राजस्थान के मंडावा व खींवसर विधानसभा उप चुनाव मे परिवारवाद की जंग।

अशफाक कायमखानी।जयपुर।
राजनैतिक नेता व दल चाहे जीतना परिवारवाद के खिलाफ जहर उगले लेकिन जब समय उनका परीक्षा का आता है, तो दल व नेता अन्यों की तरह परिवारवाद रुपी पौधे को खाद व पानी देकर उसे सींचने मे एकदूसरे से आगे बढने मे कोई कसर नही छोड़ते है। राजस्थान के मुस्लिम व जाट बहुल मंडावा व खींवसर विधानसभा के तत्तकालीन विधायको के सांसद बनने पर 21-अक्टूबर को उपचुनाव होने है। जिनमे उम्मीदवार के नाम पर दलो व नेताओं ने केवल मात्र परिवारवाद को हवा दी गई है। सांसद बने विधायकों ने अपनी जगह अपने बेटे व भाई को उम्मीदवार बनाया है। वहीं कांग्रेस ने भी उनके मुकाबले परिवारवाद को ही अहमियत दी है।

मंडावा से पहले निर्दलीय व फिर भाजपा की टिकट पर जीते नरेन्द्र खिचड़ के भाजपा के टिकट पर 2019 मे झूंझुनू से सांसद चुने जाने के बाद रिक्त हुई सीट पर हो रहे चुनाव मे भाजपा ने मंडावा से सांसद नरेन्द्र खिचड़ के बेटे अतुल खीचड़ को उम्मीदवार बनाया है। जबकि खींवसर के तत्तकालीन रालोपा विधायक हनुमान बेनीवाल के 2019-मे नागौर से भाजपा के समर्थन से सांसद चुने जाने के बाद रिक्त खींवसर सीट पर आरएलपी नेता सांसद हनुमान बेनीवाल ने भी अपने छोटे भाई नारायण लाल बेनीवाल को उम्मीदवार बनाया है। जबकि इसके विपरीत सांसद बेनीवाल ने जीवनभर परिवारवाद के खिलाफ बने मुद्दे पर राजनीति को चमकाया है। अगर सांसद हनुमान बेनीवाल चाहते तो अपने लम्बे राजनीतिक संघर्ष के मुताबिक यहां परिवार से अलग हटकर किसी अन्य को उम्मीदवार बनाकर एक मिशाल कायम कर सकते थे। लेकिन वो ऐसा करने मे जमीन पर खरा उतर नही पाये।

मंडावा व खींवसर उप चुनाव मे कांग्रेस पार्टी ने भी परिवारवाद को संरक्षण देने की परम्परा का पूरी तरह निर्वाह करते हुये मंडावा से लगातार दो विधानसभा चुनाव हारने वाली व पूर्व पीसीसी चीफ रामनारायण की बेटी रीटा सिंह को अपना उम्मीदवार बना रही है। एवं खींवसर से भी लगातार विधानसभा चुनाव हारने का रिकॉर्ड कायम करने वाले एवं पूर्व केन्द्रीय मंत्री रामनिवास मिर्धा के बेटे हरेन्द्र मिर्धा को उम्मीदवार बनाकर अपने परिवारवाद को कायम रखने के सिद्धांत को पूरी तरह निभाया है। खींवसर से हनुमान बेनीवाल भाजपा, निर्दलीय व राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी के निशान पर तीन दफा विधानसभा का चुनाव जीत चुके है। अब उनकी जगह उनका छोटा भाई नारायण चुनावी मैदान मे है।

1998 के चुनाव बाद अशोक गहलोत के मुख्यमंत्री बनने के बाद से जाट मतदाताओं की नाराजगी का ऐहसास 21-अक्टूबर को जाट बहुल मंडावा व खींवसर विधानसभा उप चुनावों मे भी नजर आयेगा। राजनीतिक जानकार बताते है कि प्रदेश मे कांग्रेस सरकार होने के कारण कांग्रेस पार्टी सीट निकालने की भरपूर कोशिश करेगी। वहीं भाजपा व रालोपा अपनी सीट बचाये रखने मे पूरा दम लगाते हुये कशमीर से धारा 370 हटाने से उपजी सहानुभूति को भूनाने की कोशिशें कर सकती है। देखते है कि कांग्रेस सीट छीन पाती है या फिर भाजपा व रालोपा अपनी सीट बरकरार रख पाने मे सफल होते है।

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is a young journalist & editor at Millat Times''Journalism is a mission & passion.Amazed to see how Journalism can empower,change & serve humanity