मुजम्मिल इमाम
मैं जब औसान अपने खोने लगता हूँ तो हँसता हूँ
मैं तुम को याद कर के रोने लगता हूँ तो हँसता हूँ
कमरे के उस पार, मेरी बूढ़ी माँ एक बिस्तर पर बैठी हैं, जिसे दीवान कहते हैं। उनके चेहरे पर फिलहाल कोई भाव नहीं है। उनकी झुर्रियाँ उनके दिल का दर्द छिपा रहीं हैं। उनके सामने मैं हमेशा अपने चेहरे पर एक मुस्कान रखने की कोशिश करता हूं। लेकिन, हम दोनों एक दूसरे के दिल के हाल के बारे में गहराई से जानते हैं। आज के दिन पूरे एक साल हो गए की कोई भी खुशी का पल महसूस किया हो। एक माँ सुकून से कैसे रह सकती है जिसका बेटा बिना किसी गुनाह के जेल में कैद है ? एक भाई कैसे खुश रह सकता है जिसका एकलौता भाई सच बोलने के वजह से सलाखों के पीछे है? पिछले एक साल, मेरे लिए, उदासी, विश्वासघात और जीवन के अहसास की कहानी है।
वो नवंबर 2019 की शुरुआत का वक़्त था, एक दिन मेरे भाई शरजील ईमाम ने एक टेलीफोन कॉल पर मुझे बताया कि वह प्रस्तावित नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) को लेकर परेशान हैं। जैसा कि वो मेरे से अधिक पढ़े-लिखे व्यक्ति हैं, तो मैंने हमेशा ध्यान से उनके राजनीतिक विचारों को सुना। ये वो फोन कॉल था जब मुझे प्रस्तावित अधिनियम की सटीक ड्रैकोनियन प्रकृति का एहसास हुआ। जल्द ही, मुझे अपने भाई और मीडिया रिपोर्टों के माध्यम से पता चला कि छात्रों, बुद्धिजीवियों और दिल्ली के कुछ राज नेताओं ने बिल के खिलाफ अभियान शुरू कर दिया था। सरकार विधयेक को पारित करने पर अड़ी हुई थी जबकि कई विद्वान और राजनीतिक कार्यकर्ता इसे मुस्लिम विरोधी होने का दावा कर विरोध कर रहे थे। कई और नेताओं एवं सांसदों की तरह शरजील ने भी समझा इस मसले पर सरकार मुसलमानों की बात आसानी से नहीं सुनने वाली। अगर मुसलमानों को अपनी बात उनको सुनानी और मनवानी है तो बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शनों की जरूरत थी। इसी सोच के साथ, बिल के खिलाफ एक सार्वजनिक राय बनाने के लिए, मेरे भाई ने दिल्ली के अन्य छात्रों के साथ प्रस्तावित बिल से खतरों के बारे में बताते हुए पर्चे बांटना शुरू किए।
यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि मेरा भाई यह विश्वास करने वाला एकमात्र व्यक्ति नहीं था कि यह विधेयक लाखों भारतीय मुसलमानों को निर्विवाद रूप से प्रस्तुत करने का एक प्रयास था। कई कार्यकर्ता और विद्वान आंदोलन और बिल के खिलाफ लिख रहे थे। इस बीच, 8 दिसंबर, 2019 को जंतर-मंतर पर एक जनसभा का आयोजन किया गया। शरजील के साथ योगेंद्र यादव, उमर खालिद, खालिद सैफी और अन्य जैसे कार्यकर्ताओं ने सरकार पर बिल वापस लेने के लिए दबाव बनाने की रणनीतियों पर चर्चा की।
11 दिसंबर, 2019 को, बिल संसद के दोनों सदनों में पारित हो गया और अगले दिन एक अधिनियम बन गया। संसदीय बहस के दौरान हैदराबाद के सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने बिल के खिलाफ मुस्लिम समुदाय के गुस्से को दिखाने के लिए बिल की एक प्रति को संसद में फाड़ दिया। यह कहने की जरूरत नहीं है कि बिल को फाड़ने का यह कार्य विरोधों में एक वाटरशेड था। यह वह क्षण था जब अधिकांश मुसलमानों का मानना था कि सीएए एक अस्तित्वगत मुद्दा है। जामिया मिलिया इस्लामिया (JMI) और अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (AMU) के छात्रों द्वारा शुरू किए गए विरोध जल्द ही देश भर के मुसलमानों में फैल गया।
15 दिसंबर, 2019 को दिल्ली पुलिस ने जेएमआई के शांतिपूर्ण प्रदर्शनकारियों पर बेरहमी से लाठी चार्ज किया और आंसू गैस छोड़ी। उसी दिन की रात, शरजील ईमाम मुट्ठी भर लोगों के साथ शाहीन बाग में एक सड़क पर बैठ गए। यह एक फैसला CAA-NRC विरोध के पूरे पाठ्यक्रम को परिभाषित करने वाला था। बाद में ये शाहीन बाग़ विरोध प्रदर्शन में बैठे लोगों CAA के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे लोगों के बीच एक मिसाल बने।
शरजील कोशिश करते रहे और लोगों से कहते रहे कि उन्हें शाहीन बाग मॉडल पर विरोध प्रदर्शन अपने क्षेत्रों में भी करना चाहिए, न कि सिर्फ शाहीन बाग़ में। लेकिन दिल्ली के बाहर बहुत कम स्थानों पर लोगों ने सरकार पर दबाव बनाने के लिए किसी भी सड़क को जाम किया। 16 जनवरी,2020 को, रिपब्लिक टीवी ने शरजील के खिलाफ एक स्टिंग ऑपरेशन चलाया, उसे शाहीन बाग का मास्टरमाइंड कहा। इसके तुरंत बाद, एएमयू में उनके एक भाषण को सोशल मीडिया पर काट छांट कर प्रसारित किया गया और उनके खिलाफ देशद्रोह का एफआईआर दर्ज किया गया। असम, और बाद में दिल्ली में देशद्रोह के साथ-साथ उसके खिलाफ UAPA के तहत केस दर्ज किए गए। 28 जनवरी, 2020 को शरजील भाई ने जहानाबाद में अपने पैतृक गाँव काको में दिल्ली पुलिस के सामने आत्मसमर्पण कर दिया।
CAA-NRC के खिलाफ विरोध करने के लिए गिरफ्तार किए गए कई लोगों की श्रृंखला में वह पहले थे। तब से कई एक्टिविस्ट- उमर खालिद, इशरत जहाँ, देवांगना कलिता, नताशा नरवाल, खालिद सैफी, आसिफ तनहा, सफुरा ज़रगर और अन्य को UAPA के तहत गिरफ्तार किया गए।
एक साल बाद से, मुझे आश्चर्य है कि इन विरोधों का परिणाम क्या है। कई युवा बुद्धिजीवी अनिश्चित भविष्य के साथ सलाखों के पीछे हैं, जहाँ मुसलमानों का राजनीतिक नेतृत्व उन्हें पूरी तरह से विफल कर चुका है। वही लोग जिन्होंने लिखा, और बोला था कि CAA-NRC का विरोध मुसलमानों के बीच एकता का एक क्षण है वो इतर की खुशबू की तरह बीते वक़्त हवा में गायब हो गए। जिस राजनेता ने संसद में बिल की प्रति फाड़ दी थी, वह पिछले साल बिहार चुनाव के दौरान अपने किसी भी भाषण में CAA-NRC का एक महत्वपूर्ण मुद्दे के रूप में उल्लेख नहीं करता है। तथाकथित राजनेताओं या मशहूर हस्तियों में से किसी ने जेल जाने वाले कार्यकर्ताओं के परिवारों को फोन करने या उनसे मिलने की परवाह नहीं की। बल्कि जिन राज नेताओं और मशहूर हस्तियों ने धर्मनिरपेक्षता और मानवाधिकारों के चैंपियन के रूप में अपनी लोकप्रियता को बढ़ाने के लिए शाहीन बाग या जेएमआई के मंच का इस्तेमाल किया, शायद ही कभी उन जेल गए छात्रों के नाम का उल्लेख किया हो। राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के पदाधिकारी मीरन हैदर को उनकी ही पार्टी ने पूरी तरह से भुला दिया। जिन लोगों ने दावा किया कि CAA-NRC मुसलमानों के लिए एक अस्त्रित्व का मुद्दा है, उन्होंने अब इसके बारे में बात करना बंद कर दिया है। दर्जनों युवाओं को जेल में डालने के बाद वे बिहार और बंगाल चुनाव जैसे अन्य महत्वपूर्ण कार्यों में लग गए हैं।
क्या कोई राजनीतिक कार्यकर्ता हमसे मिलने आया ? क्या किसी ने हमारी मानसिक स्थिति के बारे में आज तक पूछा ? क्या कोई राजनेता हमदर्दी जताने की ख़ातिर भी आगे आया ? क्या कोई बुद्धिजीवी ने पूछा कि ये लोग वकीलों को भुगतान कहां से कर रहे हैं? क्या अब कोई पूछता है कि CAA-NRC का क्या हुआ?
सभी सवालों का जवाब ना ही है एक साल के बाद मैं कह सकता हूं कि मेरे भाई शारजील इमाम और अन्य लोगों ने एक मृत समुदाय के लिए अपनी ऊर्जा बर्बाद कर दी है। यह समुदाय उन लोगों से दूरी बनाए रखती है जो लोगों के हक़ के लिए सरकार को चुनौती देने का साहस करते हैं। यह समुदाय उन नेताओं के हक़दार है जो उन्हें बस झूठे वादे और दावों में फसाए रखे।
ये बस्ती है मुसलामानों की बस्ती
यहाँ कार-ए-मसीहा क्यूँ करें हम
आज एक वर्ष के बाद भी जब मैं अपनी माँ देखता हूं तो वो इस डर से मेरी आँखों में नहीं देखना चाहती कि कहीं वो टूट न जाए।
(लेखक शारजील इमाम के छोटे भाई हैं। पत्रकारिता में परास्नातक हैं, वे बिहार में सक्रिय राजनीति में हैं।)