नई दिल्ली 4 जनवरी । विगत 19 दिसम्बर को लख़नऊ में हुई हिंसा के मामले में मानवाधिकार संगठन एनसीएचआरओ ने एक जांच दल गठित करके तथ्य जुटाने का काम 29 और 30 दिसम्बर को लखनऊ में किया था। संगठन की राष्ट्रीय कार्यसमिति के सदस्य एड्वोकेट अन्सार इन्दौरी ने बताया कि लखनऊ में नागरिकों द्वारा सीएए और एनआरसी के ख़िलाफ़ एक प्रदर्शन आयोजित किया था। इस प्रदर्शन में अचानक हिंसा हो गई और एक युवक की मौत हो गई। इसके बाद पुलिस ने कई लोगो को गिरफ्तार किया इनमे कई जाने माने सामाजिक कार्यकर्ता और विभिन्न संगठनों के पदाधिकारी शामिल शामिल थे।
इस पूरे मामले को लेकर एनसीएचआरओ के जांचदल तथ्य जुटाये थे। ये तथ्यात्मक रिपोर्ट आज दिल्ली के जामिया मिल्लिया इस्लामिया विश्वविद्यालय में जारी की गई।
रिपोर्ट रिलीज़ करते हुए जांच दल की सदस्या पत्रकार आकृति भाटिया ने कहा कि हिंसा के बाद जो पुलिसिया दमन हुआ है वो अमानवीय था। पुलिस ने कानून का पालन नहीं किया।
किसी भी गिरफ्तारी के बाद उसने घर वालों को सूचना नहीं दी, 24 घण्टें अन्दर किसी को भी मजिस्ट्रेट के सामने प्रस्तुत नहीं किया। कुछ लोगों को तो बिना मजिस्ट्रेट के सामने प्रस्तुत किये ही जेल भेज दिया।
एनसीएचआरओ की दिल्ली प्रदेश कार्यसमिति की सदस्या डॉ.भावना बेदी ने इस मौके पर कहा कि हिंसा के बाद सामाजिक कार्यकर्ताओं और संगठनों को निशाना बनाया गया जो सरासर गलत था।हिंसा भड़काने के लिए रिहाई मंच और पीएफआई को चिन्हित करना पुलिस पर सवाल खड़े करता है। सामाजिक कार्यकर्ता ईशा शांडिल्या ने लोगो को संबोधित करते हुए कहा किपुलिस ने सभी का कस्टोडियल टॉर्चर किया। बीमार दारापुरी और मोहम्मद शुएब को ठण्डी रात में पूरी रात कुर्सी पर बिठाकर रखा, घर वालों को सूचना नहीं दी। बाकी सभी लोगों की थाने में पिटाई की, यहां तक कि थर्ड डिग्री टॉर्चर की बात भी सामने आयी है।उन्होंने बताया कि संगठन जल्द अपनी रिपोर्ट जारी करके राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग को भेजेगा।