पटना 14 अगस्त 2019
संसद के विगत सत्र में सरकार ने एक के बाद कई बिल पारित किए. जिस पर बहुत चर्चा नहीं हुई. बड़े पैमाने पर कानूनों में बदलाव भी किए गए. यूएपीए में जो संशोधन हुआ है, वह बेहद खतरनाक है. जैसे रौलट एक्ट का जमाना लौट आया है. एनआईए कानून में संशोधन करके किसी भी नागरिक पर आतंकवाद का इलजाम लगाकर दो साल के लिए उसके मानवाधिकार छीन लिए जा सकते हैं, उसकी संपति छीन ली जा सकती है. यह बहुत खतरनाक है.
आरटीआई कानून का आम आदमी इस्तेमाल कर रहा था. लोकतंत्र का थोड़ा विस्तार हुआ था. उसे खत्म कर लोगों के सूचना पाने के अधिकार को खत्म कर दिया. एक ओर फेक न्यूज का बोलबाला है तो दूसरी ओर सूचना अधिकार को खत्म कर दिया गया है.
तीन तलाक को अपराध बताकर जो ऐक्ट पारित किया यगा, वह न्याय प्रणाली व मुस्लिम समुदाय के लिए खतरनाक संकेत हैं. मुस्लिम महिलाओं के साथ-साथ हिंदु महिलाओं की सुरक्षा पर भी बात होनी चाहिए. इंडियन वीमन ऐक्ट की ज्यादा जरूरत थी जो वास्तव में इस देश की महिलाओं की जरूरत है. लेकिन सरकार ने ऐसा न करके एक सांप्रदायिक चाल चली है.
कश्मीर के साथ जो हुआ और जिस प्रकार से हुआ वह केवल कश्मीर के साथ अन्याय नहीं है बल्कि पूरे देश व लोकतंत्र, संविधान के साथ अन्याय है. धारा 370 के प्रावधानों को विगत 70 सालों में लगातार कमजोर किया गया. भाजपा के लोग नेहरू को गाली देते हैं कि उनके कारण यह स्थिति बनी, लेकिन हम देखते हैं कि धारा 370 का सबसे ज्यादा क्षरण नेहरू के ही जमाने में हुआ. फिर इंदिरा गांधी के शासन में भी हुआ. शेख अब्दुला जैसे लोकप्रिय नेता को 1953 से 1974 तक जेल में डाल दिया गया था. इससे ज्यादा अन्याय और क्या हो सकता है?
लेकिन इस बार जो हुआ, उससे भी आगे बढ़कर है. यदि धारा 370 को खत्म ही करना था, तो उसके तरीके भी संविधान में बताए गए हैं. इसे कश्मीर की विधानसभा से पास होना चाहिए था. कश्मीर में अभी कोई विधानसभा नहीं है. इसलिए पहला काम वहां विधानसभा का चुनाव करवाना था. आज भाजपा जो दावा कर रही है कि कश्मीर की भलाई के लिए उसने ऐसा किया, तब तो उनको कोई दिक्कत ही नहीं होनी चाहिए थी. पहले वे इस मुद्दे को ही एजेंडा बनाकर विधानसभा चुनाव लड़ते और विधानसभा से पास करवाकर संसद से पारित करवाते. लेकिन जो किया गया वह राज्यपाल की राय के आधार पर हुआ. राज्यपाल की राय कश्मीर की जनता की आवाज नहीं है. राज्यपाल सरकार का ही हिस्सा है. कश्मीर को पूरे अंधेरे में रखकर यह कदम उठाया गया है.
अब कहा जा रहा है कि कश्मीर में सबकुछ ठीक है. यह भी पूरी तरह झूठ है. अभी चार लोगों की टीम कश्मीर गई थी. प्रख्यात अर्थशास्त्री ज्यां ड्रेज व भाकपा-माले की पेालित ब्यूरो सदस्य कविता कृष्णन उसमें शामिल थे. दिल्ली में उन्होंने अपनी रिपोर्ट आज जारी की है. कश्मीर में स्थिति सामान्य होने की बात झूठ है. लोग बहुत परेशान हैं. लोग अपने परिजनों से बात नहीं कर पा रहे हैं. पूरे राज्य में दमन हो रहा है. जम्मू में भी भारी असंतोष है. पूरे देश में बेहद गलत संदेश जा रहा है.
भाजपा का यह दावा कि इससे देश की एकता मजबूत होगी, वह भी गलत है. कश्मीर को दूर धकेल कर व बंदूक के बल पर एकता बन नहीं सकती. कश्मीर के साथ जो हुआ, व जिस प्रकार से हुआ वह उसे अलगाव में ही डालेगा. ऐसी बहुत सारी धारायें देश के दूसरे राज्यों में लागू है. कश्मीर से जो छीना गया, वह सबकुछ बल्कि उससे कहीं ज्यादा नागालैंड को दिया जा रहा है.
हिंदुस्तान में ऐसा कभी नहीं हुआ था कि किसी राज्य को खत्म करके केंद्र प्रशासित प्रदेश बना दिया गया. यह ठीक उसी प्रकार है जैसे एसपी का डिमोशन करके हवलदार बना दिया जाए. इस पर बिहार को भी सोचना चाहिए. नीतीश कुमार स्पेशल स्टेटस की मांग करते हैं. हम भी समर्थन करते हैं. इसलिए नीतीश कुमार को इस मसले पर अपना स्टैंड क्लियर करना चाहिए.
कश्मीर का राजनीतिक समाधान होना चाहिए. पूर्व प्रधानमंत्री वाजपेयी ने कहा था कि कश्मीर का हल कश्मीरियत, जम्हूरियत व इंसानियत के आधार पर होना चाहिए, लेकिन मोदी जी ने इसका गला घोंट दिया. आज कश्मीरियों के साथ देने का वक्त है. आज पूरे देश को कश्मीर के पक्ष में खड़ा होना होगा.
हाल के दिनों में कश्मीर का मुद्दा सामने लाकर देश की गिरती अर्थव्यवस्था पर पर्दा डालने की कोशिश हो रही है. प्राइवेटाजेशन के चलते बहुत पैमाने पर छंटनी हो रही है. रेल, बीएसएनल में छंटनी हो रही है. आॅटोमोबाइल सेक्टर में मंदी है. बेरोजगारी बढ़ रही है. शिक्षा नीति शिक्षा नीति कम और छात्रों को शिक्षा से बाहर करने की पाॅलिसी ज्यादा है. सीबीएसई की परीक्षा शुल्क वृद्धि को दबाव में वापस लिया जा रहा है. सरकार की मंशा स्पष्ट है. वह शिक्षा-स्वास्थ्य को मुनाफा कमाने की चीज बना रही है.
*कार्यक्रम*
बाढ़-सुखाढ़, भूमि अधिकार, पक्का मकान आदि सवालों पर 9 अगस्त से लेकर 7 नवंबर तक खेग्रामस के बैनर से ग्राम सभायें आयोजित की जाएंगी, गांव-गांव में बातचीत होगी. पंचायत, प्रखंड व जिला मुख्यालय पर धारावाहिक आंदोलन चलेगा. 9 नवंबर को पटना में गा्रमीण गरीबों का प्रदर्शन होगा. पटना में खेग्रामस का राज्य सम्मेलन होगा.
अखिल भारतीय किसान महासभा के बैनर से 27-29 अगस्त को बिहार के सभी ब्लाम्क पर धरना दिया जाएगा. कदवन जलाशय व बिहार को अकालग्रस्त घोषित करने की मांग प्रमुखता से उठाई जाएगी.
संवाददाता सम्मेलन में काॅ. दीपंकर भट्टाचार्य के अलावा राज्य सचिव कुणाल व पोलित ब्यूरो के सदस्य धीरेन्द्र झा व राजाराम सिंह शामिल थे.