अशफाक कायमखानी।
जयपुर।वीर-सपूतों व दानियो के तोर पर पहचान बना चुके राजस्थान प्रदेश की अशोक गहलोत सरकार ने कोविड-19 व लोकडाऊन से उपजे हालात को जिस समझदारी व एकाग्रता के साथ सम्भालते हुये रोजाना अधिकाधिक कोराना टेस्ट करके प्रभावित मरीजो का इलाज करने का रिकॉर्ड काम किया है। वही उपजे हालात मे उनके द्वारा किसी को भी भूख से मरने नही देने की पूर्ण व्यवस्था करने के सुखद परिणाम साफ नजर आ रहे है। गहलोत सरकार के तरीकों को देश की अन्य राज्य सरकारों व केन्द्रीय सरकार को अपनाने पर विचार करना चाहिए। लेकिन इन सबके मध्य राज्य के अनेक जगह पर जब प्रशासन के लोग खाद्य सामग्री लेकर पहुंचे तो पाया कि उनके घरो मे राशन सामग्री पहले से मोजूद थी या यू कहे कि उनके घर पर भोजन बन रहा था।
अपने पहले मुख्यमंत्री कार्यकाल मे अकाल राहत का शानदार प्रबंधन करने वाले अशोक गहलोत ने आज कोविड-19 व लोकडाऊन से उपजे हालात के समय भी सुव्यवस्थित प्रबंधन करके फिर से एक मिशाल कायम की है। सरकारी स्तर पर कोराना वायरस के प्रभाव को कम से कम करने व प्रभावित लोगो की पहचान करके उनका जल्द से जल्द ईलाज करके उनको ठीक करके उनके घरो तक भेजने का जो सिस्टम कायम किया है। उसकी जीतनी सहरायना की जाये वो कम ही मानी जायेगी।
सरकारी स्तर पर राज्य के किसी भी नागरिक को एवं राज्य मे इस समय रह रहे राज्य के बाहर के किसी भी व्यक्ति को हरगिज भूखा नही सोने देने के लिये भरसक सफलतापूर्वक कोशिशे की जा रही है। वही आम जरुरतमंदों तक खाद्य सामग्री पहुंचाने मे सरकार के अलावा लगे हुये भामाशाहों व सामाजिक संस्थाओं द्वारा किये जा रहे सहयोग को भी महत्वपूर्ण माना जा रहा है। लेकिन कुछ लोग इस विकट परिस्थितियों मे भी ईमान को ताख मे रखकर दूसरो का हक मारने की कोशिश मे लगे हुये है। टोल फ्री व कंट्रोल रुम नम्बर पर मांग दर्ज करवाने पर सरकारी स्तर पर खाद्य सामग्री देने जब अधिकारी पुलिस के साथ घर आकर किचन मे रखे सामान को देखकर देने से शर्म के मारे कुछ लोग इस तरह सामग्री लेने से कतराने लगे है।वही अनेक जगह यह भी देखने को मिला है कि जब सरकार का प्रतिनिधि खाद्य सामग्री देने आते है तो उन्हें पहले से उसके घर मे सामग्री पाई जा रही है। जिसके अनेक कारण भी बताये जा रहे है कि जरुरतमंद सरकारी सहायता के अलावा भामाशाहों व सामाजिक संस्थाओं द्वारा वितरित की जा रही खाद्य सामग्री पाने की कोशिश भी अतिरिक्त रुप मे करता है। सरकारी मदद के मुकाबले उसको भामाशाहों व संस्थाओं द्वारा वितरित की जा रही खाद्य सामग्री आसानी से बीना किसी फोरमल्टीज के मिल जाती है। यानि जरुरतमंद द्वारा हर तरफ कोशिश करने पर जब तक सरकारी खाद्य सामग्री पहुंच पाती है उससे पहले भामाशाहों द्वारा वितरित खाद्य सामग्री उस तक पहुंच जाती है। इनमे से कुछ लोग तो एक नही अनेक भामाशाहों व संस्थाओं से खाद्य सामग्री प्राप्त करके दूसरों का हक मारने से भी बाज नही आ रहे है।
सरकारी प्रतिनिधि द्वारा खाद्य सामग्री व्यक्ति की मांग पर घर पहुंचाने पर उनकी रसोई मे पहले से खाद्य सामग्री मिलने व कहीँ पर हलवा बनने के समाचार अखबारों की सुर्खियां लगातार बन रही है वही सीकर मे इस विकट परिस्थितियों मे कुछ सुखद अहसास भी हुये। सीकर के मोहल्ला कारीगरान मे लोकडाऊन के चलते जरुरतमंद लोगो को पहले दिन से एक मुस्लिम परिवार द्वारा खाद्य सामग्री पहुंचाने का सीलसीला शुरू करने के बाद जब वो एक बंगाली दास परिवार को खाद्य सामग्री देने पहुंचे तो दास परिवार ने उनको कहा कि आप द्वारा पहले दी गई सामग्री अभी हमारे पास है। उस सामग्री से दो-तीन दिन निकल सकते है। तो आप द्वारा अब लाई सामग्री हम नही लेगे, किसी दूसरे जरुरतमंद को दे दो। हमारी सामग्री खत्म हो जायेगी, तब हम फिर से आपसे ले लेंगे। इसी तरह शहर के अन्य हिस्से मे यूपी के परिवार है जिनको खाद्य सामग्री देने का आफर किया तो उन्होंने कहा कि उनके पास पैसे बचे हुये है उनसे थोड़ी थोड़ी खाद्य सामग्री खरीदकर काम चला लेगे फिर कमी आई तो उधार ले लेगे ओर फिर कमाकर उधारी चुका देगे।