मिल्लत टाइम्स,कानपुर:इस्लाम एक पूर्ण जीवन प्रणाली है।दीन व दुनिया में पेश आने वाली जरूरतों में कोई ऐसी जरूरत नहीं है जिसके बारे में इस्लाम में मार्गदर्शन न हो।पैगम्बर मुहम्मद स0अ0व0 अल्लाह के आखिरी नबी हैं उनके बाद कोई नबी नहीं आने वाला और दीन ए इस्लाम कयामत तक जारी रहेगा । दीन व दुनिया की आवश्यकता के लिए सन व तारीख की जरूरत पड़ती है इस्लाम की अपनी तारीख व कलेंडर है वह किसी का मोहताज नहीं। इन विचारों को मौलाना मुहम्मद मतीनुल हक उसामा क़ासमी जमियत उलेमा के प्रदेश अध्यक्ष ने जमियत बिल्डिंग रजबी रोड जमीअत उलमा शहर व मज्लिस तहफ्फुज़े खत्मे नुबुव्वत कानपुर में आयोजित जलसा इस्तक़बाले इस्लामी नव वर्ष 1441 हिजरी में अपने बयान में व्यक्त किया।
मौलाना मुहम्मद मतीनुल हक उसामा कासमी ने सन हिजरी के इतिहास पर विस्तार से प्रकाश डालते हुए कहा कि इस्लामी कलेन्डर से हमारी इबादतें जुड़ी हैं हम रोज़ा, ईदैन और हज आदि इबादतों को इस्लामी कैलेंडर के हिसाब से अदा करते हैं. इस्लामी कलेंडर की सुरक्षा हम सभी मुसलमानों का दायित्व है। दुनिया की जरूरतों में सन् ईसवी के उपयोग का मतलब यह नहीं है कि हम अपने कैलेंडर को भुला दें। इस्लाम सभी के लिए है। मौलाना ने सन् हिजरी की स्थापना पर प्रकाश डालते हुए कहा कि इस्लाम में फारूक आजम रजि0 से पहले सन् लिखने का रिवाज न था आम घटनाओं को याद रखने के लिए जाहिलियत में कुछ प्रसिद्ध घटनाओं से सन की गणना कर लेते थे। बहुत दिनों तक काब बिन लुइ के निधन से साल शुमार होता रहा, या फिर आमुल्फील जारी हुआ उसकी शुरूआत इस साल से हुई जबकि अबरहा काबा के ढाने का हाथी लेकर आया था और उसी हिसाब से आमुल्फील से पबेर किया फिर आमुल्फुज्जार का रिवाज हुआ फिर उसके बाद विभिन्न सन् चले लेकिन फारूक आजम ने जो सन् चलया वह आज तक जारी है और कयामत तक इस्लाम के हर समुदाय में यही जारी रहेगा 16 हिजरी में फारूक रजि0 के सामने दो फरमान पेश किए गए जिन पर केवल शाबान लिखा था और जो एक दूसरे से विपरीत था हजरत फारूक आज़म ने कहा कि मैंने इस आदेश में मना किया था।
आमिल ने कहा नहीं आपने इस फरमान की अनुमति दी थी हजरत उमर फारूक आज़म यह सुनकर चुप हो रहे और उसी समय अरबाब शूरा इकट्ठा करके एक मजलिस आयोजित की, बड़े-बड़े सहाबा इकट्ठा हुए और यह समस्या पेश हुई किसी ने राय दी कि सन् की गणना रसूलुल्लाह सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम की विलादत से किया जाए, हजरत फारूक आजम ने कहा इसमें ईसाइयों से मुशाबिहत पाई जाती है क्यों कि उनका सन् भी मीलादी है किसी ने कहा कि साल का हिसाब रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की नबुव्वत से हो कोई बोला कि इसमें फारसियों की तकलीद किया, फारूक आजम ने इन दोनों रायों से अलग होकर के इरशाद फरमाया कि बेहतर होगा कि सन् का शुमार हिजरत रसूल अल्लाह सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम से किया जाए क्योंकि यह इस्लाम में यह बहुत बड़ी घटना है और उसी के बाद से इस्लाम का तेजी से प्रसार हुआ लोगों ने इस राय को पसंद किया और इसी पर सहमति हो गयी फिर चर्चा यह पैदा हुई कि रसूल अल्लाह सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम ने रबीउल अव्वल में हिजरत फरमाई थी उस हिसाब से शुरू साल रबीउल अव्वल हो या कि अरब के पुराने दस्तूर के लिहाज़ से मुहर्रम के महीने से हो।
सहाबा किराम के मशवरे से फारूक आजम ने मुहर्रम को साल का पहला महीना नियुक्त किया। मौलाना उसामा ने जल्सा इस्तक़बाल इस्लामी नव वर्ष का कारण बताते हुए कहा कि इसका उद्देश्य केवल अपनी संस्कृति अपना कल्चर और अपने कैलेंडर को याद करना ही नहीं बल्कि यह रिवाज देना और उसकी सुरक्षा का संकल्प लेना है। कुरआन की तिलावत से कार्यक्रम का शुभारम्भ हुआ । संचालन हक़ एजुकेषन के डायरेक्टर मौलाना हिफ्जुर्रहमान क़ासमी ने किया। इस अवसर पर मुफ्ती उस्मान क़ासमी, मौलाना नूरूद्दीन अहमद क़ासमी, डा0 हलीमुल्लाह खां, मौलाना जावेद क़ासमी, मौलाना अकरम जामई, मौलाना अंजुम मज़ाहिरी, क़ारी अब्दुल मुईद चौधरी, मौलाना अनीस खां आदि के अलावा बड़ी संख्या में लोग मौजूद थे।े