राज्यसभा चुनाव की नज़दीक आती तारीख़ और मध्य प्रदेश में बढ़ता सियासी तापमान ।

MOHD SAIF ALIAS UROOZ SAIFI

भारतीय लोकतंत्र में राज्यसभा के मायने।
भारतीय लोकतंत्र में निरंतर चलने वाली सभा को राज्यसभा के नाम से जाना जाता है ।जहाँ लोकसभा में सदस्य सीधे जनता द्वारा चुने जाते हैं तो वहीँ दूसरी तरफ राज्यसभा के सदस्य हर राज्य में जनता द्वारा चुने गए प्रतिनिधि यानि विधायक द्वारा चुने जाने की प्रक्रिया से होकर गुजरती है। वैसे तो अक्सर सीटें खाली होती रहती हैं जिससे समय समय पर भारत में चुनाव होते रहते हैं लेकिन राज्यसभा में 1 तिहाई सीट हर 2 वर्ष के अंतराल पर खाली होती रहती है ।हर एक सदस्य का कार्यकाल 6 वर्ष का होता है और हर 2 वर्ष पर एक तिहाई सीटें खाली होती हैं जिससे यह राज्यसभा हमेशा अस्तित्व में रहती है
2020 में भी ऐसी ही कुछ सीटें खाली हो रही है जिनका या तो कार्यकाल पूरा हो चूका है या फिर वह किसी कारण रिक्त हैं ।ऐसे में खाली सीटों पर तमाम राजनितिक पार्टियां जिनके चुनाव चिन्ह पर चुनकर आये विधायक उन राज्यो में मौजूद है जिन राज्यो की खाली हुई सीटों के लिए चुनाव होने हैं उन्होंने राजनितिक समीकरण और जोड़तोड़ करना शुरू कर दिया है

ऐसा ही एक राज्य मध्य प्रदेश है जहाँ पर खाली होने वाली राज्यसभा की तीन सीटों के लिए राजनितिक सरगर्मी शुरू हो चुकी है,तो आइये समझते हैं मध्य प्रदेश के इस पुरे सियासी गणित को।

राज्यसभा तो बहाना है,भाजपा को कमल खिलाना है-
सियासी उठापठक का केंद्र बन चुके मध्य प्रदेश में राज्यसभा के लिए खाली होने वाली 3 सीटों के लिए चुनाव होने हैं लेकिन दोनों सियासी पार्टियाँ इस चुनाव की आड़ लेकर राज्य में सरकार बनाने/बचाने की भी क़वायद में जुटी हुई हैं। मध्य प्रदेश में काँग्रेस सरकार कुछ निर्दलीय और सपा विधायको के भरोसे चल रही थी। राज्यसभा चुनाव की रस्साकसी देखते हुए मध्य प्रदेश की राजनीति में ख़ास पकड़ रखने वाले काँग्रेस नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया ने राज्यसभा सीट की दावेदारी को भंवर में पड़ता देख हाल ही में अपनी पार्टी से रिश्ता तोड़कर भाजपा के पाले में जाने का फैसला कर लिया ,यही नही बल्कि वह अपने साथ कुछ विधायको को भी तोड़कर ले गए जिनकी संख्या लगभग 22 के करीब बतायी जा रही है। सिंधिया और उनके कुछ करीबी विधायको का काँग्रेस से दूर जाना मध्य प्रदेश की राजनीति में आसान बने समीकरण को बहुत ही जटिल बना दिया। जहाँ यह कयास लगाये जा रहे थे कि राज्यसभा की खाली होने वाली 3 सीटों में काँग्रेस के 2 सदस्य और भाजपा का एक ही सदस्य पहुंच पायेगा लेकिन सिंधिया और कुछ विधायको के काँग्रेस छोड़ते ही समीकरण उल्टा पड़ने के साथ साथ राज्य की चलती सरकार पर भी संकट के बादल मंडराने लगे हैं।राजनितिक विश्लेषक तो इसे राज्य में भाजपा के मिशन कमल से जोड़कर देखने लगे हैं जिनमे काँग्रेस सरकार को अस्थिर करके राज्य में कमल खिलाना है ।

राज्यसभा सीट और उम्मीदवार-
राज्य में खाली होने वाली तीन सीटों पर होने वाले चुनाव के लिए दोनों पार्टियों ने तीन तीन उम्मीदवारो के नामांकन दाख़िल किये हैं ।जहाँ एक ओर भाजपा की तरफ से उनक पुराने दुश्मन और नए नवेले दोस्त ज्योतिरादित्य सिंधिया को एक सुरक्षित सीट दी गयी है वहीँ बाकी बची दो सीटों पर क्रमशः सुमेर सिंह सोलंकी और श्रीमती रंजना बघेल का नामांकन करवाया है ।अंदरखाने में खबर चल रही है कि पहले सुमेर सिंह सोलंकी का नाम आलाकमान ने फाइनल किया था लेकिन राज्य के अंदरूनी सलाह पर सोलंकी को नामांकन वापस लेने को कहा गया और उनकी जगह श्रीमती रंजना बघेल को नामांकन करने को कहा गया।
वहीं दूसरी ओर काँग्रेस पार्टी ने भी चौंकाते हुए तीनो सीट पर अपने तीन प्रत्याशी उतार दिए हैं जिनमे वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह पहले नम्बर पर और फूलसिंह बरैया दूसरे तथा तीसरे नम्बर पर श्री रामदास को नामांकन करवाया है।ज्ञात हो कि फूल सिंह बरैया चंबल क्षेत्र में काफी पकड़ रखते हैं और सिंधिया के जाने के बाद की भरपाई के लिए काँग्रेस ने उन्का नाम फाइनल किया है वहीं तीसरे प्रत्याशी के बारे में कयास लगाया जा रहा है कि राजनितिक समीकरण कब बन बिगड़ जयें इसका कोई भरोसा नही इसलिए नामांकन करवा कर राम भरोसे छोड़ दिया गया है और मौका लपकने की उम्मीद में लोग बैठे हैं।

विधानसभा में दलीय स्थिति और अनुमानित समीकरण-
मध्य प्रदेश विधानमंडल में टोटल 230 सीटें है जिनमे वर्तमान समय में काँग्रेस के 108 विधायक हैं,ज्ञात हो कि कांग्रेस के टोटल 114 विधायक थे जिनमें हाल ही में 6 विधायकों के इस्तीफ़े स्पीकर ने स्वीकार कर लिए हैं जिससे इस समय कांग्रेस के विधायकों की कुल संख्या 108 बची हुई है हालांकि अभी लगभग 13 और काँग्रेसी विधायको के इस्तीफों को स्वीकार नही किया गया है जो इस वक्त बैंगलोर के एक होटल में आराम फरमा रहे हैं ।भाजपा अपने 107 विधायको के साथ नम्बर 2 पर मौजूद है हालांकि भाजपा के भी कुछ विधायको के पाला बदलने की खबरें बीच बीच में उठती रहती है।बाकी बची हुई 15 सीटों पर 2 सीटें सपा के कब्जे में,1 सीट बसपा के कब्जे में,4 सीटें निर्दिलीय विधायको के पास और बाकी की 8 सीटें रिक्त हैं ।सियासी उठापठक के दौर को देखते हुए अनुमान लगाया जाना मुश्किल है लेकिन अगर इन्ही संख्याबल पर दोनों पार्टियां राज्यसभा चुनाव में उतरती हैं तो एक एक सीट दोनों पार्टियों के लिये सुरक्षित है लेकिन तीसरी सीट जिसपर सबसे अधिक जटिलता है उसे हासिल करने के लिए दोनों पार्टियों को जीतोड़ मेहनत करने की ज़रूरत पड़ सकती है।

फिलहाल एक राज्यसभा सीट जीतने के लिए 58 वोट (विधायको)की ज़रूरत पड़ने वाली है ।इस हिसाब से एक एक सीट निकल जाने के बाद भाजपा के पास 49 वोट और वही काँग्रेस के पास 50 वोट बचे रहेंगे इस स्थिति में निर्दलीय विधायक और अन्य छोटे दलो की स्थिति बहुत ही निर्णायक होने वाली है,वहीं दोनों तरफ से क्रॉस वोटिंग होने की भी पूरी संभावना है।सबकी निगाहें उन बागी विधायकों पर भी है जो कमलनाथ सरकार का साथ छोड़ने का एलान कर चुके हैं। आगामी 26 मार्च को इन सीटों पर चुनाव होने हैं जहाँ विधायक अपने मत का प्रयोग करके राज्यसभा में अपनी पार्टी का प्रतिनधित्व सुनिश्चित करेंगे। मौजूद माहैल ने मध्य प्रदेश के राजनितिक तापमान को काफी हद तक बढ़ा दिया है जिसके घटने की सम्भावना 26 मार्च से पहले सम्भव होती नही दिख रही है।

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is a young journalist & editor at Millat Times''Journalism is a mission & passion.Amazed to see how Journalism can empower,change & serve humanity