अशफाक कायमखानी।जयपुर।
किसी भी राजनीतिक दल से सहमति व असहमति अपनी जगह होते हुये यह मानना होगा कि 2014 की मोदी लहर के मुकाबले 2019 के लोकसभा चुनाव मे भारत मे मोदी लहर का विस्तार होकर एनडीए की करीब तीनसो पचास सीटे जीतकर जो दो सीटों वाली पार्टी को बहुमत वाली पार्टी बनाने मे भाजपा नेताओं के अलावा संघ के स्वयं सेवको ने कड़ी मेहनत की है। उस मेहनत व उससे पाई उपलब्धि की तारीफ तो करनी ही होगी। भाजपा की इस राजनीतिक उपलब्धि से विपक्षी राजनीतिक दलो को कुछ सीख जरुर लेनी चाहिये।
भाजपा मे मोजूदा समय मे चाहे प्रधानमंत्री मोदी व अमीतशाह की तूती बोलती होगी लेकिन उस पर किसी ना किसी रुप मे राष्ट्रीय स्वयं सेवक का चाबूक भी पीछे लगा रहता है। भाजपा के अलावा भारत मे जितने भी अन्य राजनीतिक दल है। उनमे से अधीकांश दलो का नेतृत्व एक व्यक्ति या एक परिवार के पास होने के कारण उस दल की कोई खास आईडीयोलोजी ना होने एवं निजी स्वार्थ की भावना के कारण नेताओं द्वारा संगठन चलाते दिखने के कारण आम मतदाताओं का मन उनसे विचलित होने लगा है।
भाजपा के विपक्ष मे गठबंधन बनाकर चुनाव लड़ने वाली सपा, बसपा व रालोद मे मुलायम-अखिलेश यादव, मायावती व अजीतसिंह का विधान व परिवार का नेतृत्व ही सर्वोपरि है। इन तीनो के सत्ता मे रहते जनता इनको देख व अजमा चुकी है। जबकि कांग्रेस के साथ एनसीपी, राजद व जनता दल सेक्यूलर के गठबंधन की स्थिति भी इसी तरह की है। गांधी, शरद पंवार, लालू यादव व देवेगौड़ा का परिवार का विधान पर चलने वाले चारो दलो को भी सत्ता मे रहते आम मतदाता देख व अजमा चुका है। ममता, शेखर राव, चद्रबाबू नायडू, मांजी सहित अन्य दलो की भी यही स्थिति आम मतदाताओं के जेहन मे बनी हुई है। कांग्रेस के अलावा अन्य उक्त सभी दलो की राष्ट्रीय नेतृत्व देनी की छवि अभी तक नही बन पाई है। जबकि चाहे कुछ भी माने लेकिन भारत की जनता राहुल गांधी का नेतृत्व कबूल करने को अभी भी तैयार नजर नही आ रही है। भाजपा ने अपने सहयोगी दलो की तादाद मे इजाफा करके जरा दबकर उनसे चुनाव मे सीट बंटवारे का समझौता किया। इसके विपरीत कांग्रेस ने साथी दलो की तादाद मे कमी करते हुये भाजपा से अलग अलग प्रदेशो मे मुकाबला कर रहे क्षेत्रीय दलो के उम्मीदवारो के सामने अपने वोट काटू उम्मीदवारो को खड़ा करके क्षेत्रीय दलो को कमजोर करने के चक्कर मे भाजपा व भाजपा के साथी दलो के उम्मीदवारो को मजबूत करने मे सहायक की भूमिका निभाने का काम किया है। भाजपा खासतौर पर 18-35 साल के युवाओं पर फोकस करती दिखाई दी तो कांग्रेस उनही पुराने व उम्रदराज लोगो के भरोसे पर विश्वास जताती रही।
2019 के लोकसभा चुनाव मे प्रधानमंत्री की छवि एक अलग व मजबूत नेता की बनाकर भाजपा कार्यकर्ताओं ने घर घर उस छवि को पहुंचा कर समर्थन जुटाने मे कामयाब रहे। वही राहुल गांधी की कुछ सालो मे बनी कमजोर नेता की छवि को बदलने मे कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने कोई खास काम नही किया। चाहे भाजपा पर हिन्दुत्ववादी होने के आरोप लगते रहे हो, पर यह मानना होगा कि मतदाताओं के मत देकर जीताने के कारण ही भाजपा फिर सरकार बना रही है। भाजपा सरकार अपने आगामी कार्यकाल मे पहले की तरह अपनी पोलिसी को भारत मे लागू करने की भरपूर कोशिश करती नजर आने का अनुमान लगाया जा रहा हैः