दानिश आलम/ नई दिल्ली:विगत दिनों 14 सितंबर को हिंदी दिवस के मोके पर गृह मंत्री अमित शाह ने हिंदी को लेकर एक विवादास्पद ट्वीट किया था। जिसमें उन्होंने कहा था कि ‘’ पुरे देश की एक भाषा होना अत्यंत आवश्यक है। हिंदी देश को एकता की डोर में बांधती है‘’। मगर उनके वहम में भी नहीं आया होगा कि इस ट्वीट से उन्हें अपनी ही पार्टी में विरोध का सामना करना पड़ेगा। दरअसल दक्षिण के कुछ विपक्षी दलों के नेताओं ने अमित शाह के इस ट्वीट का पुर्जोर मुखालफत किया था और कहा था कि शाह उनके राज्यों में हिंदी को थोपने की कोशिश ना करें। मगर अब इस बाबत उनके पार्टी में भी विरोध के स्वर उठने लगे हैं।
बीजेपी के अंदर सबसे पहले इस मामले में कर्नाटक के मुख्यमंत्री बीएस येदियोरप्पा आगे आए और एक ट्वाट के जरिए उन्होंने कहा कि देश की सभी आधिकारक भाषा समान है, लेकिन जहां तक कर्नाटक की बात है,कन्नड़ यहां की प्रधान भाषा है और हम कभी इस अहमियत से समझौता नहीं करेंगे। आगे उन्होंने यह भी कहा कि हम कन्नड़ और अपने राज्य की संस्कृति को आगे बढ़ाने के लिए प्रतिबध्द हैं।
पश्चिम बंगाल में भी तृणमूल कांग्रेस यह आरोप लगा चुकी है कि अमित शाह का ट्वीट हिंदी को थोपने की कोशिश है। अभिनेता से राजनेता बने कमल हासन ने भी इस मसले पर ट्वीट कर शाह पर तंज कसा था और कहा था कि जब भारत गणराज्य बना था तो हमसे विविधता में एकता का वादा किया गया था और अब कोई शाह, सुल्तान या सम्राट इस वादे को तोड़ नहीं सकता। वामपंथी नेता सीताराम यचुरी ने कहा है कि हिंदी को देशभर में थोपे जाने का विचार आरएसएस का है। न्यूज एजेंसी एएनई के मुताबिक, यचुरी ने कहा कि संघ की विचारधारा एक राष्ट्र, एक भाषा और एक संस्कृति की है, जिसे स्वीकार नहीं किया जा सकता। तमिलनाडु में विपक्ष के नेता एमके स्टालिन ने अमित शाह के बयान की जमकर आलोचना की थी और कहा था कि यह इंडिया है हिंडिया नहीं। उन्होंने कहा था कि गृह मंत्री के विचार भारत की एकता के लिए खतरा है।
उधर केरल के सीएम पिनाराई विजयन ने भी नाराजगी जताते हुए कहा कि हिंदी देश को एकता के सुत्र में बांध सकती है, ये विचार ही बेतुका है। एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने भी शाह के ट्वीट पर तंज कसते हुए कहा कि भारत हिंदी,हिंदु और हिंदुत्व से बहुत बड़ा है। बताते चलें कि भारत एक विविधतापूर्ण विशाल देश है जहां प्राकृतिक एवं सामाजिक स्तर की अनेक विषमताएं दृष्टिगोचर होती है। यहां विश्व की प्राय: सभी धर्मों के लोग रहते हैं। लोगों की भाषाएं भी भिन्न-भिन्न है। यही वजह है कि भारतीय संविधान के अंदर 22 भाषाओं को मान्यता दी गई है। इसके इलावे सन् 2001 और 2011 की जनगणना के अनुसार यह पाया गया कि भारत में करीब 122 भाषाएं बोली जाती है। देश में भाषाओं को लेकर संघर्ष का इतिहास भी काफी पुराना रहा है। जिनमें तमिलनाडु के पांच बार मुख्यमंत्री रह चुके स्वर्गीय करुणानिधि का हिंदी के विरुध आंदोलन काफी चर्चित है।