बाबरी मस्जिद मामला मध्यस्थ के पास भेजने पर फैसला सुरक्षित,हिंदू पक्षकारों ने किया विरोध

जस्टिस बोबडे ने कहा- बाबर ने जो किया उसे कोई नहीं बदल सकता, पर हम मसला सुलझा सकते हैं
जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा- अयोध्या विवाद 2 पक्षों के बीच का नहीं बल्कि दो समुदायों से संबंधित
हिंदू पक्षकारों के वकील ने मामले में मध्यस्थता का विरोध किया, कहा- यह प्रॉपर्टी नहीं, धार्मिक विवाद

‌मिल्लत टाइम्स,नई दिल्ली:समय बचाने के लिए क्या अयोध्या विवाद को मध्यस्थ के पास भेजा जा सकता है या नहीं, इस पर सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को फैसला सुरक्षित रख लिया। संवैधानिक पीठ ने सभी पक्षकारों से मध्यस्थता पैनल के लिए बुधवार को ही नाम देने के लिए कहा है ताकि जल्द ही आदेश निकाला जा सके।

इससे पहले 26 फरवरी को हुई सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने अपनी निगरानी में मध्यस्थ के जरिए विवाद का समाधान निकालने पर सहमति जताई थी। कोर्ट ने कहा था कि एक फीसदी गुंजाइश होने पर भी मध्यस्थ के जरिए मामला सुलझाने की कोशिश होनी चाहिए। अखिल भारतीय हिंदू महासभा ने मध्यस्थता के लिए सुप्रीम कोर्ट को 3 नाम सुझाए हैं। इसमें पूर्व चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस जेएस खेहर और पूर्व जस्टिस एके पटनायक के नाम दिए गए।

कोर्ट और वकीलों के सवाल-जवाब

जस्टिस एसए बोबडे ने कहा, ‘‘यह दिमाग, दिल और रिश्तों को सुधारने का प्रयास है। हम मामले की गंभीरता को लेकर सचेत हैं। हम जानते हैं कि इसका क्या असर होगा। हम इतिहास भी जानते हैं। हम आपको बताना चाह रहे हैं कि बाबर ने जो किया उस पर हमारा नियंत्रण नहीं था। उसे कोई बदल नहीं सकता। हमारी चिंता केवल विवाद को सुलझाने की है। इसे हम जरूर सुलझा सकते हैं।’’ “मध्यस्थता के मामले में गोपनीयता बेहद अहम है, लेकिन अगर किसी भी पक्ष ने बातों को लीक किया तो हम मीडिया को रिपोर्टिंग करने से कैसे रोकेंगे? अगर जमीन विवाद पर कोर्ट फैसला दे तो क्या सभी पक्षों को मान्य होगा?” इसके जवाब में मुस्लिम पक्षकार के वकील दुष्यंत ने कहा कि इसके लिए विशेष आदेश दिया जा सकता है। जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि अयोध्या विवाद दो पक्षों के बीच का नहीं बल्कि यह दो समुदायों से संबंधित है। हम उन्हें मध्यस्थता पर बाध्य कैसे कर सकते हैं? ये बेहतर होगा कि आपसी बातचीत से मसला हल हो पर कैसे? ये अहम सवाल है। रामलला की तरफ से पैरवी कर रहे वकील सीएस वैद्यनाथन ने कहा कि प्रभु श्रीराम की जन्मभूमि वाली जगह आस्था से जुड़ी है। इस पर समझौता नहीं किया जा सकता। हम और कहीं भी मस्जिद के निर्माण के लिए चंदा जुटाने को तैयार हैं। वैद्यनाथन ने मध्यस्थता का विरोध करते हुए कहा कि इस तरह के आस्था और भरोसे से जुड़े मामलों में समझौता नहीं किया जा सकता। हिंदू पक्षकारों की ओर से वकील हरिशंकर जैन ने मध्यस्थता का विरोध किया। उन्होंने कहा कि यह विवाद धार्मिक है और लोगों की भावनाओं से जुड़ा हुआ है। यह केवल प्रॉपर्टी विवाद नहीं है।

अनुवाद को जांचने का समय मांगा था

इससे पहले चीफ जस्टिस ने अयोध्या मामले से जुड़े दस्तावेजों की अनुवाद रिपोर्ट पर सभी पक्षों से राय मांगी थी। एक पक्ष की तरफ से पेश वकील राजीव धवन का कहना था कि अनुवाद की कापियों को जांचने के लिए उन्हें 8 से 12 हफ्ते का समय चाहिए। रामलला की तरफ से पेश एस वैद्यनाथन ने कहा कि दिसंबर 2017 में सभी पक्षों ने दस्तावेजों के अनुवाद की रिपोर्ट जांचने के बाद स्वीकार की थी। दो साल बाद ये लोग सवाल क्यों उठा रहे हैं?

14 अपीलों पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई

सुप्रीम कोर्ट में इलाहाबाद हाईकोर्ट के सितंबर 2010 के फैसले के खिलाफ दायर 14 अपीलों पर हो रही है। अदालत ने सुनवाई में केंद्र की उस याचिका को भी शामिल किया है, जिसमें सरकार ने गैर विवादित जमीन को उनके मालिकों को लौटाने की मांग की है।

5 जजों की बेंच कर रही सुनवाई
अयोध्या मामले में सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की संविधान पीठ सुनवाई कर रही है। इसमें चीफ जस्टिस रंजन गोगोई के अलावा जस्टिस एसए बोबडे, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस एसए नजीर शामिल हैं।

2.77 एकड़ परिसर के अंदर है विवादित जमीन
अयोध्या में 2.77 एकड़ परिसर में राम जन्मभूमि और बाबरी मस्जिद का विवाद है। इसी परिसर में 0.313 एकड़ का वह हिस्सा है, जिस पर बाबरी मस्जिद मौजूद था और जिसे 6 दिसंबर 1992 को गिरा दिया गया था। केंद्र की अर्जी पर भाजपा और सरकार का कहना है कि हम विवादित जमीन को छू भी नहीं रहे।

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 9 साल पहले फैसला सुनाया था

इलाहाबाद हाईकोर्ट की तीन सदस्यीय बेंच ने 30 सितंबर 2010 को 2:1 के बहुमत से 2.77 एकड़ के विवादित परिसर के मालिकाना हक पर फैसला सुनाया था। यह जमीन तीन पक्षों- सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और रामलला में बराबर बांट दी गई थी। हिंदू एक्ट के तहत इस मामले में रामलला भी एक पक्षकार हैं। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा था कि जिस जगह पर रामलला की मूर्ति है, उसे रामलला विराजमान को दे दिया जाए। राम चबूतरा और सीता रसोई वाली जगह निर्मोही अखाड़े को दे दी जाए। बचा हुआ एक-तिहाई हिस्सा सुन्नी वक्फ बोर्ड को दिया जाए। इस फैसले को निर्मोही अखाड़े और सुन्नी वक्फ बोर्ड ने नहीं माना और उसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई। शीर्ष अदालत ने 9 मई 2011 को इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगा दी। सुप्रीम कोर्ट में यह केस तभी से लंबित है।

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is a young journalist & editor at Millat Times''Journalism is a mission & passion.Amazed to see how Journalism can empower,change & serve humanity