अशफाक कायमखानी।जयपुर।
राजस्थान कांग्रेस के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत व सचिन पायलट खेमे मे बंटने के बाद पार्टी की होती किरकिरी पर हाईकमान द्वारा समझदारी दिखाते हुये उचित ऐक्शन लेकर मसले को कुछ हद तक ऊपरी तोर सुलझा कर एक तरह उभाल शांत कर लेने का संकेत दिया है। लेकिन राजस्थान भाजपा के नेताओं मे आपसी टकराव धीरे धीरे उफान खाने से लगता है कि भाजपा जैसी अनुशासित पार्टी मे सर्वेसर्वा बनने के चक्कर मे सबकुछ ठीक नही चलता नजर आ रहा है।
इसी 14-अगस्त को विधानसभा मे कांग्रेस सरकार द्वारा लाये गये विश्वास प्रस्ताव के पास होने के ऐनवक्त के पहले भाजपा के गोपीचंद मीणा, कैलाश मीणा, हरेंद्र नीमामा व गौतम मीणा नामक चार विधायको का अचानक सदन से गायब हो जाना एवं पूर्व मुख्यमंत्री राजे द्वारा भाजपा के पूर्व विधायक व सांसदो सहित नेताओं को फोन करके या करवा कर उनसे जयपुर उनके निवास पर मिलने आना को कहने से लगता है कि कांग्रेस मे गहलोत की तरह वसुंधरा राजे भी मुखीया बनने का मोह किसी किमत पर अभी भी छोड़ना नही चाहती है। जबकि भाजपा मे राजे के मुकाबले प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनीया व संघ समर्थक नेताओं का अलग बना धड़ा अब राजे से अधिक अपने को मजबूत मानकर आगामी चुनाव के लिये रणनीति बनाने मे लगा हुवा बताते है। राजनीति के पंडित कहते है कि गहलोत व राजे की पार्टी के प्रति निष्ठा होने का ठीक से आंकलन तब हो पायेगा जब उनकी पार्टी के सत्ता मे आने पर उनको मुख्यमंत्री बनाने से मना किया जायेगा। तब वो पार्टी के साथ रहते है या बगावत करके अलग धड़ा बनाकर दुसरो से मिलकर सत्ता का मुखीया बनने की कोशिश मे लगते है।
उधर कांग्रेस मे सचिन पायलट के प्रति बिगड़े बोलो से बैकफुट पर आये मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को सचिन पायलट की वापसी व प्रभारी महामंत्री अविनाश पाण्डे की विदाई करके अजय माकन को प्रभारी महामंत्री बनने के अलावा राजस्थान के सम्बंधित मामलो की सुनवाई करने के लिये तीन सदस्यीय हाई पावर कमेटी के गठन से गहरा धक्का लगा है। पायलट के वापस आने व कमेटी गठन से गहलोत काफी सकते मे आकर अपनी जबान पर लगता है कि चाहे कुछ समय के लिये ही सही पर ताला लगा लिया है। जबकि पायलट ने 19-अगस्त को साधारण विधायक की हेसियत से अपने निर्वाचन क्षेत्र टोंक की यात्रा करके प्रदेश भर की यात्रा की शुरुआत करने पर उन्हें मिले भारी जन समर्थन से गहलोत खेमे की एक दफा तो नींद उडा दी है। गहलोत की जनता मे कोई खास पकड़ नही होने के साथ साथ उन्हें कोई अच्छा वक्ता भी नही माना जाता है। गहलोत को अब तक दिल्ली हाईकमान को ढंग से मेनेज करने वाला नेता के तोर पर देखा जाता रहा जो अब वो पकड़ भी कमजोर होती दिख रही है।
कुल मिलाकर यह है कि राजस्थान मे कांग्रेस व भाजपा मे वर्तमान समय मे सबकुछ ठीक चलता नजर नही आ रहा है। अशोक गहलोत व वसुंधरा राजे को उनकी ही पार्टी से मजबूत चेलैंज मिलने लगा है। वही सचिन पायलट भी अब तीसरे नेता के तौर पर प्रदेश मे उभरते नजर आने लगे है। अगर पायलट ने राजस्थान भर का दौरा इसी तरह जारी रखा तो उनको मिलते भारी जनसमर्थन से गहलोत खेमे की काफी हद तक नींद उड जाने के साथ साथ उनके द्वारा मनोनीत करवाये प्रदेश अध्यक्ष डोटासरा की भी पद से हटने की खबर सूननी पड़ सकती है।