काँग्रेस देश कि पार्टी या गाँधी नेहरू परिवार कि ज़ागीर?जिशान नैय्यर

कांग्रेस का मतलब एक ज़माने में होता था भारतीय जनमानस कि पार्टी इसमें सभी धर्मों जातियों फिरकों के लोग होते थे यही वज़ह थी कि आज़ादी का आंदोलन कामयाब रहा और देश लम्बे संघर्ष के बाद आज़ाद हुआ.

1911 में बनारस हिन्दू विश्विद्यालय के संस्थापक और भारत रत्न पंडित मदन मोहन मालवीय जब कांग्रेस के अध्यक्ष बने उसी समय वो अख़िल भारतीय हिन्दू महासभा के भी अध्यक्ष थे.

गाँधी जी के हत्यारे नाथू राम गोडसे उसी संगठन से जुड़े हुए थे.आरएसएस के संस्थापक के वी हेडगेवार और जनसंघ के संस्थापक डॉ श्यामा प्रसाद मुख़र्जी भी काँग्रेस के थे और नेहरू के कैबिनेट मंत्री रहें.वही जनसंघ बाद में बीजेपी बनी.

मोहम्मद अली जिन्ना भी एक उदहारण है.पहले कांग्रेस के अधयक्ष भी रहे बाद में मुस्लिम लीग बनाई.कहने का मतलब ये है कि उस समय अलग अलग विचारधारा और जाति धर्मों के लोग भी काँग्रेस में थे.

लेक़िन आज़ादी मिलने के बाद कांग्रेस पार्टी पर गांधी नेहरू परिवार का एकाधिकार बढ़ता चला गया जो आज अपने चरम पर है.

गाँधी नेहरू परिवार से ज़रा सा भी इतेफ़ाक़ ना रखने का अंज़ाम के,कामराज, नरसिम्हा राव,सीताराम केसरी और प्रणव मुख़र्जी भुगत चूके हैं.

प्रणव मुख़र्जी के बारे में कहा जाता है उनके पास तीन मौक़े थे जब वो प्रधानमंत्री बन सकतें थे 1984 इंदिरा गांधी कि हत्या के समय 2004 और 2012 लेक़िन गांधी नेहरू परिवार को उनके वफ़ादारी और ईमानदारी पर शक़ था.

जब इंदिरा गांधी की हत्या हुई थी तब उस दिन राजीव गांधी प्रणव मुख़र्जी और शीला दीक्षित कलकत्ता में किसी कार्यक्रम में थे ख़बर मिलते ही दिल्ली लौटने लगे हवाई जहाज़ में राजीव गाँधी ने प्रणव मुख़र्जी से पुछा जब पंडित नेहरू का देहांत हुआ था तब किया हुआ था.

प्रधानमंत्री के देहांत के बाद किया प्रकिर्या होती है प्रणव मुख़र्जी का जवाब था गुलज़ारी लाल नंदा को अंतरिम प्रधानमंत्री बनाया गया था.क्योंकि उस वक़्त वो सरकार में नम्बर 2 कि हैसियत रखते थे.

राजीव गांधी को ये बात खटक गयी क्योंकि उस वक़्त प्रणव मुख़र्जी सरकार में नम्बर 2 कि हैसियत रखते थे, जब इंदिरा गांधी विदेश जाती थी तब उनका कामकाज़ देखते थे.

राजीव गांधी को ये बात नागवार गुज़री और उनको लगा कि प्रणव मुख़र्जी ख़ुद प्रधानमंत्री बनने के लिए ये सब बोल रहें हैं दोनों में मन मोटाव हुआ बाद में प्रणव मुख़र्जी को पार्टी से निकाल भी दिया ख़ुद कि पार्टी भी बनाई और कई साल बाद फ़िर कांग्रेस में वापिस लाये गये.

के कामराज को भारतीय राजनीति का किंगमेकर कहा जाता है उन्होंने ने लाल बहादुर शास्त्री और इंदिरा गांधी को प्रधानमंत्री बनाया था बाद में इंदिरा गांधी ने ही उन्हें पार्टी में अलग थलग कर दिया.आख़िरी समय में उनको पूछने वाला कोई नही था.

नरसिम्हा राव पर सोनिया गांधी के जासूसी का इल्ज़ाम था,कई जानकार बताते हैं कि सोनिया गांधी उनको फ़ोन पर लम्बा इंतेज़ार और मिलने के लिये घंटों इंतेज़ार कर बाती थीं.

वैसे इतिहास उनको बाबरी विध्वंश का दोषी मनमोहन सिंह कि ख़ोज और आर्थिक उदारीकरण के नायक के तौर पर भी याद करता है लेक़िन जब 2004 में उनकी मृत्यु हुई तो उनके शव को 24 अक़बर अली रोड यानि काँग्रेस मुख्यालय भी नही ले जाने दिया गया.ये सब सोनिया गाँधी के इशारे पर हुआ.

सीताराम केसरी काँग्रेस के आख़िरी अधयक्ष थे जो ग़ैर गाँधी नेहरू परिवार से थे, पत्रकार राशिद किदवई ने अपनी किताब ‘ए शार्ट स्टोरी ऑफ द पीपल बिहाइंड द फॉल एंड राइज ऑफ द कांग्रेस’ में लिखते हैं कि दिल्ली के 24, अकबर रोड स्थित मुख्यालय से सीताराम केसरी को बेइज्जत कर निकाला गया था.

उन्हें कांग्रेस से निकालने की मुहिम में सोनिया गांधी को प्रणव मुखर्जी, ए के एंटनी, शरद पवार और जितेंद्र प्रसाद का पूरा सहयोग मिला.क्योंकि वो दलित समाज से थे.

कांग्रेस पार्टी में नेहरू-गांधी परिवार से बाहर के नेताओं को याद करने की, उनकी पुण्यतिथि या जन्मदिवस मनाने की परंपरा का अभाव रहा है इसलिए वर्षों के बाद भी इतने बड़े नेता को कभी भी याद नहीं किया गया.

पिछले महीने 11 नवम्बर को ही ले लीजिये मौलाना आज़ाद की जयंती थी पर राहुल गांधी और काँग्रेस पार्टी कि तरफ़ कोई ट्वीट भी नही किया गया मैं सुबह से शाम उसको ढूँढता रहा है.

लेक़िन नही मिला जब संसद भवन के केंद्रीय कक्ष में श्रद्धांजलि कि बात आई तो सिर्फ 3 सांसद मौजूद थे.सोनिया राहुल तो दिल्ली में ही थे उसदिन श्रद्धांजलि देने क्यों नही गये पता नही?

3 दिन बाद 14 नवम्बर को पंडित नेहरू की जयंती थी उसदिन सब कुछ हुआ ट्वीट भी किए गए और समाधि स्थल पर श्रद्धांजलि सभा भी आयोजित किया गया.

मौजूदा दौर में काँग्रेस का मतलब परिवार प्राइवेट लिमिटेड हो गया है वैसे परिवारवाद का चलन सभी पार्टीयों में है लेक़िन काँग्रेस में ये सबसे ज़्यादा दिखने को मिलता है.

किया सोनिया गाँधी के बाद राहुल ही अध्यक्ष के लायक़
थे?

वो तो भला हो कि काँग्रेस तीन राज्यों को जीतने में कामयाब रही वरना राहुल गाँधी के नेतृत्व पर सवालिया निशान लगे रहतें.

काँग्रेस में तो तरह के नेता हुए हैं एक जो राज्यों में कामयाब रहें और एक दिल्ली दरबार में जो दिल्ली दरबार में कामयाब रहें उनमें कमलनाथ अशोक गहलोत अहमद पटेल जैसे लोग शामिल है

कमलनाथ के बारे कहा जाता है वो इंदिरा गांधी के तीसरे बेटे थे,गहलोत का भी इंदिरा राजीव और संजय गाँधी के क़रीबी रहें आज इसका सिला उनको मुख्यमंत्री बना कर दिया गया है.

जिस खानदान ने देश को 3 दिग्गज़ प्रधानमंत्री दिए उसमें राहुल गाँधी का किया स्थान है पता नही?

लेक़िन अग़र 2019 में राहुल कामयाब हुए तो फ़िर उनकी लोकप्रियता में इज़ाफ़ा होगा अग़र हार मिली तो फ़िर पार्टी में भी बग़ावत के सुर मज़बूत होंगे.फ़िर पार्टी को कुछ नया सोंचना होगा.भले 3 राज्यों काँग्रेस ने वापसी कि हो लेक़िन पूर्वोतर इतिहास में पहली बार काँग्रेस मुक्त हो गया काँग्रेस का आख़िरी क़िला मिज़ोरम भी अब ढह गया है.2019 कि डगर बहुत कठिन राहुल एंड कंपनी के लिये देखना दिलचस्प होगा किया महागठबंधन राहुल को अपना नेता मानेगा?

Zeeshan Naiyer
Student Department Of Mass Communication & Journalism
Maulana Azad National Urdu University Hyderabad

SHARE
is a young journalist & editor at Millat Times''Journalism is a mission & passion.Amazed to see how Journalism can empower,change & serve humanity