।अशफाक कायमखानी।जयपुर।
इंसान के मन व मस्तिष्क के वातावरण के साथ साथ पूरा जलवायु वातावरण के बूरे दौर मे प्रवेश करने के बाद उससे छुटकारा पाने या यानि छुटकारा दिलवाने के लिये अल्लाह पाक के आदेश व इस्लामी शिक्षा के निर्देशो के अनुसार एक तरफ पवित्र माह ऐ रमजान के रोजा रखकर मन व मस्तिष्क के शुद्ध होने व रोजो के इनाम मे मिले तोहफे के रुप मे ईद जैसे पवित्र त्योहार को सभी मिलकर खुशीया मनाकर प्रफूल्लित नजर आ रहे थे। दूसरी तरफ पर्यावरण प्रेमी संयोग मानिए कि इसी पांच जून को विश्व पर्यावरण दिवस मना कर वातावरण को शुद्ध करने के लिये पेड़, पहाड़ जेसे अनेक आवश्यक प्राकृतिक कूदरती उपलब्ध साधनो को बरबाद होने से बचाने व उनको बढाने की कसम खाते व कोशिश करते नजर आ रहे थे।
हालांकि मै ईद के त्योहार की खुशी मे किसी तरह की कमी खलल डालने की कतई बात नही करना चाहता हु। बल्कि ईद की खुशी को चोगूना करने की कोशिश करने की बात आगे बढाते हुये यह जरुर कहना चाहता हु कि पर्यावरण को शुद्ध रखने व उसके महत्व पर इस्लामी शिक्षा व निर्दशो के अनुसार इस्लामी विद्वान अगर अपने सम्बोधनों मे ईद के इस मुबारक मोके पर थोड़ा-बहुत प्रकाश डाल देते तो ईद की खुशी को चोगूना किया जा सकता था। पर्यावरण के लिये इस अवसर पर दिये जाने वाले इस्लामी विद्वानों के संदेश काफी असरकारक साबित हो सकते थे।
इस्लामी शिक्षाओ के अनुसार पेड़ की अहमियत के बारे मे बताया गया है कि अगर इंसान को लगे कि कयामत आ रही है यानी दूनीया पूरी तरह खत्म होने वाली है तब भी इंसान को पेड़ लगाते रहना चाहिए। एक मात्र पेड़ की अहमियत व उसको बीना वजह काटने की मनादी व काटना अगर जरूरी हो तो उसके बदले मे दूसरा पेड़ लगाने के निर्देश के मानने वालो को अगर इस्लामी विद्वान शदियो बाद आये एक दिन ईद व पर्यावरण दिवस के अवसर को भूनाते हुये इस पर भी सम्बोधन देते तो पर्यावरण को शुद्ध करने मे अहम किरदार निभाया जा सकता था।