अच्छी सोहबत की बरकत

सवाल – किसी शख्स के ऊपर गमों का पहाड़ टूट पड़े तो उसे आप आजाब कहेंगे या आजमाइश?
जवाब – अगर उन गमों को झेलते हुए उस शख्स ने अल्लाह से मदद मांगी और उसी पर तवक्कुल किया और अल्लाह से राज़ी रहा और नाशुक्री के कलिमात नहीं निकाले तो जान लीजिए कि गमों का वो पहाड़ उसके ऊपर आज़ाब नहीं आजमाइश है।
वहीं अगर गमों के बाइस वो झुंझलाता फिरे तकदीर को कोसता फिरे तो वो आजमाइश नही अजाब है।

आजमाइश के बारें में बताएं?
आजमाइश दो वजहों से आती है – या तो अल्लाह अपने किसी बंदे के गुनाहों की मुआफी करना चाहता है तो उसे आजमाइश में डालता है, या अल्लाह अपने किसी बंदे का मुकाम ऊंचा करना चाहता है, उसके दरजात बुलंद करना चाहता है तो उसे आजमाइश में डालता है।
गोया कि दोनो ही शक्ल में आजमाइश से उस शख्स को फायदा ही होता है।
हुज़ूर सल्ल० फरमाते है –
“मुसलमान जब भी किसी परेशानी, बीमारी, रंजो मलाल, तकलीफ और गम में मुब्तला हो जाता है, यहाँ तक कि अगर उसे कोई काँटा भी चुभता है तो अल्लाह तआला उसे उसके गुनाहों का कफ़्फ़ारा बना देता है (उसके बदले में गुनाह मुआफ हो जाते है)।
– सहीह बुखारी
मुसाअब बिन साद रज़ि० फरमाते है कि उनके वालिद साद बिन अबू वक़्क़ास रज़ि० ने कहा –
“मैंने पूछा, ‘ऐ अल्लाह के रसूल (सल्ल०) किन लोगों को सबसे ज़्यादा आज़माया जाता है? उन्हौने कहा – ‘अम्बिया (अलै०) को, फिर उसके बाद सबसे अच्छों को, फिर उसके बाद के अच्छों को। एक शख्स को उसके दीनी अज़्म के मुताबिक़ आज़माया जाता है। अगर वो अपने दीनी अज़्म पर साबित क़दम रहता है तो उसे और भी मज़बूती से आज़माया जाता है, और अगर वो अपने अज़्म के मामले में नाकामयाब साबित हो तो उसकी आज़माइश भी उसके अज़्म के मुताबिक़ कर देता है। उस शख्स पर तबतक आज़माइशें आती रहती है जबतक की वो इस रुए ज़मीन पर इस हाल में ना चलने लगे कि उसके तमाम गुनाह ख़त्म हो चुके हों। ”
– सुनन इब्ने माजाह
हुज़ूर सल्ल० फरमाते है – “जब कभी अल्लाह किसी शख्स की भलाई करना चाहटा है तो वो उसे आज़माइश में डालता है।”
-सहीह बुखारी

अच्छी सोहबत क्या है?
ऐसे लोगों के साथ रहने, उठने बैठने और ताल्लुक रखने का नाम अच्छी सोहबत है जो लोग अल्लाह से डरने वाले और हर मामले में अल्लाह और उसके रसूल सल्ल० के हुक्म की परवाह करने वाले लोग होते है। जिनकी जिंदगी का मकसद दुनिया को, नफ्स को या समाज को राज़ी करना नहीं होता बल्कि अल्लाह की रज़ा हासिल करना ही उनका असल हदफ होता है।

अच्छी सोहबत की बरकत क्या है?

इंसान की फितरत में ये बात शामिल है की जब उसके साथ कोई परेशानी आती है तो वो उसे अपने संगी साथियों, करीबियों के साथ साझा करता है, उनको बताता हैं जिनपर उन्हें भरोसा होता है। जब एक इंसान के ऊपर गमों का बोझ हो और वो अच्छी सोहबत में जिंदगी गुजार रहा हो तो वो लोग (जो लोग अच्छी फिक्र रखते हैं।) हमेशा ही अल्लाह की ओर लौटने और उनकी इताअत करने की बात करते है। इससे वो शख्स अपने ग़मगीन हालात में भी अल्लाह ही को याद करता है और उससे ही मदद तलब करता है। और ऐसा करने की वजह से उसपर आये हालात ‘आज़माइश’ की मिस्ल होकर या तो उसके गुनाहों की मुआफी की वजह बनते है या फिर उसके मरतबे की बुलंदी में मददगार बन जाते है।
अब आप ही सोचिये कि अगर आप पर आई परेशानियां अच्छे सोहबत की वजह से अज़ाब के तौर पर शुमार ना होकर आज़माइश के तौर पर गईं ली जाएँ, तो क्योंकर ना कहा जाए कि अच्छी सोहबत की सबसे बड़ी बरकतों में से एक बरकत ये भी है कि मुसीबतें भी उसके लिए आख़िरत में निजात की वजह बन जाती है।
रूमी रह० फरमाते है –
“सोह्बते सालेह तोरा सालेह कुनद
सोह्बते तालेह तोरा तालेह कुनद ”
यानी अच्छी सोहबत आपको अच्छा बना देती है जबकि बुरी सोहबत आपको बुरा बनाती है।
अल्लाह हम सबको अच्छी सोहबत अख्तियार करने की तौफ़ीक़ दे। आमीन !

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मुजीबुर्रहमान एक स्वतंत्र पत्रकार है जो विभिन्न मुद्दों पर लिखते है। विशेष रुचि - विश्व राजनीति तथा वैचारिक मुद्दे.