मोदी जी इसरो प्रमुख को गले लगाता देख मन भावुक हो गया,काश कश्मीरियों को भी इसी तरह गले लगाते

मोदी साहब, आपको इसरो प्रमुख के गले लगता देख मन भावुक हो गया,अच्छा लगा के हमारे देश का प्रधानमंत्री देश की इस दुख की घड़ी में देश के साथ है,और देश के वैज्ञानकों के प्रमुख को रोता देख उसे गले से लगा कर उसकी पीठ थपथपा रहा है, लगा के हां प्रधानमंत्री ऐसा ही होना चाहिए,जो देश में अाई किसी भी दुख की घड़ी में देश के साथ खड़ा हो, और ज़रूरत पड़ने पर ख़ुद देश की जनता बन कर जनता के साथ जनता के लिए काम करने लगे,तब देश का सर गर्व से ऊंचा हो जाता है, और फिर दुनिया ऐसे देश को और देश के मुखिया को सलाम करती है,

लेकिन साहब आप को पता है के इसी देश में एक जगह ऐसी है जो इसी देश का अभिन्न अंग तो है, लेकिन जहां पिछले एक महीने से इंसानों का इंसानों से संपर्क नहीं हो रहा,और उस संपर्क टूटने से वहां भी लोग रो रहे हैं,तड़प रहे हैं,बच्चे,बूढ़े,बिलक रहे हैं,किया आप उनको भी ऐसे ही गले लगा कर उनके दुख दर्द में शामिल होंगे? उम्मीद है के आप को उनकी तड़प का भी एहसास होगा,और आप उनके बच्चों को सीने से लगा कर, उनकी पीठ थपथपाते हुए उन्हें हौसला देंगे,और यह कहेंगे के बेटा हम तुम्हारे इस दुख में बराबर के शरीक हैं,किया कभी उन पैलेट लगी गोलियों से छलनी हुई आंखों से बहते आंसुओं को अपनी उंगलियों के पोरों से साफ़ करते हुए आप की भी पलकें भीगेंगी? किया आप को उन मासूमों की तकलीफों का एहसास होगा जिसने मां की कोख से जन्म तो लिया लेकिन उसकी छाती से लग कर उसकी ममता को महसूस किए बिना ही इस दुनिया को अलविदा कह गया,किया आप को उन मांओं की बेचैनी का अंदाज़ा हुआ जिनके जिगर के टुकड़े को देखने के लिए और उसकी आवाज़ सुनने के लिए उसकी बूढ़ी आंखें पिछले एक महीने से राह तक रही हैं,और कान हर आहट पर खड़े हो जाया करते हैं, क़दमों की हर चाप पर वह चौंक जाया करती हैं,और भाग कर दरवाज़े को खोलती हैं और फिर मायूसियों से भरे मन से वह फिर इंतज़ार की सूली पर लटक जाती हैं। किया कभी आप ने उस इंतज़ार को महसूस किया है? बहुत भयावह स्थिति में हैं वहां के लोग साहब, एक इंसान द्वारा बनाई गई चीज़ के संपर्क टूट जाने पर पूरा देश दुखी है,हमें भी बहुत दुख है के हमारे वैज्ञानिकों की मेहनत कहीं बेकार ना चली जाए।हम दुआ भी कर रहे हैं के जल्द संपर्क हो जाए।

लेकिन इसी जगह एक सवाल यह भी उठता है के जिस देश इंसानों द्वारा निर्मित वस्तुओं के संपर्क टूटने पर पूरा देश और देश का प्रधानमंत्री शोक व्यक्त करता हो उसी देश में इंसानों का इंसानों से संपर्क टूट जाने पर वही प्रधानमंत्री कोई शोक व्यक्त क्यूं नहीं करता? किया इंसानों की कोई कीमत नहीं? जब इतिहास लिखा जाएगा तो उसमें सफ़ेद पन्ने पर चंद्रयान का और इसरो के वैज्ञानिकों की मेहनत और उनके अथक प्रयासों का ज़िक्र ज़रूर होगा और यह हमारे देश के लिए गौरव की बात होगी लेकिन उसी इतिहास के एक अध्याय में काले पन्ने पर कश्मीर और कश्मीरियों की सिसकती बिलखती और बेबस ज़िन्दगी का भी ज़िक्र होगा जो देश के लिए शर्म की बात होगी। आप सरकार हैं,आप माई बाप हैं,आप देश के मुखिया हैं,आप सत्ता में हैं,तो एक सत्ताधारी दल के नेता बन कर नहीं बल्कि एक देश का प्रधानमंत्री बन कर सोचिये के किया इस तरह से लोगों का अपनों से संपर्क काट देना देशहित में है? किया इस तरह से आप अपने उस नारे (सबका साथ,सबका विकास और सबका विश्वास)पर परश्नचिन्ह नहीं लगा रहे हैं? तो मेरी आप से विनम्र निवेदन है के आप अपने इस नारे को अमली जामा पहना पाएंगे या फिर यह भी बस एक नारा भर ही रहेगा? उम्मीद है के आप को इसी देश के एक आम नागरिक की इस बात से सहमत होंगे और प्रधानमंत्री पद की गरिमा को बनाए रखने के लिए सफ़ल परयास करेंगे।


लेखक खुर्रम मलिक

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is a young journalist & editor at Millat Times''Journalism is a mission & passion.Amazed to see how Journalism can empower,change & serve humanity