मिल्लत टाइम्स,नई दिल्ली:अब मिसाइल के मामले में रूस और अमेरिका भी भारत से पीछे हो गए हैं। कलाम साहब का सपना पूरा करते हुए भारत ने हाइपरसोनिक मिसाइल बना ली है। 3457 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से हमला बोलने वाली ये मिसाइल अब तक भारत की सबसे एडवांस्ड मिसाइल है।
करीब 300 किलोमीटर दूर लक्ष्य को भेद पाने में सफल इस हाइपरसोनिक मिसाइल को रोकना पाकिस्तान तो दूर चीन के बस की बात भी नहीं है। यह मिसाइल इतनी सटीक है कि 300 किलोमीटर दूर चलते फिरते टारगेट को भी आसानी से भेद सकती है। और तो और यदि टारगेट अपना रास्ता बदल ले तो मेनुवरेबल तकनीक के जरिए यह भी अपना रास्ता बदलकर उसके पीछे चल पड़ती है। शायद इसी कारण भारतीय वैज्ञानिकों ने इसे ‘बटन दबाओ और भूल जाओ’ वाली मिसाइल कहा था।
ब्रह्मोस मिसाइल देश की सबसे मॉर्डन और दुनिया की सबसे तेज हाइपरसोनिक क्रूज मिसाइल है। दुनिया का कोई भी एंटी मिसाइल सिस्टम फिलहाल ब्रह्मोस को रोकने में नाकाम साबित होगा। दरअसल, इस मिसाइल की सबसे बड़ी खासियत इसकी रफ्तार है। अभी तक अमेरिका की टॉम हॉक मिसाइल को दुनिया की सबसे ताकतवर क्रूज मिसाइल माना जाता था, लेकिन ब्रह्मोस ने उसे भी पछाड़ दिया है। एक बार टारगेट पर लॉक होने के बाद ये चंद सेकेंड में अपने टारगेट को उड़ा देती है। मौजूदा वक्त में दुनिया के किसी भी देश के पास इसे रोकने वाला कोई भी हथियार मौजूद नहीं है। दुश्मन को पता चलने से पहले ही ये मिसाइल अपने टारगेट को उड़ा देती है।
डोकलाम विवाद के वक्त जब खबरें आई थी कि भारत अरुणाचल सीमा पर ब्रह्मोस तैनात करने जा रहा है, तब चीनी सेना ने माना था कि ब्रह्मोस की तैनाती के बाद चीन के युन्नान प्रांत पर खतरा मंडराने लगा है। चीन पाकिस्तान में ब्रह्मोस को लेकर घबराहट की एक और वजह है। चिंता का दूसरा बड़ा कारण यह है कि ब्रह्मोस को जमीन, पानी और आसमान से फायर किया जा सकता है। फिलहाल भारतीय सेना ब्रह्मोस से लैस है और नौसेना और वायुसेना भी जल्द ब्रह्मोस से लैस होने वाली है। ब्रह्मोस को पनडुब्बी और वारशिप से दागने के सफल परीक्षण किए जा चुके हैं। एयरफोर्स के सुखोई विमान ने भी दिसंबर के अंतिम दिनों में सुपरसॉनिक ब्रह्मोस का सफलतापूर्वक परीक्षण किया था। इस उड़ान के साथ ही भारतीय वायुसेना दुनिया की पहली ऐसी एयरफोर्स बन गई है, जिसके जंगी बेड़े में सुपरसॉनिक क्रूज मिसाइल शामिल हो गई है।
आपको बता दें कि ब्रह्मोस मिसाइल का निर्माण ब्रह्मोस कॉरपोरेशन ने किया है जो भारत के DRDO और रूस के एनपीओ मशीनोस्त्रोयेनिशिया का ज्वॉइंट वेंचर है। ब्रह्मोस नाम भारत की ब्रह्मपुत्र और रूस की मस्कवा नदी पर रखा गया है। रूस इस परियोजना में लॉन्चिंग तकनीक उपलब्ध करवा रहा है। इसके अलावा उड़ान के दौरान मार्गदर्शन करने की क्षमता भारत के द्वारा विकसित की गई है।