आसाम मे हिन्दु-मुस्लिम ने मिलकर मनाया भोगाली बिहु,लोगो मे भारी उत्साह।

चाईजुर रहमान/मिल्लत टाइम्स,असम:असम की संस्कृति का प्रमुख हिस्सा बिहू उत्सव का राज्यवासियों को पूरे वर्ष भर इंतजार रहता है। रंगाली, कंगाली और भोगाली यह तिन बिहु आसाम के लोग पुरे हर्षोल्लास के साथ मनाते है। खासकर भोगाली (भोग अर्थात खाने से) बिहू को लेकर लोगों में खासा उत्साह रहता है। तीन दिवसीय भोगाली बिहू का उत्सव सोमवार से पूरे राज्य में आरंभ हो चुका है। इस पर्व का संबंध अच्छी खेती होने पर उत्सव के रूप में मनाया जाता है। माना जाता है कि घर में अन्न के भंडार भर गए हैं। लोग तीन दिवसीय इस पर्व में सभी तरह के व्यंजन चाहे वह मांसाहार हो या शाकाहार सभी का जमकर भोग करते हैं।

भोगाली बिहू का शुभारंभ उरूका के दिन भेलाघर और मेजी (घास-फूस, बांस, केले के सूखे पत्ते और पुवाल से तैयार) में रात के समय सामूहिक भोज का आनंद लिया जाता है। इसके मद्देनजर राज्य के अलग-अलग इलाकों में बिल (झील) में सामूहिक रूप से मछली पकड़ने की परंपरा भी लंबे समय से चली आ रही। इसी कड़ी में राजधानी गुवाहाटी के बाहरी इलाके सोनापुर थाना क्षेत्र के तीन ऐतिहासिक बिल (झील) बोमनी, जालीखड़ा, पारखाली में पूरे विधि-विधान के साथ मछली पकड़ने की परंपरा सोमवार की सुबह आरंभ हुई। जिसमें इलाके के हजारों की संख्या में लोगों ने हिस्सा लिया। ठंड के बावजूद हजारों की संख्या में लोग बिल में उतर कर जमकर मछली पकड़ी।

ज्ञात हो कि सामूहिक मछली पकड़ने से पहले स्थानीय तेतेलिया क्षेत्र के राजा (सांकेतिक) पानबर रंग्पी ने बोमनी बिल में पूरे विधि-विधान के साथ पूजा-अर्चना की। जिसके बाद मछली पकड़ने के लिए हजारों लोग बिल में उतरे। पारखाली बिल में डिमोरिया के राजा (सांकेतिक) हलिसिंग रंग्हांग ने पूजा अर्चना की। जालीखाड़ा बिल के किनारे भी स्थानीय राजाओं द्वारा परंपरा के अनुसार पूजा-अर्चना की गई। उपरोक्त राजाओं की कालातांर में सत्ता थी, लेकिन वर्तमान में राजघराने के वंशज अपनी परंपरा का निर्वाह करते हैं। पूजा-अर्चना के बाद डिमोरिया इलाके के सभी जनसमुदाय और जनजातियों की महिला व पुरुष दोनों बिल में उतर कर मछली पकड़ना आरंभ किया।

ज्ञात हो कि यह परंपरा काफी लंबे समय से चली आ रही है। तीनों बिलों में साल में सिर्फ उरूका के दिन ही मछली पकड़ी जा सकती है। अन्य दिनों में इसमें मछली पकड़ने पर रोक है। जिसके चलते उरूका के दिन यहां पर मछली पकड़ने के लिए आने वाले सभी लोगों को कम-ज्यादा मछली जरूर मिलती है। लोग इसको घर ले जाकर पकाकर रात को अपने पूरे परिवार के साथ खाएंगे तथा अगले दिन सुबह स्नान कर मेजी व भेला घरों में पूजा-अर्चना करने के बाद आग लगाई जाएगी। उसके बाद लोगों का अपने ईष्ट-मित्रों के घर पहुंचकर बिहू की शुभकामनाएं देने का सिलसिला शुरू होगा। गौरतलब है कि आसाम की बिहु की खासियत यह है कि बिहु धर्म उत्सव नही है बल्कि यह आसाम की लोगो का उत्सव है। हिन्दु-मुस्लिम सभी एकसाथ मिलकर बिहु मनाते है। यह परम्परा सदियो से है। भोगाली बिहु मे भी यह नजारा देखने को मिल रहा है। हिन्दू मुसलिम मिलकर मछली पकड़ते है और एक-दूसरे के घर मे भी जाकर भोज खाते है।।

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is a young journalist & editor at Millat Times''Journalism is a mission & passion.Amazed to see how Journalism can empower,change & serve humanity