हाईब्रिड चुनाव प्रक्रिया को लेकर पायलट-गहलोत आमने सामने आये।
।अशफाक कायमखानी।जयपुर।
हालांकि 1998 मे परशराम मदेरणा को पीछे धकेल कर अशोक गहलोत दिल्ली सेटिंग के बल पर मुख्यमंत्री बनने के बाद राजस्थान प्रदेश के बने अध्यक्ष डा.चंद्रभान, बी डी कल्ला, नारायण सिंह व सीपी जौशी को जब चाहा तब पद से हटवा कर अपनी श्रेष्ठता को कायम रखा। लेकिन उक्त सभी प्रदेश अध्यक्ष जयपुर के मार्फत अध्यक्ष बने पर इसके विपरीत जब दिल्ली के मार्फत प्रदेश अध्यक्ष बनकर प्रदेश की राजनीति करने आये सचिन पायलट पहले दिन से ही अशोक गहलोत के लिये एक चेलेंज साबित हो रहे है।
मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के मुकाबले विदेश मे पढकर आये सचिन पायलट को अंग्रेजी भाषा का ज्ञान भी गहलोत से इक्कीस होने के कारण हिन्दी-अंग्रेजी मीडिया मे उन्हे लगातार जगह मिलते रहना भी एक बडा कारण है। पायलट केंद्र की राजनीति का बडा चेहरा होने के कारण उन्हे 2013 का विधानसभा चुनाव गहलोत के मुख्यमंत्री काल मे होने पर भाजपा की 163 सीट के मुकाबले कांग्रेस की मात्र इक्कीस सीट आने पर हाईकमान ने पायलट को जनवरी-2014 मे केंद्र से राज्य की राजनीति करके पार्टी को ताकत देने के लिये प्रदेशाध्यक्ष बनाकर जब राजस्थान भेजा तो लगता था कि गहलोत पहले बन चुके अन्य प्रदेशाध्यक्षो की तरह जल्द ही पायलट के स्टम्प उखाड़ देगे। लेकिन पायलट ने जनता के मध्य जाकर भाजपा व अपनी पार्टी मे मोजूद विरोधियों से मजबूती से मुकाबला करके उपचुनाव जीते एवं 2018 के विधानसभा चुनाव मे भाजपा को शिकस्त देकर बहुमत पाकर कांग्रेस की सरकार बनने का रास्ता प्रशस्त किया। यह अलग बात है कि वो अशोक गहलोत की तिकड़म के आगे स्वयं मुख्यमंत्री नही बन पाये।
सचिन पायलट अपने अध्यक्षीय कार्यकाल मे मजबूती से अपनी बात रखने के अलावा पूर्व के कुछ अध्यक्षों की तरह गहलोत के पिछलग्गू बने रहने की बजाय अपनी अलग से स्वतंत्र पहचान बनाये रखने मे हमेशा कामयाब रहे। समय समय पर पायलट अपना पक्ष हर मुद्दे पर रखने मे कामयाब होने से अशोक गहलोत एक तरफा खेल नही खेल पाये। हां कमजोर जातीय आधार वाले गहलोत मुख्यमंत्री की दोड़ मे मजबूत जातीय आधार वाले सचिन पायलट को पछाड़ कर मुख्यमंत्री बनने मे कामयाब जरुर रहे है। लेकिन अब केंद्र मे परिस्थितिया बदली है। अहमद पटेल दरबार मे अब गहलोत को एक तरफा तरजीह मिलने बजाय पायलट व गहलोत दोनो को बराबर तरजीह मिल रही हैः
राजस्थान मे अगले महिने होने वाले स्थानीय निकाय चुनाव की मुख्यमंत्री गहलोत द्वारा रोज बदली जाने वाली प्रक्रिया का सचिन पायलट द्वारा खूलकर विरोद करते हुये बीना पार्षद का चुनाव लड़े मेयर/चेयरमैन का चुनाव लड़ने को कांग्रेस के घोषणा पत्र व लोकतंत्र के खिलाफ बताकर कड़ा विरोद दर्ज करवाया है। लेकिन अपनी जीद के पक्के मुख्यमंत्री गहलोत हाईब्रिड चुनाव प्रक्रिया से किसी भी स्तर पर पीछे हटने का संकेत अभी तक नही दिया है। जबकि पायलट के साथ अनेक मंत्री भी खूलेतौर पर उक्त हाईब्रिड प्रक्रिया का खूला विरोद दर्ज करवा चुके है। हाईब्रिड चुनाव प्रक्रिया के खिलाफ प्रदेशाध्यक्ष पायलट व मंत्रियो के खूलेतौर पर विरोद मे आने के बाद जब मामला हाईकमान तक पहुंचा तो सोनिया गांधी ने रिपोर्ट तलब करली है।
कुल मिलाकर यह है कि अक्सर किसी ना किसी मुद्दे पर मुख्यमंत्री गहलोत व प्रदेशाध्यक्ष सचिन पायलट के मध्य उठते रहते विरोधाभास से कांग्रेस को हानि होना माना जा रहा है। अब ताजा विवाद स्थानीय निकाय चुनाव मे हाईब्रिड प्रक्रिया को लेकर उठा है। एक तरफ मुख्यमंत्री गहलोत अपने कदम पीछे खींचने को तैयार नही है। वही सचिन पायलट उक्त प्रक्रिया के खिलाफ आकर चुनाव घोषणा पत्र के मुताबिक चुनाव कराने की वकालत कर रहे है। मामला सोनिया गांधी तक पहुंच चुका है। सूत्र बताते है कि अहमद पटेल की उदासीनता के चलते मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को झटका लग सकता है।