत होगी। और यह स्थिति राजद और तेजस्वी की राजनीति के लिए निश्चित तौर पर खतरे वाली है।
लालबाबू ललित
अधिवक्ता सुप्रीम कोर्ट