अशफाक कायमखानी।जयपुर।
लोकसभा चुनाव मे कांग्रेस उम्मीदवारों के बडे अंतर से सभी पच्चीस सीटों पर बूरी तरह हारने के असल जिम्मेदार कार्यकर्ताओं से अधिक कांग्रेस नेताओं की आपसी कलह व विधायकों व विधानसभा मे रहे उम्मीदवारों के पूरे चुनावी समय उदासीनता की चादर ओढे रहना प्रमुख कारण माना जा रहा है। जिसके कारण चार माह पहले विधानसभा चुनाव मे सो सीट जीतकर सरकार बनाने वाली कांग्रेस पार्टी के लोकसभा चुनाव मे दोसो मे से 185 सीटो पर भाजपा के मुकाबले पिछडंने को गम्भीरता से लेकर कोई कदम पार्टी स्तर पर नही उठाया तो मंडावा व खीवंसर विधानसभा उप चुनाव व पांच माह बाद होने वाले स्थानीय निकाय चुनाव मे भी लोकसभा जैसे परिणामों का स्वाद कांग्रेस को चखना पड़ सकता है।
विधानसभा चुनावों मे गुजर मतदाताओ का झूकाव सचिन पायलट के मुख्यमंत्री बनने की सम्भावनाओं के चलते कांग्रेस की तरफ आने के बाद चाहे पायलट मुख्यमंत्री ना बन पाये लेकिन उपमुख्यमंत्री तो बन ही गये थे। लोकसभा चुनाव मे पायलट की जिम्मेदारी बनती थी कि वो कम से कम गुजर मतदाताओं को तो बांध कर रखते। लेकिन उन्होंने ऐसा या तो किया नही, अगर किया तो उनका मतदाताओं पर प्रभाव नही बचा। अगर प्रभाव नही बचा तो उनको इसकी जिम्मेदारी लेते हुये राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी की तरह प्रदेश अध्यक्ष पद से त्यागपत्र तो तूरंत दे देना चाहिए था। चाहे सत्ता के सूख पाने के लिये उपमुख्यमंत्री पद से चिपके रहते। यानि गूड़ दे दो, वरना छोरी होजाय वाली कहावत! दूसरी तरफ मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का भी माली मतदाताओं पर प्रभाव विधानसभा चुनाव मे तो नजर आया। लेकिन लोकसभा चुनाव मे गहलोत प्रभावहीन नजर आये है। यानि उन मतदाताओं की विधानसभा चुनाव मे गहलोत पसंद थे तो लोकसभा चुनाव मे मोदी चाहत बनते नजर आये।
लोकसभा चुनाव मे हार के कारणो पर मंथन करने को लेकर कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष सचिन पायलेट ने कहा कि उन्होने बूथ वाईज आंकड़े मंगवाये है। उन आंकड़ो की समीक्षा के बाद उभरने का काम करेंगे। पायलट ने दोसो विधानसभा क्षेत्रो की बूथो की बजाय टोंक विधानसभा के मुस्लिम बहुल बूथो को छोड़कर अन्य बूथो के आंकड़ों के साथ साथ सरदारपुरा सीट के बूथो पर मंथन करके उपमुख्यमंत्री व मुख्यमंत्री के क्षेत्र का ही बूथवार आंकलन कर लेते ताकि वास्तविक हालातो का पता लग जाता। इससे अधिक आंकड़ों की जरूरत महसूस करते तो गहलोत पायलट को छोड़कर बाकी 98 कांग्रेस विधायकों के मतदाता सूची वाली बूथो के आंकड़ों की समीक्षा करने से भी सबकुछ सामने आ जायेगा।
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राजस्थान कांग्रेस से विधानसभा चुनाव के पहले अधिकांश सम्भावित लोकसभा उम्मीदवारो को ही उम्मीदवार बनाया है। बने लोकसभा उम्मीदवारों ने विधानसभा उम्मीदवारों को विजयी बनाने के लिये जी-जान लगाते हुये दिन रात एक किया लेकिन उसका ठीक बदल जीते विधायकों ने उन्हें कतई नही दिया। सबसे पहले कांग्रेस को सभी पच्चीस लोकसभा उम्मीदवारों की मीटिंग बूलाकर उनसे हकीकत जाननी चाहिए। दोसो मे से जिन 15- विधानसभा क्षेत्रों मे कांग्रेस उम्मीदवार आगे रहे है उन विधायकों या नेताओं को प्रोत्साहित करने पर विचार करना चाहिए। लोकसभा चुनाव के आंकलन से साफ नजर आया कि केवल मात्र मुस्लिम मतो को छोड़कर बाकी सभी तबके के मतदाताओं मे भारी विघटन होने को कांग्रेस नेता रोक पाने मे असमर्थ नजर आये।