अशफाक कायमखानी।जयपुर।
भारत मे अधीकांश समय सत्ता पर काबिज रहने वाली कांग्रेस सरकार का विधान मात्र कागज पर जरूर धर्मनिरपेक्ष नजर आता है। लेकिन कांग्रेस ने आजादी के बाद के बहतर सालो से मुस्लिम समुदाय को वोटबैंक बनाये रखने के अलावा आज तक कुछ नही किया। अगर कुछ किया तो केवल मात्र जनसंघ-भाजपा के सत्ता के आने का डर जरुर कायम रखा। जबकि कांग्रेस-भाजपा व अन्य दलो की सरकारे बनने के पहले मतदाताओं को अपनी पसंद के दल के पक्ष मे मतदान कर उस दल की सरकार बनाने की कोशिश करने का पूरा हक है। लेकिन चुनाव के बाद चाहे किसी भी दल की सरकार बने वो सरकार सभी भारतीय की बनना माना जाना होगा।
2019 के आम लोकसभा चुनाव मे मुस्लिम समुदाय के बहुमत मे भाजपा उम्मीदवारों के खिलाफ मतदान करने के बावजूद चुनाव परिणाम के बाद भारत की सत्ता पर पूर्ण बहुमत से अधिक बहुमत आने पर भाजपा की तरफ से नरेंद्र मोदी के दल के नेता व प्रधानमंत्री के रुप मे फिर से नाम तय होने के बाद मोदी के पहले भाषण मे अल्पसंख्यको मे खोफ बनाये रखने के माहौल पर छेद करने के साथ उनके विकास को आगे बढाने की कहने का चाहे मुस्लिम समुदाय के कथित राजनीतिक व धार्मिक नेता स्वागत ना करे। लेकिन उक्त बातो पर प्रतिक्रिया देने मे जरा इंतजार तो करना चाहिए था।
केंद्र मे नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व मे भाजपा सरकार गठित होने के बाद अल्पसंख्यक बालिकाओं की शादी मे इक्यावन हजार देने की घोषणा के अलावा पांच करोड़ छात्र-छात्राओं को छात्रवृत्ति देने की घोषणा के अतिरिक्त मदरसो का आधुनिकीकरण व शसक्तीकरण करने की सरकारी घोषणा पर मुस्लिम समुदाय के कथित राजनीतिक व धार्मिक नेताओं को किसी तरह की प्रतिक्रिया देने से पहले सरकार के घोषणाओं पर अमल करने के लिये उसे समय देकर फिर उसके क्रियान्वयन के गूण दोष के आंकलन पर प्रतिक्रिया देने पर विचार करना चाहिये था। पर कुछ धार्मिक नेताओं ने तो घोषणा के कुछ घंटो बाद ही मदरसो के आधुनिकीकरण व शसक्तीकरण करने योजना पर सवाल उठाने शूरु कर दिये। जबकि अधीकांश धार्मिक नेता रमजान महिने मे भारत के मुस्लिम समुदाय की जकात को अपने अपने मदरसो के लिये पाने मे पसीना बहाते बहाते वापसी कर रहे थे। यह सही है कि कांग्रेस सरकार के समय मुस्लिम युवको के जैल मे ठूंसने व भाजपा सरकार के समय मोब लिंचीग की घटनाओं ने सबको हिलाकर रख दिया है।
लोकतंत्र मे सरकार व सरकार की घोषणाओं पर सवाल उठाने व अपनी बात सरकार के सामने रखने का आम जनता को पूरा अधिकार है। लेकिन जकात का अधीकांश हिस्सा प्राप्त करने वाले हमारे मदरसे व उनको चलाने वाले अपने स्तर पर कायम शूदा मदरसो का अपने स्तर पर आधुनिकीकरण व शसक्तीकरण करने का बीड़ा समय रहते उठा लेते तो आज यह हालात समुदाय को देखने नही पड़ते।
कुल मिलाकर यह है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी व भाजपा सरकार की भारत के मुस्लिम समुदाय से तालूक से कि जाने वाली घोषणाओं व शूरु होने वाली योजनाओं के क्रियान्वयन तक किसी तरह की नकारात्मक प्रतिक्रिया देने से परहेज करना चाहिये। जबकि सयुंक्त राष्ट्र की आर्थिक व समाजी परिषद की मीटिंग मे भारत ने अपनी पूरानी नीति के उलट भारी बदलाव करते हुये इजराइल के पक्ष मे मतदान भी किया है।