अशफाक कायमखानी।जयपुर।
राजस्थान के 2013 के आम विधानसभा चुनाव मे कांग्रेस की करारी हार के बाद तत्तकालीन कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी की पसंद पर बने मुलत: उत्तप्रदेश निवासी कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष सचिन पायलेट राजस्थान मे नवम्बर माह मे होने वाले स्थानीय निकाय चुनाव से पहले अध्यक्ष पद से हटकर मात्र एक पद उपमुख्यमंत्री पद ही रह सकते है।
कांग्रेस की युवा टीम के सदस्य व राहुल गांधी के करीबी सचिन पायलट के 2018 के आम विधानसभा चुनाव के बाद मुख्यमंत्री बनने के सपने को अशोक गहलोत की दिल्ली की कोशिशों व उनके समर्थकों के एकदम से सक्रिय हने से चकनाचूर होते हुये हाईकमान ने आखिर कार अशोक गहलोत के नाम पर मुख्यमंत्री के रुप मे मोहर लगाने के बाद गहलोत के मुख्यमंत्री बनने के बाद लगने लगा था कि धीरे धीरे पायलट के मोका मिलते ही पर कतरे जाना तय है।
हालांकि अब तक प्रदेश मे गहलोत व पायलट के रुप मे दो पावर सेंटर बने रहने के चलते सरकार व संगठन स्तर पर असमंजस के हालात बनने के कारण कांग्रेस को लोकसभा चुनाव सहित अनेक मोको पर काफी नूकसान उठाना पड़ा है। लेकिन सोनिया गांधी के कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष बनने के बाद साफ नजर आने लगा है कि अब राजस्थान मे गहलोत ही एक मात्र पावर सेंटर होने वाले है। जिसके तहत पायलट को हाईकमान जल्द एक पद एक व्यक्ति के तहत एक पद छोड़ने की कहकर नये अध्यक्ष के रुप मे नया चेहरा अध्यक्ष के रुप मे कांग्रेस को राजस्थान मे मिलेगा।
राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को कम बोलने वाला नेता लेकिन राजनीति के जादूगर के तौर पर देखा जाता है। राहुल गांधी के लोकसभा चुनाव मे कांग्रेस की करारी हार के बाद उनके अध्यक्ष पद छोड़ने के बाद अध्यक्ष पद पर अनेक नाम चले लेकिन अंतिम समय पर अशोक गहलोत व अहमद पटेल टीम ने सर्वानुमति व संकट की घड़ी से पार्टी को बाहर निकालने के नाम पर सोनीया गांधी के अंतरिम अध्यक्ष बनने पर तैयार किया ओर नेताओं मे आपसी सहमति बनाने मे वो सफल रहे।
आसाम व तमीलनाडू से पूर्व प्रधानमंत्री डा.मनमोहन सिंह के राज्यसभा से चुनकर ना आने का फायदा उठाते हुये राजनीति के जादूगर अशोक गहलोत ने राजस्थान मे भाजपा प्रदेशाध्यक्ष व राज्यसभा सदस्य मदनलाल सैनी के देहांत से रिक्त हुई सीट पर सिंह को उम्मीदवार बनाकर एक तीर से अनेक शिकार एक साथ कर डाले है। मनमोहन सिंह आज तेराह अगस्त को जयपुर मे राज्यसभा सदस्य के लिये अपना नामांकन जमा करायेगे। जिन नामांकन फार्मो पर सरकार के मंत्रीगणों के अलावा सरकार को समर्थन दे रहे बसपा के छ व बारह निर्दलीय विधायको के दस्तखत भी होगे।
राज्यसभा की एक सीट के लिये हो रहे उपचुनाव मे डा. मनमोहन सिंह के फार्म की जांच व नाम वापसी के समय गुजरने के बाद 19-अगस्त को निर्विरोध चुने जाने की घोषणा होने की उम्मीद से भी गहलोत की एक कामयाबी के तौर पर माना जायेगा। बारह निर्दलीय, छ बसपा व एक लोकदल सदस्यों का समर्थन मनमोहन सिंह को दिलवाने वाले गहलोत की इस चाल से कांग्रेस व कांग्रेस विधायकों पर भी एक मनोवैज्ञानिक दवाब बनेगा कि गहलोत है तो करीब 17-18 अन्य विधायको का समर्थन कांग्रेस के पक्ष मे है। दूसरी तरफ राजस्थान के खीवसर व मण्डावा के विधायकों के लोकसभा सदस्य चुने जाने के बाद दोनो जगह होने वाले उपचुनावो के अलावा नवम्बर मे स्थानीय निकाय चुनावों के अलावा अगले साल जनवरी-फरवरी मे होने वाले पंचायत चुनाव मुख्यमंत्री गहलोत के सामने एक बडी चुनोती बताया जा रहा है। जिसको गहलोत आसानी से पार लगाना चाहते है। लेकिन सर्जिकल स्ट्राइक की तरह आर्टिकल 370 के कुछ भाग हटाने से भाजपा के फेवर मे माहोल मे इजाफा हुवा है। जो सभापति के होने वाले सीधे चुनाव मे भाजपा को फायदा पहुंचा सकता है।
कुल मिलाकर यह है कि राजनीति के पंडितों के मुताबिक निकाय चुनाव के पहले राजस्थान कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष सचिन पायलट का पद से हटना लगभग तय माना जा रहा है। नये अध्यक्ष पद पर किसी जाट या ब्राह्मण नेता के नाम पर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की रजामंदी के बाद नवम्बर से पहले मोहर लग सकती है।