झारखंड के खरसांवा गांव का वो घर. कैमरे यहां-वहां घूमने के बाद रोते हुए ‘एक’ चेहरे पर ठहर जाते हैं. आंखें लगातार रोने की वजह से सूजी हुई हैं. माइक मुंह में ठूंसे जाने पर फफककर और भी जोरों से रो पड़ती हैं. ये है शाइस्ता परवेज़. 24 साल के उस लड़के की पत्नी, भीड़ ने पीट-पीटकर जिसकी बेरहमी से हत्या कर दी. इधर एक चेहरा पति की मौत का सदमा झेल रही उस लड़की के आसपास बना हुआ है. वो कोशिश कर रहा है कि भूखी लड़की कुछ तो खा ले. ये शख्स मरनेवाले का चाचा मोहम्मद मसरूर आलम है.
रमजान के मौके पर तबरेज़ घर आया था. नई-नई शादी हुई थी. उसी से, जिससे वो सालों से मुहब्बत में था. छुट्टियों के बाद दोनों शहर जाने वाले थे. 17 जून की रात मेरे पास एक वीडियो आया. भीड़ पीट रही थी और तबरेज़ अपने चोर न होने की गुहार लगा रहा था. ये बर्बरता 7 घंटे चली. जय श्रीराम के नारे भी लगवाए गए. 4 दिनों बाद अस्पताल में उसकी मौत हो गई.
न चाहकर भी बार-बार वही वीडियो खुल जाता है, जिसमें रोता तबरेज़ खुद को बेगुनाह बताते हुए ऊपरवाले का नाम ले रहा है. और तब भी भीड़ का दिल नहीं पिघलता.
मसरूर याद करते हैं- तबरेज़ 6 साल का रहा होगा जब उसकी मां की मौत हुई. इसके कुछ वक्त बाद अब्बा गुजर गए. नन्हे तबरेज़ को मैंने और मेरी पत्नी ने बड़े जतन से संभाला. वो रोता तो रात जागते. गुस्सा होकर इधर -उधर निकल जाता तो उसकी पसंद का खाना पकता. हम खुद अपने हाथों से खिलाते. धीरे-धीरे वो मुझे अब्बू बुलाने लगा और मेरी पत्नी को अम्मी.
बड़ा मनमौजी और पक्के इरादों वाला बच्चा था. उन दिनों घर में खास पैसे नहीं हुआ करते थे. वो अपनी तरफ से हाथ बंटाने की कोशिश करता. फिर एक रोज स्कूल से लौटकर एलान कर दिया कि अब मैं पढ़ने नहीं जाऊंगा. जिद पकड़ ली कि मुझे कोई काम सिखा दो. आखिरकार मैंने उसे वेल्डिंग की ट्रेनिंग देनी शुरू की. फटाक से सीख गया. बड़ा काम मिला तो जमशेदपुर चला गया. वहां से उड़ीसा और फिर पुणे. 7 सालों से वहीं था. रमजान और शादी के लिए घर लौटा तो ये हादसा हो गया
याद करते हुए मसरूर बिलख पड़ते हैं- हम दूर शहर जाने से रोकते थे कि हारी-बीमारी में कोई सहारा बनेगा. कौन जानता था कि घर लौटना ही उसकी जान ले लेगा.
रमजान में काम से लंबी छुट्टी लेकर लौटा था. घर के बाकी बच्चों की तरह उसकी शादी की चर्चा चली तो उसने मन खोला. उसे शाइस्ता पसंद थी. पहली ही मुलाकात में सबको वो बच्ची भा गई. इसी 27 अप्रैल को दोनों का निकाह हुआ था. खूब खुश थे दोनों. पुणे जाने की तैयारियों में जुटे हुए थे. लड़की पहली बार इतने बड़े शहर जाने वाली थी. शहर के हिसाब से काफी सारी तैयारियां कर रही थी. सब ठीक चल रहा था. बिन मां-बाप के बच्चे का परिवार पूरा हो गया था.
पुणे लौटने से पहले सबसे मेल-मुलाकात हो रही थी. उस रोज फुफ्फी (बुआ) से मिलने के लिए जमशेदपुर गया हुआ था.
वहां से निकलते हुए रात हो गई. पत्नी के पास 10 बजे के आसपास फोन आया कि लौट रहा है. फिर उसका फोन बंद हो गया. बदहवास पत्नी बार-बार फोन मिलाती रही. आखिरकार सुबह 7 बजे उसका आखिरी फोन आया. वो पुलिस थाने में था. बताया कि पड़ोसी गांव में भीड़ ने उसे बेरहमी से पीटा है. उन्हें शक था कि तबरेज़ ने बाइक चुराई है. रोती-बिलखती पत्नी ने हमें इत्तिला की. हम तुरंत सरायकेला पुलिस थाने पहुंचे. वहां पहुंचकर उस मारपीट का सही अंदाजा हो सका.
तबरेज़ बुरी तरह से खूनमखून था. बिना सहारे खड़ा नहीं हो पा रहा था. सिर पर गहरी चोट थी. पूरे शरीर पर फटे हुए कपड़ों से जख्म झांक रहे थे.
मैंने पूछा तो रो पड़ा. बार-बार अपनी सफाई दे रहा था. मैंने तसल्ली दी और बड़े पुलिस अधिकारी से मिला. उनसे कहा कि बच्चे को ‘पब्लिक ने बहुत मारा है. उसका इलाज करवाना जरूरी है’. सुनकर वो भड़क उठे. धमकाते हुए कहा कि तुरंत यहां से जाओ वरना तुम्हें भी हाथ-पैर तोड़कर किसी मामले में अंदर डाल देंगे. मैं लौट आया.
घर पहुंचा तो एक व्हाट्सएप वीडियो आया हुआ था. इसमें तबरेज़ से नाम पूछा जाता है और नाम बताने के बाद खंभे से बांधकर बुरी तरह से पीटा जाता है.
आसपास मजमा लगा हुआ है. सब देख रहे हैं. बीच-बीच में एक-दो आवाजें उससे चोरी कुबूलवाने की कोशिश करती हैं. इन्कार पर और भी बेरहमी से मारपीट होती है. पाप काटने के लिए उससे जय श्रीराम और जय हनुमान बोलने को कहा गया. मैं आगे देखता हूं- तबरेज़ अपने चोर न होने की गुहार लगाते हुए जय श्रीराम बोल रहा है. हर नारे के साथ भीड़ उसे और जोरों से पीटती है. वीडियो उसकी पत्नी तक भी पहुंच चुका था.
हम दहशत और तकलीफ से सुन्न इंतजार कर रहे थे कि वो ‘साबुत’ घर लौट आए.
भतीजे को ताजा-ताजा खोए चाचा की आवाज एकदम पकी हुई है, मानो लगातार सवालों ने उन्हें मौत का आदी बना दिया हो. खुद से ही बात करते हुए वे कहते हैं- बगल के गांव में ये सब हो रहा था और हमें घंटों बाद खबर हुई. तबरेज़ के साथ दो लड़के और थे, उनका कुछ अता-पता नहीं. चोरी का इलजाम क्यों लगा, ये भी नहीं पता. हम इतना जानते हैं कि वो बेकसूर था. बस, नाम की वजह से उसकी जान चली गई.
क्या गांव में हिंदू-मुस्लिम मिलकर नहीं रहते?
तपाक से मसरूर का जवाब आता है- ऐसा तो कुछ भी नहीं. दादे-परदादे के जमाने से साथ रह रहे हैं. दो बर्तन साथ रहेंगे तो खड़केंगे ही. इससे ज्यादा कभी कुछ नहीं हुआ. हल्का-फुल्का कभी कुछ होता भी है तो संभल जाता है.
इस मामले में पुलिस का रवैया पीटनेवाली भीड़ से अलग नहीं था. जख्मी लड़के को अस्पताल ले जाने की सिफारिश की तो धमकी देकर भगा दिया. बाद में खुद अस्पताल लेकर गए तो एकदम बुरी हालत में होने के बावजूद डॉक्टर ने फिट करार दे दिया. हालत ज्यादा बिगड़ने पर दोबारा अस्पताल ले जाया गया. वहां डॉक्टर ने उसे मृत घोषित कर दिया. मैं वहीं था. छूकर देखा तो नब्ज चल रही थी. अब बर्दाश्त से बाहर हो चुका था. साथ के लोगों ने अस्पताल में जमकर हंगामा किया, तब जाकर डॉक्टर ने दोबारा ईसीजी की. सांस चल रही थी. जमशेदपुर अस्पताल के रास्ते में उसमें दम तोड़ दिया.
थकी हुई आवाज में बताते हैं- शादी को दो महीने नहीं बीते थे. नई-नवेली पत्नी पहली बार शहर जा रही थी. तैयारियों का सामान अब भी सारे घर में बिखरा हुआ है. कानून इंसाफ कर भी दे तो उस बच्ची की जिंदगी कैसे लौटेगी!(इनपुट न्यूज १८)