मिल्लत टाइम्स,नई दिल्ली:गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने तीन प्रमुख हस्तियों को भारत रत्न देने का ऐलान किया है जिसके अर्न्तगत भूपेन हजारिका और नाना जी को मरणोपरांत भारत रत्न देने की घोषणा की गई है, वहीं पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी को भी यह पुरस्कार दिया जाएगा।
पूर्व राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने ट्वीट कर कहा, ‘देश के लोगों के प्रति विनम्रता और कृतज्ञता की भावना के साथ मैं इस महान सम्मान को स्वीकार करता हूं। मैं हमेशा कहता हूं और मैं दोहराता हूं कि मैंने जितना दिया है उससे कहीं ज्यादा मुझे मेरे महान देश के लोगों से मिला है।’
It is with a deep sense of humility and gratitude to the people of India that I accept this great honour #BharatRatna bestowed upon me. I have always said and I repeat, that I have got more from the people of our great country than I have given to them.#CitizenMukherjee
— Pranab Mukherjee Legacy Foundation- PMLF (@CitiznMukherjee) January 25, 2019
पीएम मोदी ने कहा कि प्रणव दा हमारे समय के उत्कृष्ट राजनेता हैं। उन्होंने दशकों तक निस्वार्थ भाव से अनवरत देश की सेवा की है। उन्होंने राष्ट्र के विकास पथ पर एक मजबूत छाप छोड़ी है। मुखर्जी के ज्ञान की प्रशंसा करते हुए पीएम ने कहा कि मुझे खुशी हुई कि उन्हें भारत रत्न दिया गया है।
हजारिका के बारे में पीएम ने कहा कि भूपेन हजारिका के गीत और संगीत की हर पीढ़ी के लोगों ने प्रशंसा की है। इसके जरिए उन्होंने न्याय, सौहार्द्र और भाईचारे का संदेश दिया। उन्होंने भारत की संगीत परंपरा को विश्व स्तर पर लोकप्रिय बनाया। भूपेन दा को भारत रत्न दिए जाने पर प्रसन्नता हुई।
नानाजी के बारे में पीएम ने कहा कि ग्रामीण विकास की दिशा में नानाजी देशमुख के अहम योगदान ने हमारे गांव के लोगों को सशक्त बनाने का एक नया रास्ता दिखाया। वह सच मायने में भारत रत्न हैं। वहीं प्रणब मुखर्जी की बेटी शर्मिष्ठा मुखर्जी ने कहा कि यह परिवार के लिए सम्मान और गौरव का क्षण है।
जाने प्रणब दा के बारे में
प्रणब मुखर्जी का जन्म पश्चिम बंगाल के वीरभूम जिले के मिराती गांव में 11 दिसम्बर 1935 को एक ब्राह्मण परिवार में हुआ। प्रणब मुखर्जी के पिता का नाम कामदा किंकर मुखर्जी और माता का नाम राजलक्ष्मी मुखर्जी है। प्रणब दा 13वें राष्ट्रपति थे। राष्ट्रपति बनने से पहले वे कांग्रेस पार्टी के सक्रिय सदस्य थे। प्रणब मुखर्जी कलकत्ता विश्वविद्यालय से इतिहास और राजनीति विज्ञान में एमए के साथ साथ कानून की डिग्री भी हासिल की। वे वकील, पत्रकार और प्रोफेसर रह चुके हैं। उन्हें मानद डी.लिट उपाधि भी प्राप्त है।
प्रणब मुखर्जी ने 1969 में राज्य सभा सांसद के तौर पर अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत की। 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद प्रणब दा ने कांग्रेस पार्टी को अलविदा कह दिया था। प्रणब ने इसके बाद खुद की एक अलग पार्टी बनाई, लेकिन तीन साल बाद 1991 में पीवी नरसिंहा राव की सरकार बनने के बाद वह दोबारा कांग्रेस में शामिल हो गए। केंद्र में रहते हुए प्रणब मुखर्जी ने वित्त मंत्री से लेकर विदेश विभाग और रक्षा मंत्री तक का पदभार भी संभाला है।
प्रणव दा की उपलब्धियां
वर्ष 2010 में इन्हे एशिया के सबसे अच्छे वित्त मंत्री का खिताब दिया गया
वर्ष 2011 में वोल्वरहैम्टन युनिवर्सिटी द्वारा डॉक्टरेट की मानद उपाधि से सम्मानित
संसद के बेस्ट सांसद के रूप में किया जा चुका है सम्मानित
भारत सरकार ने पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया है
1984 में एक पत्रिका की सूची में विश्व के टॉप पांच वित्त मंत्रियों में शुमार किए गए
जानें नाना जी देशमुख के बारे में
नानाजी का जन्म 11 अक्टूबर सन 1916 को बुधवार के दिन महाराष्ट्र के हिंगोली जिले के एक छोटे से गांव कडोली में हुआ था। इनके पिता का नाम अमृतराव देशमुख था तथा माता का नाम राजाबाई था। नानाजी के दो भाई एवं तीन बहने थीं।
Nanaji Deshmukh's stellar contribution towards rural development showed the way for a new paradigm of empowering those living in our villages.
He personifies humility, compassion and service to the downtrodden. He is a Bharat Ratna in the truest sense!
— Narendra Modi (@narendramodi) January 25, 2019
नानाजी जब छोटे थे तभी इनके माता-पिता का देहांत हो गया। वे बचपन से ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की दैनिक शाखा में जाया करते थे। बाल्यकाल में सेवा संस्कार का अंकुर यहीं फूटा। जब वे 9वीं कक्षा में अध्ययनरत थे, उसी समय उनकी मुलाकात संघ के संस्थापक डॉ. हेडगेवार से हुई। डा. साहब इस बालक के कार्यों से प्रभावित हुए।
मैट्रिक की पढ़ाई पूरी होने पर डॉ. हेडगेवार ने नानाजी को आगे की पढ़ाई करने के लिए पिलानी जाने का परामर्श दिया तथा कुछ आर्थिक मदद की भी पेशकश की, पर नाना को आर्थिक मदद लेना स्वीकार्य न था। वे किसी से भी किसी तरह की सहायता नहीं लेना चाहते थे। उन्होंने डेढ़ साल तक मेहनत कर पैसा इकट्ठा किया और उसके बाद 1937 में पिलानी गए। पढ़ाई के साथ-साथ निरंतर संघ कार्य में लगे रहे। कई बार आर्थिक अभाव से मुश्किलें पैदा होती थीं परन्तु नानाजी कठोर श्रम करते ताकि उन्हें किसी से मदद न लेनी पड़े। सन् 1940 में उन्होंने नागपुर से संघ शिक्षा वर्ग का प्रथम वर्ष पूरा किया। उसी साल डाक्टर साहब का निधन हो गया। फिर बाबा साहब आप्टे के निर्देशन पर नानाजी आगरा में संघ का कार्य देखने लगे।
ग्रामोदय से राष्ट्रोदय का अभिनव प्रयोग
ग्रामोदय से राष्ट्रोदय के अभिनव प्रयोग के लिए नानाजी ने 1996 में स्नातक युवा दम्पत्तियों से पांच वर्ष का समय देने का आह्वान किया। पति-पत्नी दोनों कम से कम स्नातक हों, आयु 35 वर्ष से कम हो तथा दो से अधिक बच्चे न हों। इस आह्वान पर दूर-दूर के प्रदेशों से प्रतिवर्ष ऐसे दम्पत्ति चित्रकूट पहुंचने लगे। चयनित दम्पत्तियों को 15-20 दिन का प्रशिक्षण दिया जाता था। प्रशिक्षण के दौरान नानाजी का मार्गदर्शन मिलता था।
Pranab Da is an outstanding statesman of our times.
He has served the nation selflessly and tirelessly for decades, leaving a strong imprint on the nation's growth trajectory.
His wisdom and intellect have few parallels. Delighted that he has been conferred the Bharat Ratna.
— Narendra Modi (@narendramodi) January 25, 2019
राजनीतिक जीवन
जब आरएसएस से प्रतिबंध हटा तो राजनीतिक संगठन के रूप में भारतीय जनसंघ की स्थापना का फैसला हुआ। गुरूजी ने नानाजी को उत्तरप्रदेश में भारतीय जनसंघ के महासचिव का प्रभार लेने को कहा। नानाजी के जमीनी कार्य ने उत्तरप्रदेश में पार्टी को स्थापित करने में अहम भूमिका निभायी। 1957 तक जनसंघ ने उत्तरप्रदेश के सभी जिलों में अपनी इकाइयाँ खड़ी कर लीं। इस दौरान नानाजी ने पूरे उत्तरप्रदेश का दौरा किया जिसके परिणामस्वरूप जल्द ही भारतीय जनसंघ उत्तरप्रदेश की प्रमुख राजनीतिक शक्ति बन गयी।
यूपी की बड़ी राजनीतिक हस्ती चन्द्रभानु गुप्त को नानाजी की वजह से तीन बार कड़ी चुनौती का सामना करना पड़ा। एक बार, राज्यसभा चुनाव में कांग्रेसी नेता और चंद्रभानु के पसंदीदा उम्मीदवार को हराने के लिए उन्होंने रणनीति बनायी। 1957 में जब गुप्त स्वयं लखनऊ से चुनाव लड़ रहे थे, तो नानाजी ने समाजवादियों के साथ गठबन्धन करके बाबू त्रिलोकी सिंह को बड़ी जीत दिलायी। 1957 में चन्द्रभानु गुप्त को दूसरी बार हार को मुंह देखना पड़ा।
यूपी में पंडित दीनदयाल उपाध्याय की दृष्टि, अटल बिहारी वाजपेयी के वक्तृत्व और नानाजी के संगठनात्मक कार्यों के कारण भारतीय जनसंघ महत्वपूर्ण राजनीतिक शक्ति बन गया। न सिर्फ पार्टी कार्यकर्ताओं से बल्कि विपक्षी दलों के साथ भी नानाजी के सम्बन्ध बहुत अच्छे थे। चन्द्रभानु गुप्त भी, जिन्हें नानाजी के कारण कई बार चुनावों में हार का सामना करना पड़ा था, नानाजी का दिल से सम्मान करते थे और उन्हें प्यार से नाना फड़नवीस कहा करते थे। डॉ॰ राम मनोहर लोहिया से उनके अच्छे सम्बन्धों ने भारतीय राजनीति की दशा और दिशा दोनों ही बदल दी।
The songs and music of Shri Bhupen Hazarika are admired by people across generations. From them radiates the message of justice, harmony and brotherhood.
He popularised India's musical traditions globally.
Happy that the Bharat Ratna has been conferred on Bhupen Da.
— Narendra Modi (@narendramodi) January 25, 2019
जानें भूपेन हजारिका के बारे में
भूपेन हजारिका 8 सितंबर 1926 को असम में जन्मे थे। हजारिका 10 भाई-बहनों में सबसे बड़े थे। हजारिका को गाने की प्रेरणा अपनी मां से मिली थी। वे गुवाहाटी में पले-बढ़े, जहां वे सिर्फ 10 साल की उम्र में असमिया भाषा में गाने गाते थे। जब फिल्मकार ज्योतिप्रसाद अग्रवाल ने उनकी आवाज सुनी तो वे प्रभावित हुए। हजारिका ने बाद में उनकी फिल्म ‘इंद्रमालती’ में दो गाने गाए थे। 1936 में कोलकाता में भूपेन ने गायक, संगीतकार और गीतकार बनने की यात्रा शुरू हुई। 1942 में भूपेन ने आर्ट से इंटर की पढ़ाई पूरी की। साथ ही बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी से उन्होंने एमए किया।
शिक्षा-दीक्षा पूरी करने के बाद हजारिका ने गुवाहाटी में ऑल इंडिया रेडियो में गाना शुरू कर दिया था। हजारिका बंगाली गानों को हिंदी में अनुवाद कर उसे अपनी आवाज देते थे। हजारिका को कई भाषाओं का ज्ञान था। बाद में वे स्टेज परफॉर्मेंस भी देने लगे। जब एक बार वे कोलंबिया यूनिवर्सिटी गए तो उनकी मुलाकात प्रियंवदा पटेल से हो गई। दोनों ने यूएस में 1950 में शादी कर ली।
1952 में प्रियंवदा ने बेटे को जन्म दिया। 1953 में हजारिका अपने परिवार के साथ भारत लौट आए, लेकिन दोनों ज्यादा समय तक साथ नहीं रह पाए। वे गुवाहाटी यूनिवसिर्टी में बतौर अध्यापक नौकरी भी करने लगे थे, बाद में उन्होंने इस्तीफा दे दिया।
हजारिका ने अपने जीवन में एक हजार गाने और 15 किताबें लिखी हैं। इसके अलावा उन्होंने स्टार टीवी पर आने वाले सीरियल ‘डॉन’ को प्रोड्यूस भी किया था। उन्होंने ‘रुदाली’, ‘मिल गई मंजिल मुझे’, ‘साज’, ‘दरमियां’, ‘गजगामिनी’, ‘दमन’ और ‘क्यों’ जैसी सुपरहिट फिल्मों में गीत गाए।
5 नवंबर 2011 को 85 वर्ष की आयु में भूपेन हजारिका का मुंबई में निधन हो गया था। हजारिका को 1975 में नेशनल अवॉर्ड, 1977 में पद्मश्री और 1992 में सिनेमा जगत के सर्वोच्च पुरस्कार दादा साहब फाल्के सम्मान से सम्मानित किया गया। उन्हें 2009 में असोम रत्न और इसी साल संगीत नाटक अकादमी अवॉर्ड, 2011 में पद्मभूषण और 2012 में मरणोपरांत पद्मविभूषण जैसे कई प्रतिष्ठित पुरस्कारों से सम्मानित किया गया।
अब तक 41 लोगों को मिला है भारत रत्न
अब तक 41 लोगों को भारत रत्न से सम्मानित किया जा चुका है। सबसे पहले 1954 में चक्रवर्ती राजगोपालाचारी को भारत रत्न से सम्मानित किया गया था। इस सूची में समाज के हर क्षेत्र के लोग शामिल हैं। खेल जगत से भारत रत्न पाने वाले पहले व्यक्ति सचिन तेंदुलकर हैं।
इन सेवाओं के लिए मिल सकता है भारत रत्न
भारत रत्न के लिए कुछ विशेष सेवाओं का चयन किया गया है। इन सेवाओं में कला, साहित्य, विज्ञान, सार्वजनिक सेवा और खेल शामिल है। हालांकि, पहले इसमें खेल को शामिल नहीं किया गया था लेकिन बाद में इसे सूची में शामिल किया गया है। एक साल में ज्यादा से ज्यादा तीन व्यक्तियों को ही ‘भारत रत्न’ दिया जा सकता है।
अब तक 12 लोगों को मिला मरणोपरांत
शुरुआत में इस सम्मान को मरणोपरांत देने का प्रावधान नहीं था, लेकिन बाद में साल 1955 में यह प्रावधान जोड़ा गया। जिसके बाद मरणोपरांत भी भारत रत्न देने का रास्ता खुला। अब तक 12 लोगों को यह सम्मान मरणोपरांत प्रदान किया गया है। हालांकि, सुभाषचन्द्र बोस को घोषित सम्मान वापस लिए जाने के उपरांत मरणोपरांत सम्मान पाने वालों की संख्या 11 मानी जा सकती है।