मेक इन इंडिया की तरह फ्लॉप होने की राह पर उज्ज्वला, फ़सल बीमा और आदर्श ग्राम योजना:रवीश कुमार

प्रधानमंत्री फ़सल बीमा योजना अपने लांच होने के साल में ही सवालों से घिर गई थी। 2016 में यह योजना लांच हुई थी। प्रीमियम देने के बाद भी बीमा की राशि के लिए किसानों को कई राज्यों में प्रदर्शन करने पड़े हैं। कंपनियों के चक्कर लगाने पड़े हैं। यहां तक गुजरात सरकार के उप मुख्यमंत्री ने कंपनियों को चेतावनी दी है कि वे बीमा राशि देने में देरी न करें।

बिजनेस स्टैंडर्ड ने अपने संपादकीय में लिखा है कि प्रधानमंत्री ने फसल बीमा को लेकर मंत्रियों के समूह का गठन किया है। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह इसके अध्यक्ष होंगे। गृहमंत्री अमित शाह भी इस समूह में होंगे।

आंध्र प्रदेश, पश्चिम बंगाल, बिहार जैसे कृषि प्रधान राज्यों ने फसल बीमा योजना से अलग कर लिया है। कर्नाटक गुजरात और ओडिशा भी अलग होने का मन बना रहे हैं। राज्यों को लगता है कि इस योजना की लागत बहुत है और किसानों को लाभ कम है। यही नहीं चार निजी बीमा कंपनियां भी इस स्कीम से अलग हो गई हैं। उनका मानना है कि यह घाटे का सौदा है।

उज्ज्वला योजना का भी यही हाल है। यह योजना भी 2016 में लांच हुई थी। जिन लोगों को सिलेंडर मिला है वो दोबारा नहीं भरवा पा रहे हैं। दोबारा सिलेंडर भरवाने वालों के राष्ट्रीय औसत में गिरावट जारी है।12 महीने में 3.08 सिलेंडर भराने का ही औसत है। इसका मतलब है कि जिनके पास सिलेंडर है वे अभी भी चूल्हे पर खाना बना रहे हैं। जो कि इस योजना के मकसद के ठीक उल्टा है। वजह यही हो सकती है कि जिन 8 करोड़ लोगों ने सिलेंडर लिए हैं उनकी आर्थिक स्थिति नियमित नहीं है कि वे लगातार सिलेंडर का इस्तमाल कर सकें। आज के इंडियन एक्सप्रेस में विस्तार से पढ़ें।

आदर्श ग्राम योजना भी फ्लाप हो गई है। 2014 में लाल किले से प्रधानमंत्री मोदी ने इसका एलान किया था। प्रधानमंत्री ने आदर्शवादी एलान किया था कि हर ज़िले में एक गांव आदर्श हो जाए तो आस पास के गांवों को प्रेरणा मिलेगी। 5 साल बाद यह योजना ख़ास प्रगति नहीं कर सकी है। हर चरण में आदर्श ग्राम के तौर पर गोद लेने वाले सांसदों की संख्या कम होती जा रही है। इंडियन एक्सप्रेस के हरिकिशन शर्मा ने रिपोर्ट की है।

आप जानते हैं कि मेक इन इंडिया का भी हाल वैसा ही है। अब यह योजना इतनी फ्लाप हो चुकी है कि कोई इसकी बात नहीं करता। टेलिकाम मंत्री भारत में निर्मित आई फोन दिखाकर इसकी कामयाबी तो बताते हैं लेकिन पांच साल में मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर का ग्रोथ रेट माइनस में पहुंच जाना बताता है कि उनके पास आई फोन के अलावा कुछ और बताने को नहीं है।

रोज़गार का सवाल? उसकी चिन्ता न करें। अभी व्हाट्स एप यूनिवर्सिटी में हिन्दू आबादी और मुस्लिम आबादी को लेकर जो मैसेज आ रहे हैं उसमें डूबे रहें। आपको नौकरी और सैलरी की चिन्ता नहीं होगी। बेरोज़गारी में भी ऐसे ख़ुश रहेंगे जैसे रोज़गार मिल गया हो।

क्या अब मैं आई टी सेल के लोगों और इनकी राजनीति के समर्थकों से उम्मीद कर सकता हूं कि वे इस लेख को जन जन तक पहुंचाएं? ताकि उनकी निष्पक्षता साबित हो सके।

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is a young journalist & editor at Millat Times''Journalism is a mission & passion.Amazed to see how Journalism can empower,change & serve humanity