नई दिल्ली (असरार अहमद ) बीते कुछ दिन पहले की बात है जब राजस्थान की जिला परिषदों, पंचायत समिति के चुनाव के नतीजे सामने आए थे । इसमें बीजेपी को ज़्यादा बड़ी जीत तो नहीं मिली लेकिन उसने ऐसा शोर मचाया कि मानों राजस्थान की जनता ने उसे अपना ख़ुदा ही मान लिया हो। किसान नेताओं के आंदोलन के आगे घुटने टेक चुकी बीजेपी और मोदी सरकार ने इसको प्रचार करने में पूरा जोर लगा दिया कि किसान आंदोलन के बीच भी उसकी लोकप्रियता में इज़ाफ़ा ही हो रहा है । ऐसा शोर मचाना शुरू किये की मनो मोदी के आगे सब फेल हैं।
राजस्थान की जिला परिषदों, पंचायत समिति के चुनाव नतीजों को दिल्ली में मीडिया ने इस तरह पेश किया कि मोदी जी की क़यादत में चारों ओर लोग बेहद ख़ुश हैं ,चरों तरफ खुशहाली ही खुशहाली है और बिहार, हैदराबाद के बाद राजस्थान के ग्रामीण क्षेत्रों के लोगों ने भी इस पर मुहर लगा दी है। लेकिन आप को मालूम होना चाहिए कि बरोजगारी अपने चरम पर है आज़ादी के बाद सब से ज्यादा बेरोजगारी मोदी जी के दौर में है लेकिन इसके बावजूद भी मोदी का गुणगान हो रहा है।
लेकिन अब राजस्थान के शहरी इलाक़ों के निकाय चुनाव के जो नतीजे सामने आए हैं, उस पर बीजेपी का मुंह बंद हो गया है क्योंकि इस चुनाव बीजेपी तीसरे नंबर पर खिसक गयी है। बीजेपी और मोदी सरकार का प्रोपेगेंडा इतना बेहतरीन ढंग से सेट होता है कि लोग दूसरे पक्ष की बात ही नहीं सुन पाते, कुछ ऐसा ही इस मामले में भी देखने को मिल रहा है ।
राजस्थान के 12 जिलों के 1775 वार्डों में कांग्रेस ने 620, भाजपा ने 548, बसपा ने सात, भाकपा ने दो, माकपा ने दो, आरएलपी ने एक उम्मीदवारों के साथ साथ 595 निर्दलीय प्रत्याशियों ने जीत हासिल की है।
कोंग्रेस का इस चुनाव में बहुत ही बेहतरीन प्रदर्शन रहा लेकिन मीडिया में इसे स्पेस नहीं दिया गया ,मीडिया ने जब देखा की बीजेपी का बुरा हाल है तब इसपर बहस ही नहीं हुई