कांग्रेस नेता कार्यकर्ताओं की ताकत पर सत्ता की मलाई खाने के चहते बनने के कारण कांग्रेस रसातल मे पहुंची!

अशफाक कायमखानी।जयपुर।
2006 मे महामंत्री व 2013 मे कांग्रेस के उपाध्यक्ष बनने के बाद पीछले ढेढ साल पहले अध्यक्ष बनने वाले गांधी परिवार के सदस्य राहुल गांधी के कांग्रेस मे अनेक तरह के बदलाव करके खोई ताकत वापिस लाने की भरपूर कोशिश करने के बावजूद कांग्रेस के दिग्गज नेताओं के एक कोकस ने राहुल की उजली तस्वीर उभरने देने मे हमेशा कोताही ही बरती।

कांग्रेस के अधीकांश नेताओं के जनता के मध्य रहकर संघर्ष करने के बजाय कार्यकर्ताओं को जलती संघर्ष की आग मे झोंककर फिर सत्ता आने पर कार्यकर्ताओं को दरकिनार करके स्वयं के मलाई खाने की आदत की भावना से ओतप्रोत होने के कारण आज ऐसे नेताओं के कारण नये तौर पर कांग्रेस कार्यकर्ता बनने का सीलसीला खत्म सा हो चला है। राहुल गांधी के यूथ कांग्रेस व एनएसयूसीआई के संगठन चुनाव के लिये जो प्रक्रिया अपनाई उससे मोका परस्त व विचारधारा से मैल नही खाने वाले कार्यकर्ताओं का जमावड़ा होने लगने से आज वो संगठन असरकारक साबित नही हो रहे है।

राजस्थान मे 1998 मे कांग्रेस सरकार आने के बाद मुख्यमंत्री गहलोत द्वारा अपने खिलाफ किसी तरह के विरोध स्वर ना उठने के बचाव के लिये विधायक या विधानसभा चुनाव मे हारे उम्मीदवार को उसके क्षेत्र का पूरी तरह एक तरह से थानेदार घोषित करने के बाद धीरे धीरे कांग्रेस रसातल मे जाने लगी एवं कार्यकर्ताओं की उत्पत्ति पर विराम सा लग गया। 1998 मे अशोक गहलोत के मुख्यमंत्री बनने के बाद अपने खिलाफ किसी तरह के विरोधी स्वर ना उठने देने के लिये उन्होंने एक तरह से विधायकों व विधानसभा चुनाव मे उम्मीदवार रहने वालो को उनके क्षेत्र का थानेदार बनाकर गलत परम्परा की नीवं डाली। जिसके बाद कांग्रेस मे कार्यकर्ताओं का टोटा व क्षेत्र मे विधायकों की मनमर्जी के खिलाफ जनता मे विरोध पनपने लगा। जिसका परिणाम आज सबके सामने है।

अशोक गहलोत ने 1998 मे मुख्यमंत्री बनने के बाद विधायकों को उसके क्षेत्र का थानेदार बनाकर नये रुप से परिपाटी डाली कि मेरीट के आधार की बजाय प्रत्येक तबादले पर स्थानीय विधायक की मोहर डिजायर के रुप मे आवश्यक हो गया। विकास का काम हो या फिर ईष्या के तहत किसी की खाट खड़ी करने के लिए स्थानीय विधायक को परोक्ष रुप से पूरी तरह छूट मिल गई। संगठन मे ब्लाक कमेटी, डीसीसी व पीसीसी सदस्य भी उसी स्थानीय विधायक की मंशा के मुताबिक मनोनीत होने लगे। स्थानीय निकाय व पंचायत चुनाव मे उम्मीदवार चयन के लिये शत प्रतिशत अधिकार उसी विधायक को मिलने से लगा कि विधानसभा क्षेत्र मे जो विधायक माने वोही कांग्रेस कार्यकर्ता बाकी सब कूड़ेदान का सामान। इससे कार्यकर्ताओं की नई खेप आना बंद होने से आज बूथ पर लड़ने व संघर्ष करने वाले कार्यकर्ताओं का कांग्रेस मे टोटा होने से कांग्रेस बूरे दौर से गूजरने लगी है। 1998 मे156 विधायको के साथ कांग्रेस की सरकार बनने के बाद कांग्रेस ने दो ओर दफा सरकार तो बनाई है लेकिन उसके बाद बहुमत के लिये जरूरी 101 विधायकों का आंकड़ा कांग्रेस आज तक छू नही पाई है। हमेशा जोड़ तोड़ से सरकार बनाई व चलाई है।

कुल मिलाकर यह है कि कांग्रेस को अपने सिस्टम मे चैंज लाकर विधायक के अलावा संगठन व कार्यकर्ताओं को भी कम ज्यादा तवोजह देने का सीलसीला बनाना होगा। उसके अलावा बूथ मेनेजमेंट मजबूत करने पर ध्यान देना होगा। वरना कांग्रेस ओर अधिक रसातल मे धंसती चली जायेगी।

SHARE
is a young journalist & editor at Millat Times''Journalism is a mission & passion.Amazed to see how Journalism can empower,change & serve humanity