अशफाक कायमखानी।जयपुर।
राजस्थान के दिग्गज जाट राजनीतिक घरानो मे गिने जाने वाले परशराम मदेरणा, रामनिवास मिर्धा, नाथूराम मिर्धा, दौलतराम सारण, कुम्भा राम आर्य, सरदार हरलाल सिंह, शीशराम ओला, चोधरी रामनारायण व रामदेव सिंह महरिया जैसे घरानो की राजनीति लम्बे समय तक तूती बोला करती थी। लेकिन राजनीति के पर्दे पर चेहरे बदलते रहने के कारण हालत मे बदलाव आने के उक्त घरानो की राजनीतिक आवाज मंद पड़ती नजर आ रही है।
मारवाड़ के दिग्गज जाट नेता परशराम मदेरणा की अपने समय मे राजनीति परवान रहने के बाद 1998 मे अशोक गहलोत के मुख्यमंत्री बनने के बाद मदेरणा परिवार की राजनीति पर संकट के बादल मंडराने लगे थे। उसके बाद उनके बेटे महिपाल मदेरणा विधायक व मंत्री तो बने लेकिन राजनीतिक साझिस के तहत उन्हे जैल जाना पड़ा जो आज तक जैल मे ही है। हां परशराम मदेरणा की पोती दिव्या मदेरणा 2018 मे विधायक जरुर निर्वाचित हुई है। पर वो प्रदेश की राजनीति मे हलचल पैदा करे ऐसा कुछ नही है।
दिग्गज जाट नेता गांधी परिवार के विश्वसनीय रामनिवास मिर्धा अपने जीवनकाल मे राजनीति मे सिरमौर बने रहे। उनके पूत्र हरेंद्र मिर्धा 1998 मे विधायक बनकर मंत्री भी बने। लेकिन उसके बाद लगातार चुनाव व उपचुनाव हारने के कारण वो आज प्रदेश के राजनीतिक पटल से गायब चेहरा बन चुके है। इसी तरह नाथूराम मिर्धा ने कांग्रेस , लोकदल व जनता दल के बाद फिर से कांग्रेस मे आकर मरते दम तक राजनीतिक पारी खेलकर राजस्थान की राजनीति का प्रमुख चेहरा साबित हुये। लेकिन उनके बाद उनके पूत्र भानू प्रकाश मिर्धा व फिर पोत्री ज्योति मिर्धा ने नागोर से एक एक सांसद का चुनाव जरूर जीता पर वो राजनीति का प्रमुख चेहरे कभी ना बन पाये ओर नाही वर्तमान समय मे ऐसा होता नजर आ रहा है। हरियाणा के बडे व्यापारीक घराने की बहु व नाथूराम मिर्धा की पोती ज्योती मिर्धा के लगातार दो लोकसभा चुनाव हारने के कारण उनकी राजनीतिक तस्वीर जरा धूंधली हो चुकी है।
दौलतराम सारण ने भी कांग्रेस-लोकदल-जनता दल व फिर कांग्रेस मे रहकर राजनीतिक चोके-छक्के मारे। पर उनके बाद उनके परिवार से अभी तक सांसद या विधायक नही चुने जाने से उनकी राजनीतिक वोईस की गिनती प्रदेश स्तर सूनाई नही दे रही है। हालांकि उनके पूत्र लोकदल के अध्यक्ष है। दिग्गज नेता रहे कुम्भा राम आर्य के बाद उनकी पूत्रवधू सुचित्रा आर्य विधायक तो बनी पर बाद मे विधानसभा का चुनाव हारते रहने एवं 2018 के आम विधानसभा चुनाव मे नोहर से टिकट नही मिलना उनके आगे के राजनीतिक भविष्य पर काले बादल मंडराना माना जा रहा है।
कांग्रेस के पूर्व प्रदेशाध्यक्ष व दिग्गज जाट नेता सरदार हरलाल सिंह की पोती प्रतिभा सिंह विधायक तो बनी लेकिन अब लगातार दो विधानसभा चुनाव हारने से राजनीतिक मानचित्र पर उभर नही पा रही है। जबकि चोधरी रामनारायण की पूत्री रीटा सिंह दो विधानसभा चुनाव हारने के बाद अभी अक्टूबर माह मे.मंडावा से उपचुनाव जीतकर विधायक बनी है। इसी तरह शीशराम ओला के राजनीतिक वारिसान ने लोकसभा चुनाव लड़ा जरुर पर जीत नही पाये है।उनके पूत्र विजेंदर ओला पहले मंत्री रहे है। एवं वर्तमान मे झूंझुनू से विधायक है। इसी तरह कदावर जाट नेता रामदेव सिंह महरिया के राजनीतिक वारिस सुभाष महरिया तीन दफा सांसद रहने के अलावा केन्द्रीय मंत्री भी रहे। लेकिन 2019 के लोकसभा चुनाव हारने के बाद उनकी राजनीति को झटका लगा है। सुभाष महरिया के छोटे भाई नंद किशोर महरिया फतेहपुर से निर्दलीय विधायक भी रहे है।
कुल मिलाकर यह है कि राजस्थान की राजनीति मे लम्बे समय तक जिन जाट नेताओं की तूती बोलती थी। उन जाट नेताओं के देहांत के बाद उनके राजनीतिक वारिशान की राजनीतिक वोईस मे दम नही बन पाया है, जो उनके पूर्वज राजनेताओं की आवाज मे होता रहा था। देखना होगा कि आगे चलकर राजस्थान की जाट नेतृत्व के वर्चस्व की लड़ाई किस तरफ मोड़ लेती है।