अंकित कुमार
देश का विकास बहुत हुआ है, पिछले पांच वर्षों में विदेशों में भी भारत का जितना नाम हुआ है उससे यह पता चलता है कि पांच वर्ष पहले भारत को कोई नहीं जानता था। खैर देश की मिट्टी भी बहुत महंगी हुई है अयोध्या में 2000 रुपये की कीमत तक के दिये जले हैं। यह दर्शाता है कि हमारा देश नित आगे बढ़ रहा है और इसके मूल्यों में भारी विकास हुआ है। यहीं दूसरी ओर सरदार पटेल जी को भी लगातार उनके कृत्यों हेतु याद किया जा रहा है, 31 अक्टूबर को पूरा देश उनके कार्यों को याद कर उनके आगे नतमस्तक रहा लेकिन उनकी सबसे बड़ी श्रद्धांजलि विश्व की सबसे बड़ी मूर्ति है जो एकता का परिचायक है। मूर्तियां बननी भी चाहिए, गांधी जी की बनी हैं, नेहरू की बनी है, हर नए चौक पर हर नए नेता की मूर्ति रहती है लेकिन बस श्रीराम का मंदिर सरकार नहीं बनवाती कि राजनीति खत्म हो जाएगी।
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खैर देश की शिक्षा व्यवस्था और स्वास्थ्य की स्थिति बहुत सुदृढ़ हुई है, बच्चों को या तो शिक्षकों की कमी के कारण शिक्षा से वंचित रहना पड़ रहा है या ज्यादा पैसे खर्च कर निजी महाविद्यालयों या विदेशों की शरण लेनी पड़ रही है। वैसे जब डिजिटल इंडिया के लिए हर हाथ मोबाइल और सबसे तेज इंटरनेट के उद्देश्य से सरकार ने रिलायन्स टेलीकॉम के विस्तार में अपना योगदान दे ही दिया है तो विश्वविद्यालयों की कोई खास आवश्यकता महसूस नहीं होती है।
रोजगार में लोग पकौड़े बेच रहे हैं ये कहना गलत होगा क्योंकि सरकार ने अपने पकौड़े वाले वादे के अनुसार ऐसी कोई योजना जारी नहीं की है लेकिन हां कुछ युवाओं को फुर्सत भी नहीं है ये फेसबुक और ट्विटर पर राग अलापने के अलावा, 54% युवाओं को सोशल मीडिया उद्योग में रोजगार दे दिया गया है, आई टी सेल बिना किसी निवेश के कर्मियों को पाकर काफी लाभ में आगे बढ़ रहा है। व्हाट्सएप्प विश्वविद्यालय में दिए गए ज्ञानों के आधार पर तर्कों एवं कुतर्कों का दौर आप देख सकते हैं, स्वयं को बेरोजगार पाता पुत्र भी सरकारी कर्मचारी पिता के समय में नौकरियों की कमी को इन्हीं तर्कों के दम पर साबित कर देता है और अपने ही पैसे को अपने ही खाते में सब्सिडी के रूप में पाकर सरकार के कार्यों को गिना देता है।
खैर बात करते हैं लगभग 3000 करोड़ की एक प्रतिमा की, जी हां सरदार वल्लभ भाई पटेल की वह प्रतिमा जो विश्व पटल पर सर्वोच्च प्रतिमा के रूप में अपना नाम दर्ज करा चुकी है एवं अपने पीछे हजारों लोगों को बेघर कर, सैकड़ों की जमीन तथा कर्म भूमि को अपने अंदर समाहित कर चुकी है। हालांकि सरकार ने अनुदान भी दिया है, ये बात लगातार उन्हीं के लोगों के द्वारा कही जा रही है जिनके द्वारा कहा जाता है कि
जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी
हालांकि अब तो पैसे से बड़ी ना जननी है, ना जन्मभूमि, क्योंकि सरकार अनुदान दे तो ये लोग अब माँ का भी त्याग कर ही सकते हैं। छोड़िये आप भी क्या बात करते हैं, यह मूर्ति भी तो आवश्यक थी, विश्व मे नाम कैसे होता ? अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर देश की छवि और मजबूत करने में इस मूर्ति का बहुत योगदान है जो मूर्ख लोगों के समझ में नहीं आएगी। ये बात भी सही है, जिस देश का नाम वैश्विक भुखमरी सूचकांक में पड़ोसी देश पाकिस्तान से भी पीछे हो उसकी अंतर्राष्ट्रीय छवि इस मूर्ति ने बढा ही दी है। जहां लोग अस्पताल में भी तबेले सा व्यवहार महसूस करते हैं और अस्पताल की कमी, डॉक्टरों की कमी, संसाधनों की कमी में जान गंवाने वाली जनता कैसे इस मूर्ति की कीमत समझ पाएगी सोचने वाली बात है।
मुझे लगता है कि इस पैसे का उपयोग अन्यत्र भी हो सकता था, भारत में शैक्षणिक संस्थानों की कमी है, अस्पताल नहीं हैं, और लोग बेरोजगार घूम रहे हैं, भूख से मर रहे लोगों को अन्न जल की व्यवस्था करना और देश को आंतरिक रूप से सशक्त करना शायद इस मूर्ति से मजबूत हो सकता था लेकिन चूंकि मूर्ति बनवाने में एक खास राज्य एवं कुछ विशेष विचारों के लोगों द्वारा पुनः सत्ता प्राप्ति हेतु वोट दिया जाएगा एवं फिर एक बार शुरु होगा निजीकरण का खेल इस उद्देश्य से मूर्ति आवश्यक थी। गांधी और नेहरू की मूर्ति पर कोई प्रश्न नहीं उठाता तो आखिर पटेल की मूर्ति पर प्रश्न क्यों? विषय चिंतनीय है, आप भी चिंता कीजियेगा और हां एक बार मूर्ति होकर आईयेगा क्योंकि आपके जाने से ही वहां से आय उत्तपन्न होगी जो उन किसानों को दी जाएगी जो बेघर हुए, अपने खेतों को गंवा दिए और अब कहीं और रहने के लिए बाध्य हैं। इतना ही नहीं आपका ही यह पैसा पुनः रेल व्यवस्था के निजीकरण, नवोदय विद्यालय के शिक्षार्थियों के शुल्क में वृद्धि, रिलायन्स टेलीकॉम के उत्थान आदि में किया जाएगा