।अशफाक कायमखानी।
जयपर: कहते है कि जब किसी की चलती रहती है तो हाथी भी आसानी से निकल जाता है। लेकिन जब कानून के दावपेंच की उलझन मे कोई घटना उलझ जाये तो मानो किड़ी का भी बचकर निकलना मुश्किल हो जाता है।उसी तरह 2008 की तरह इस दफा भी गहलोत सरकार द्वारा बसपा के सभी छ विधायको के कांग्रेस मे मिलाने को लेकर अब जाकर विलय प्रक्रिया के कानून के दावपैच मे उलझना कांग्रेस के गले की फांस बनता नजर आ रहा है। जो मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के लिये ना उगलते बन रहा है ओर नाही निगलते बन रहा है।
राजस्थान के बसपा के सभी छ विधायको के कांग्रेस मे विलय को लेकर उठ रहे सवालो का जवाब मुख्यमंत्री गहलोत कोई कानूनी दलील से ना देकर राज्यसभा मे टीडीपी के चार सदस्यों के भाजपा मे शामिल होने का बार बार उदाहरण देकर अपना बचाव करते नजर आ रहे है। इस मसले पर कानून के अनेक जानकारों से बात करने पर अनेक रोचक तथ्य निकल कर आ रहे है। जिनके बाद लगता है कि उक्त मामले को लेकर जो माननीय सर्वोच्च न्यायालय का जजमेंट आयेगा वो एक अलग न नई नजीर बनेगी।
बसपा के छ विधायको के विलय प्रक्रिया जैसे अनेक विवादो को लेकर सर्वोच्च न्यायालय का जिन जिन लोगो ने अबतक दरवाजा खटखटाया है वो सभी व्यक्ति विशेष ने खटखटाया है। अब पहली दफा व्यक्ति विशेष की बजाय किसी राष्ट्रीय पार्टी ने अपने विधायको की विलय प्रक्रिया के विरोध को लेकर दरवाजा खटखटाया है। जिस मामले मे काफी जान बताते है। दुसरा पहलू यह है कि राष्ट्रीय पार्टी के विधायक अगर किसी अन्य दल मे शामिल होते है तो उनको पहले अलग पार्टी का विधीवत गठन करना होता है फिर पार्टी को चुनाव विभाग मे रजिस्ट्रड करके उसको राजनीतिक दल के रुप मे मान्यता दिलवाने के बाद पार्टी का किसी अन्य पार्टी मे विलय किया जा सकता है। उक्त प्रक्रिया को राजस्थान के सभी छ:बसपा विधायको ने अपनाया नही है।
कुल मिलाकर यह है कि राजस्थान मे गहलोत सरकार के राजनीतिक संकट के भंवरजाल मे फंसने के बाद आपसी आरोप-प्रत्यारोप लगाने के अलावा विभिन्न मसलो को लेकर अदालत के दरवाजे तक विवाद पहुंच चुके है। जिनमे से बसपा विधायको के कांग्रेस मे शामिल होने का विवाद कांग्रेस की गले की फांस बनता नजर आ रहा है। अगर विधानसभा सत्र के पहले अदालत का अंतरिम आदेश बसपा विधायको को मतदान से अलग रखने का आता है तो गहलोत सरकार के लिये यह बडा झटका साबित हो सकता। वही मान्यता प्राप्त राष्ट्रीय पार्टी के विधायको के किसी दूसरे मान्यता प्राप्त राजनीतिक दल मे विलय करने के विरोध मे पार्टी द्वारा अदालत का दरवाजा खटखटाने को लेकर आने वाला जजमेंट भारत के राजनीतिक इतिहास मे एक नई नजीर बन सकता है।