अशफाक कायमखानी।जयपुर।
मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से पत्रकारों द्वारा नवम्बर मे होने वाले स्थानीय निकाय चुनाव मे मेयर, सभापति व चेयरमैन के सीधे मतदाताओं द्वारा चुने जाने के फैसले को बदलने की पूछने पर कार्यकर्ताओं को माई-बाप बताते हुये उनकी राय को अहमियत देने को मुख्यमंत्री के कहने के बाद सम्भावाना जताई जाने लगी है कि राजस्थान की कांग्रेस सरकार अब अपने ही फैसले को बदलकर मेयर, सभापति व चेयरमैन के चुनाव वार्ड पार्षदों के मार्फत करवाने का फेसला कर सकती है।
हालांकि पूर्ववर्ती गहलोत सरकार के समय मेयर, सभापति व चेयरमैन के सीधे तौर पर चुनाव करवाने पर तत्तकालीन समय मे कांग्रेस को अच्छी सफलता मिली थी। फिर गहलोत सरकार के जाने के बाद वसुंधरा राजे के नेतृत्व मे बनी भाजपा सरकार ने कांग्रेस सरकार के समय के उक्त चुनाव तरीके को बदलकर पार्षदों के मार्फत चुनाव करने का फैसला करके चुनाव करवाने की कांग्रेस सरकार ने जमकर खिलाफत की थी। पूरे पांच साल भाजपा सरकार के उक्त फैसले पर सरकार को कोसते हुये कांग्रेस पार्टी ने अपने चुनावी घोषणा पत्र मे सीधे चुनाव कराने का मतदाताओं से वादा किया था। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के नेतृत्व मे कांग्रेस की सरकार गठित होने पर सरकार ने सीधे चुनाव कराने का फैसला किया। पर पीछले हफ्ते पीसीसी की मीटिंग मे कुछ नेताओं ने कशमीर की धारा 370 के अंशों के हटाने के फैसले के बाद भाजपा के पक्ष मे माहोल बनना बताकर सीधे की बजाय पार्षदों के जरिये मेयर-सभापति चुनने की सलाह देने पर मंत्री शांति धारीवाल की अगुवाई मे एक कमेटी गठित की गई थी। जिसकी रिपोर्ट आने पर सरकार फैसला लेगी।
कुल मिलाकर यह है कि प्रदेश की कुल 193 मे से 52 स्थानीय निकायों के नवम्बर मे होने वाले चुनावों के मुतालिक कांग्रेस सरकार द्वारा मेयर-सभापति व चैयरमैन के चुनने के तरीके पर पहले किये फैसले को बदलकर अब पार्षदों के मार्फत चुनने का फैसला कर सकती है। लेकिन कांग्रेस मे अब भी उक्त चुनाव कराने के तरीकों पर दो मत कायम है।